रोहतास में एक रूपये किलो टमाटर, उचित दाम न मिलने से नाराज किसानों ने जताया विरोध

अजीत कुमार/सासाराम- क्या किया जाए साहब! मंडी में टमाटर प्रति रुपये किलो बिक रहा है, जबकि उस पर ढुलाई खर्च ही दो रुपया आता है। इसके अलावा पटवन व मेहनताना खर्च अलग से है। दिनोंदिन डीजल व बिजली महंगी होती जा रही है। ऐसी स्थिति में इसे बर्बाद करने के अलावा और कोई दूसरा उपाय भी नहीं बचा है। कुछ ऐसा ही दर्द रविवार को स्थानीय पोस्ट ऑफिस चौक पर सब्जी उत्पादक किसान टमाटर को नष्ट करते हुए छलका। नोखा के कई किसानों ने रविवार को सासाराम मंडी लाए गए टमाटर को बेचने के बजाए सड़क पर फेंक कम मूल्य मिलने पर विरोध जताया। कहाकि अगर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगा होता तो शायद यह दिन उन्हें देखने को नहीं मिलता।

परंपरागत खेती को छोड़ नकदी फसल के रूप में टमाटर की खेती कर अपनी किस्मत संवारने वाले किसान इस वर्ष खासे परेशान हैं। खेतों में पककर लाल हुए टमाटर सड़ने लगे हैं, लेकिन कोई खरीदार नहीं है। जिससे किसान अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। उनके चेहरे अब पीले होने लगे हैं। सबसे खराब स्थिति बटाईदारों की हुई है, जिन्होंने रैयतों से छह से सात क्विंटल  प्रति बीघा गेहूं देने की बात पर टमाटर की खेती की है। अब वे रैयतों को गेहूं कहां से देगें, इस बात को ले चिंतित हैं। रविवार को सासाराम के पोस्ट ऑफिस चौराहा पर बड़े पैमाने में टमाटर उत्पादक किसानों ने लागत मूल्य भी नहीं मिलने पर विरोध स्वरूप अपने उत्पादित टमाटर को सड़क पर बिखेर दिया तथा उस पर गाड़ी चलाकर उसे नष्ट कर दिया। सैकड़ों किलो टमाटर किसानों ने पोस्ट ऑफिस चौराहा पर फेंक कर अपना विरोध दर्ज किया।

सासाराम में उचित दाम न मिलने से नाराज किसानों ने अपने टमाटर को सड़क पर फेंक विरोध जताते

किसानों का कहना है कि बाजार में टमाटर का थोक मूल्य एक रुपए प्रति किलो भी नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण उन लोगों का मेहनत का उत्पादन किया हुआ टमाटर को फेंकने के अलावे और कोई रास्ता नहीं बचा है। हालत यह हो गई है कि खेत से तोड़कर मंडी में लाने मे ही प्रति किलो ₹2 लग जाते हैं। जबकि मंडी में टमाटर ₹2 किलो बिक भी नहीं पाता है। किसानों के इस विरोध प्रदर्शन से लोग अचंभित हो गए हैं। सासाराम के पोस्ट ऑफिस चौराहा पर बीच सड़क पर जिस तरह से टमाटर फेंका गया तथा अपने टमाटर पर ही किसान गाड़ी चला कर तथा पैर से कुचलकर नष्ट करते देखे गए, वह कई सवाल खड़े कर रहे हैं।

आपको बता दें कि रोहतास जिले के नोखा, राजपुर, घोरडीही, नावाडीह, बिशंभरपुर, धावा, आकाशी, बरांव, समेत अन्य गांव के किसान टमाटर की खेती की लिए जाने जाते हैं। जहां दिल्ली, मेरठ, पंजाब, कोलकाता, उड़ीसा व झारखंड के व्यापारी प्रति वर्ष आते थे और यहां से टमाटर ट्रकों पर लोड कर ले जाते थे। लेकिन इस बार व्यापारी आए तो जरूर, लेकिन दो-चार दिन में ही चलते बने। आकाशी के किसान व टमाटर उत्पादक मनोज सिंह कहते हैं कि 30 रुपये कैरेट में दवा पटवन की बात तो दूर, किसानों की अपनी मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। उचित दाम नहीं पाने के कारण टमाटर को मजबूरन नष्ट करना पड़ रहा है। सब्जी उत्पादक किसानों के प्रति सरकार की उदासीनता की वजह से अब परंपरागत खेती को मजबूर हो रहे हैं।

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