रोहतास एक जिला ही नही इतिहास है, जो बिहार में आर्यों के प्रसार के साथ बढ़ा। सतयुगी सूर्यवंसी राजा सत्यहरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व द्वारा स्थापित रोहतासगढ़ के नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास हुआ। 1582 ई. यानि मुग़ल बादशाह अकबर के समय रोहतास, सासाराम, चैनपुर सहित सोन के दक्षिण-पूर्वी भाग के परगनों- जपला, बेलौंजा, सिरिस और कुटुंबा शामिल थे। 1784 ई. में तीन परगनों- रोहतास, सासाराम और चैनपुर को मिलाकर रोहतास जिला बना और फिर 1787 ई. में यह जिला शाहाबाद जिले का अंग हो गया। 10 नवम्बर 1972 को शाहाबाद से अलग होकर रोहतास जिला पुनः अस्तित्व में आ गया। अंग्रेजों के जमाने में यह क्षेत्र पुरातात्विक महत्व का रहा।
आज रोहतास जिला 46 साल का हो गया व 47 वें वर्ष में प्रवेश किया। इस वर्ष बेहतर प्रबंधन व कार्य करने को लेकर रोहतास जिला को तीन ख़िताब भी हासिल हुए है । सात निश्चय के तमाम कार्यक्रमों व योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में जहां रोहतास को दो पुरस्कार मिले, जिसे यहां के डीएम ने प्राप्त किया। इसके अलावा सिविल सर्विसेज डे पर बेहतर कार्य करने को लेकर यहां की डीडीसी उदिता सिंह को भी पुरस्कृत किया गया। एक सप्ताह पहले सीएम ने सात निश्चय योजनाओं के सफल क्रियान्वयन पर डीएम पंकज दीक्षित को पुरस्कृत किया था। इसके पूर्व इसी वर्ष अप्रैल में सात निश्चय योजना में बेहतर कार्य करने पर जिले को तीसरा खिताब मिला था।
सौर ऊर्जा से लैस सूबे का पहला गांव बना रेहल :
विकास से कोसों दूर रहे कैमूर पहाड़ी पर बसे जिले के नौहट्टा प्रखंड के रेहल गांव सौर ऊर्जा से लैस सूबे का पहला गांव बनने का गौरव हासिल किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने छह अप्रैल 2018 को रेहल पहुंच वहां सौर ऊर्जा चालित पेयजल आपूर्ति, बिजली, एमडीएम के अलावा हर घर नल का जल, पक्की नाली- गली समेत अन्य विकास कार्यों का उदघाटन किया था। पहाड़ पर बसे किसी गांव में बहुत कम समय में हुए विकास कार्यों पर सीएम ने तत्कालीन डीएम अनिमेष कुमार पराशर व उनकी पूरी टीम की काफी तारीफ की थी। अनिमेष कुमार पराशर के कार्यों को यहां के लोग अब भी जेहन में सहेजे हुए हैं।
रोहतास के प्रशासन:-
स्थापना के बाद माधव सिन्हा यहां के पहले डीएम बनाए गए थे। तब से अब तक 39 आइएएस अधिकारियों को जिले की कमान सौंपी जा सकी है। पंकज दीक्षित 39 वें डीएम हैं। वहीं सत्यवीर सिंह 48 वें एसपी हैं। वहीं स्थापना से नौ वर्ष पहले ही रोहतास पुलिस जिला बन गया था। एक जनवरी 1964 को रोहतास को पुलिस जिला का दर्जा मिला था। आईपीएस अधिकारी एसपी शर्मा यहां के पहले पुलिस अधीक्षक बनाए गए थे। उन्होंने एक सप्ताह तक पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य किया था। उसके बाद अब तक चार दर्जन आइपीएस अधिकारी को एसपी के रूप में जिले की कमान सौंपी गई है। जबकि उदिता सिंह ने 31 वें डीडीसी के रूप में छह नवंबर 2017 को कार्यभार संभाला था , जो जिले में योगदान करने वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा की पहली महिला अधिकारी हैं।
जिले का इतिहास:-
आधुनिक काल मे संत दरिया दास, सिद्धनाथ बाबा, नागा बाबा और परम सिद्ध गुरु शिवानंद जी तीर्थ आदि समर्थ महात्माओं ने इस धरती पर अपनी साधना पूरी की तथा ईश्वर भक्ति एवं अध्यात्म का संदेश जन-जन तक फैलाया। रोहतास की धरती शौर्य और अध्यात्म के साथ साहित्य सृजन की भी रही है। यहाँ के संत कवियों ने अपनी लेखनी से जहाँ सार्वभौम मानवता का संदेश दिया वहीं घनारंग दूबे, बच्चू दूबे, इसवी खाँ, वंश राजशर्मा ‘वंशमनि’, राजकुमार सिंह, श्याम सेवक मिश्र, राज राजेश्वरी ‘प्यारे’, मार्कडेय लाल, राम चरित तिवारी, नंद किशोर सिंह, भवानी दयाल सन्यासी, ठाकुर राजकिशोर सिंह, बनारसी लाल काशी जैसे साहित्य सृजक पैदा हुए। राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, हवलदार त्रिपाठी ‘सह्रदय’, डॉ. राम खेलावन पांडेय, रामेश्वर सिंह, कुंज बिहारी प्रसाद, जैसे साहित्य साधकों ने रोहतास ही नहीं, बिहार का नाम भी साहित्य जगत में ऊँचा किए। उर्दू के साहित्यकारों में लाला राम नारायण ‘मौंजूँ’, हसन अली ख़ाँ, शाह अब्दुर्रहमान ‘मशरुर’, हसन जान खां, शुजातअली ख़ाँ, शाह मोइनुद्दीन ‘मोइन’, मिर्ज़ा अब्दुल सत्तार, शाह गुलाम मख़दुम ‘मस्त’, हकीम अब्दुल हमीद, कलीम अहमद ख़ाँ, वज़ीर अली ख़ाँ, मानुस सहसरामी, कैफ़ सहसरामी आदि अनेक कवियों ने भारती का शाश्वत श्रृंगार किया। इसी धरती पर जन्म लेने वाले महामहोपाध्याय पं. शिव कुमार शास्त्री, पं महादेव शास्त्री, पं. श्याम दत्त त्रिपाठी और पं राम रूप पाठक संस्कृत साहित्य में मूर्द्धन्य स्थान के अधिकारी थे। रोहतास की भूमि से साहित्य के साथ-साथ उच्च कोटि की कला का सृजन हुआ है। अगर संगीत को लें तो ध्रुपद-धमार गायकी में धनगांई गाँव के धनारंग जी ने अपना एक घराना ही स्थापित कर दिया। भारत के प्रसिद्ध मृदंग वादक एवं नृत्य शास्त्र के आचार्य बाबू शत्रुंजय प्रसाद सिंह उर्फ लल्लन जी इसी क्षेत्र के मलवार गाँव के रहने वाले थे। बाबू साहब बाद में आरा जाकर बस गए। यदि वास्तु कला को देखा जाय तो यहाँ के मंदिर, मस्जिद, किले और मकबरे पूरे भारत मे अपना शानी नहीं रखते। रोहतास को यदि मूर्तिकला के क्षेत्र में देखें, तो यहाँ गुप्तकाल से लेकर पूर्व मध्ययुग तक के मूर्तिकला के कई केंद्र रहे हैं। ये एक-एक केंद्र मूर्तिकला के एक-एक संग्रहालय हैं।
रोहतास के किले, मकबरे, मंदिर और मस्जिदों के अतिरिक्त यहाँ के प्रपात, बराज एवं बाँध आदि भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। रोहतास को प्रकृति ने क्या नहीं दिया है। पर्वत, झरने, कलकल करती नदियाँ, मैदान, खनिज पदार्थ, वन और वनों में विचरते जीव, सभी कुछ तो है इसके पास। दक्षिण में जंगल और जंगली जीवों से भरी कैमूर पर्वत श्रृंखला अगर इसका मुकुट है, तो पूरब में सोन नद और पश्चिम में कर्मनाशा नदी इसके स्वरूप का निर्धारण करती है। बीच मे अन्नदायी मैदान, जिसे धान का कटोरा कहा जाता है और उसपर अठखेलियां करती नदियाँ तथा इसे अलंकृत करते शक्ति स्वरूप तुतराही, धुँआकुंड, जीवहर कुंड तलहर, चारगोटिया, छनपातर आदि प्रपात। खनिज संसाधनों की दृष्टि से भी विभाजित बिहार में यह क्षेत्र इकलौता है, जहाँ खनिज पदार्थों का विशाल भंडार है। वही 45 साल पहले जब रोहतास जिला बना था तब यहां रोजगार के कई अवसर थे। कल करखाने से समृद्धि थी। लेकिन आज जिले में कल कारखाने लगभग बंद हो गए हैं। रोहतास उद्योग पुंज, पीपीसीएल अमझोर, पत्थर उद्योग के अलावा दर्जनों छोटे बड़े लघु उद्योग बंद हो गए हैं। जद्दोजहद के बाद जिले में जेवीएल की दो फैक्ट्री खुली है। लेकिन सबको रोजगार मुहैया कराने में यह सक्षम नहीं है। यहां तक कि चालू होने के बाद भी जिले के किसानों को दुर्गावती जलाशय परियोजना से समुचित पानी नहीं मिल पा रहा है। कदवन जलाशय (वर्तमान में इंद्रपुरी जलाशय), बेलवई परियोजना, महदेवां जलाशय सहित अन्य एक दर्जन से अधिक छोटी- बड़ी सिंचाई परियोजना अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है।