रोहतास में काले हिरण की हत्या, सींग बरामद, आरोपी गिरफ्तार

कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद हुए लॉकडउन से मानवीय गतिविधियां शिथिल हुई हैं. ऐसे में जानवर इलाके भटक कर विचरण करते देखे जा रहे हैं, लेकिन जीव जंतुओं का इस लॉकडाउन के दौरान भी शिकार करने वालों की कमी नहीं है. गुरुवार को रोहतास जिला के बघैला ओपी अंतर्गत राजपुर के पडरिया में गेहूं के खेत में एक काला हिरण मृत पाया गया. उसके शरीर पर जख्म के कई निशान मिले हैं. गर्दन तथा शरीर के पिछले भाग में गंभीर चोट तथा खून टपकता मिला था. साथ ही काले हिरण के सिर से सींग भी गायब मिले. ग्रामीणों ने बघैला थाना का सरकारी जीप चलाने वाले ड्राइवर नीरज दुबे को इसके लिए जिम्मेवार ठहराया है. जिसके बाद वन विभाग ने आरोपी ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया. ग्रामीणों ने थाना के ड्राइवर पर ही शिकार करने का गंभीर आरोप लगाया है. गुरुवार को वन विभाग के रेंजर सत्येंद्र शर्मा की देखरेख में काले हिरण का पोस्टमार्टम कराया गया. जिसके रिपोर्ट के आधार पर भी जाँच की जा रही है.

शुक्रवार को गुप्त सूचना के आधार पर रोहतास डीएफओ प्रद्युमन गौरव एवं वन विभाग की टीम जांच के लिए बैघला पहुंचे. जहां बैघला से काले हिरण के सींग को बरामद किया गया. वहीं ड्राइवर अभी वन विभाग के हिरासत में है, जिसे कल कोर्ट में पेश किया जायेगा. डीएफओ प्रद्युमन गौरव ने बताया कि गुप्त सूचना के आधार पर ड्राइवर से पूछताछ के बाद बघैला से हिरण का सींग बरामद कर लिया गया है. साथ ही गहरी जांच की जा रही कि हिरण की मौत कैसे हुयी. उन्होंने बताया कि काले हिरण देश के कई इलाकों के खेतों में ही पाए जाते है, जंगलों में नहीं. हमें खेतों में ही काले हिरण को सुरक्षित रखना होगा. डीएफओ ने बताया कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में शेड्यूल एक में सीरियल नंबर 2 पर काला हिरण मेंशन है. जिसके मुताबिक देश में बाघ एवं हिरण की हत्या संगीन जुर्म है, दोनों की सजा बराबर है.

काले हिरण का बरामद सींग

बता दें कि काले हिरण को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में विलुप्त प्राय जीव में शामिल किया गया है. यह एक दुर्लभ प्रजाति का हिरण है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह जीनस एंटीलोप वर्ग का प्राणी है, जो अपने वर्ग का अंतिम जीवित प्राणी माना जाता है. भारत सरकार इसके संरक्षण के लिए लगातार अभियान चला रही है. एक सर्वे के अनुसार 1970 में भारत में काले हिरण की संख्या मात्र 25 हज़ार रह गई थी, लेकिन बाद के दिनों में लगातार हुए संरक्षण के बाद फिलहाल इसकी संख्या 50 हज़ार के आसपास है.

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