हिंदी का असाढ़ महीना का अपना अलग महत्व है. कृषि प्रधान पुराने शहाबाद में खरीफ फसल (धान) की शुरुआत का यह महीना किसानों के लिए कई दृष्टि में पवित्र माना जाता है. इस महीने में पड़ने वाले रोहिणी नक्षत्र में धान के बीज डालने की शुरुआत होती है और अदरा नक्षत्र के अंत में धान की रोपाई होने लगती है. मान्यता है कि समय पर वर्षा की आस में भगवान इंद्र को खुश करने के लिए सासाराम के कुराइच महावीर मंदिर में अदरा के मंगलवार और शनिवार को रोट चढ़ाया जाता है.
अदरा नक्षत्र के हर मंगलवार और शनिवार को इस शहर में दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. मेले की खासियत है कि मंदिर परिसर में ही नई दुल्हनें भगवान महावीर को पकवान बनाकर चढ़ाती हैं. अदरा मेला के मंगलवार और शनिवार को सासाराम की सड़कों, गलियों में तिल रखने तक की जगह नहीं बचती है. कुराईच महावीर मंदिर में पहुंचा हर जत्था पकवान के तौर पर थाली में सजा कर रोट लाते है.
इस मंगलवार को नोखा से आई वृद्ध महिला अपनी नव विवाहिता बहू को लेकर आयी थी. उसकी मानें तो उसकी स्वर्गवासी सास ने अंतिम समय में उसे कुराइच महावीर स्थान में हर वर्ष अदरा का रोट चढ़ाने की उसे हिदायत दी थी. उसने अपने पूरे जीवन में इस प्रथा का निर्वाह किया. अब अपनी बहू को इस परंपरा से रूबरू कराने आई थी.
मालूम हो कि पुराने जमाने से ही मंदिर के पुजारियों में शहर के पास स्थित तेतरी गांव का आधिपत्य रहा है. पुजारी सियाराम दुबे बताते हैं, इनके दादा बताते थे कि उनके पूर्वज अदरा के रोट का महत्व बताते थे. इस नक्षत्र में भगवान् महावीर को रोट का प्रसाद चढ़ाने से घर में सुख शान्ति और खुशहाली बरकरार रहती है. इसी के माध्यम से खेती में समय पर वर्षा की उम्मीद की जाती है. उन्होंने कहा कि करीब दो सौ वर्ष पुराने इस मंदिर में शुरू से ही अदरा में रोट चढाने की परंपरा चली आ रही है.
परंपरा के अनुसार इस मौके पर चढ़ाए जाने वाले रोट की खासियत रही है कि पकवान वाले थाल में बाहर से खरीदी हुई कोई भी सामग्री नहीं रहती है. इसके लिए घर में ही शुद्धता का ख्याल रखते हुए महिलाएं गेहूं का नया आटा पिसवाती हैं. संभव हो तो घर में ही जांता/चक्की से आटे की पिसाई की जाती है. उसे शुद्ध घी या तीसी के तेल में ठेकुआ की तरह पकाया जाता है. उसी से पकवान का थाल भरा जाता है. उसमें चंदन, रोरी, सिंदूर के अलावा चावल का अक्षत और फूल तथा घी के दीप लेकर पूजा की जाती है.