रोहतास के इस दिव्यांगों के पिता ने मांगी सपरिवार इच्छामृत्यु, मदद की दरकरार

संतानों का दर्द अब सहा नहीं जा रहा। दर्द की भी कोई सीमा है। मेरा दर्द तो असहनीय है। दर्द बांटने वाला कोई नहीं। दर्द समझने वाला कोई नहीं। मेरे दर्द से तो दर्द भी कराह रहा है। विश्वास नहीं तो आइए मेरे घर….। संझौली प्रखंड के छोटे से गांव छुलकार। तिल-तिल मर रहे तीन संतानों की पीड़ा आप को हिला कर रख देगी। हृदय को झकझोर देगी। हम तो ईश्वर से मौत मांग रहे हैं। उनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि मेरी व मेरी पत्नी की उम्र काटकर मेरे संतानों के उम्र में जोड़ दें। लेकिन ईश्वर भी कहां सुनते हैं। आखिर कब तक देखते रहेंगे संतानों की पीड़ा। उनके दर्द …। दर्द देखने से अच्छा है कि हम खुद मौत को गले लगा ले। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी हमें सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजत दे तो बेहतर होगा। संतानों का दर्द जो देखना नहीं पड़ेगा… और फफक-फफक कर रो पड़ते है देवमुनी सिंह। हाथ पैर से पूरी तरह दिव्यांग व चलने-फिरने में बिल्कुल असमर्थ अपने तीन संतानों की इलाज नहीं होने से वे मौत के काफी करीब आ पहुंचे हैं। संतानों की दर्द ने पिता को पूरी तरह से तोड़ दिया है। शुक्रवार को प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को पत्र भेज सपरिवार इच्छामृत्यु की मांग करने वाले दिव्यांगों के पिता अपने तीन दिव्यांग संतानो के इलाज को ले विवश हैं। कहते हैं- ‘क्या करें’। आप ही कुछ बताइए न ? पल पल मौत के आगोश में समाते तीन तीन संतानों की पीड़ा को आंखों से टकटकी लगाए निहारते रहें।

देवमुनि की बातों में प्रशासनिक लापरवाही व उदासीनता के प्रति गुस्सा भी नजर आती है। आये भी क्यों नही। आज पांच-छह वर्षों से अपने संतानों के इलाज के लिए गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं। लेकिन किसी ने दर्द भरी व्यथा को नहीं सुनी। वर्ष 2013 साल देवमुनी के लिए कहर बन कर कर आया था। तब बड़ा बेटा मंतोष 11 साल का था। उसके हाथ व पैर अचानक सूखने लगे और डेढ़ सालों के भीतर ही वह पूरी तरह पोलियोग्रस्त हो गया। पिता बड़े बेटे का इलाज करा ही रहे थे कि 10 वर्षीय धन्तोष के हाथ पैर भी बड़े भाई की तरह ही सूखने लगे और वह भी पूरी तरह चलने फिरने में असमर्थ हो गया। दोनों बेटे के इलाज में जो थोड़ी पुश्तैनी जमीन थी, वह भी बिक गई।

बहन के साथ तीनों दिव्यांग भाई

स्थिति तब और बदत्तर हो गई जब एक साल पूर्व ही तीसरा बेटा आठ वर्षीय रमतोष भी उसी बीमारी की चपेट में आ गया। इलाज की उम्मीद लिए टकटकी लगाएं दिव्यांग मंतोष व धन्तोष आने-जाने वाले लोगों से पूछते है ,’ चाचा जी का हमनीन के ठीक हो जाईब जा ? सीएम या पीएम चाचा लगे हमनीन के बात पहुंचा दी ना..। शायद हम भाईअन के हाथ पैर ठीक हो जाए…! उनके मुंह से निकले कातर शब्दों से लोगों की आंखें नम हो जाती है। जात-पात व आरक्षण का सब्जबाग दिखा अपनी राजनीति रोटी सेकने वाले भी इस गंभीर मसले पर कन्नी काटते नजर आते हैं। टूटी-फूटी छोटा सा खपड़ेला मकान में किसी तरह इस परिवार का गुजारा होता है। बीपीएल में नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिला है।

पूरी तरह ओडीएफ प्रखंड संझौली के  इन विकलांग बच्चों के घर में शौचालय भी नहीं है। पिता  तीनों संतानों को कंधे पर टांग कर बाहर ले जाकर शौच करवाते हैं। वैसे खाद्य सुरक्षा के तहत इस वर्ष अनाज मिलने लगा है। अपने तीनों दिव्यांग बेटों के खाने-पीने नहलाने और शौच ले जाने तक की सारी जिम्मेदारी उनके माता-पिता को ही उठाना पड़ रहा है। दो भाइयों का विकलांग पेंशन मिलता है। पर यह राशि असहनीय पीड़ा झेल रहे परिवार के लिए कितना मददगार साबित होगा, सोचा जा सकता है। बहन मधु व उसकी मां अनीता देवी इस उम्मीद में बैठी है कि शायद उसके परिवार को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके या कोई आगे आए, ताकि उसके भाइयों को अच्छे डॉक्टर से दिखा कर उनका बेहतर इलाज करा सके। सबसे दुखद बात है यह है कि देवमुनि का नाम भी आयुष्मान भारत योजना की सूची में नहीं है। जिसके कारण देवमुनि के समक्ष सबसे गंभीर सवाल यह है कि जो अचल संपत्ति थी वह तो संतानों के इलाज में बिक गई। अब तिल-तिल मर रहे संतानों का इलाज कैसे होगा। अगर आयुष्मान भारत योजना में इनका नाम दर्ज नहीं हुआ तो इसका जिम्मेवार कौन है। क्या स्वास्थ्य विभाग द्वारा जानकारी मिलने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई की गई।

प्रस्तुति- प्रमोद टैगोर, वरिष्ट पत्रकार

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