आरा-सासाराम छोटी लाइन यादें: संइयां जनि होखीं रंज चलीं चलीं बिक्रमगंज एहिजा से आगे मिली घोसिंया के बजार बलमु

फाइल फोटो: सासाराम स्टेशन पर नैरो गेज ट्रेन

भारत के ब्रिटिश राज में आरा-सासाराम के बीच 1914 में शुरू हुई छुकछुक गाड़ी ने 1978 में पटरियों पर अपना आखिरी सफर पूरा किया. लेकिन जिन लोगों का बचपन और युवावस्था के दिन इस रेल की छुक-छुक के साथ गुजरा है उनके जेहन में उसकी कई स्मृतियां ताजी हैं. किसी समय में ये रेल भोजपुरी समाज के लोकरंग का अंग बन गई थी. कई गांवों में तोइस महबूब रेल पर गीत भी रचे गए थे.

जनकवि अकारी जी ने भी ट्रेन के आखिरी दिन के सफर पर एक मशहूर गीत लिखा था. जिसे शाम को सांस्कृतिक मंडली में लोग इस गीत को साज बाज के साथ गाते थे.
सुनलऽ छोटी लाइन के गाना
केईनीं कजरी में बखाना
भईले आऽरे से रवाना
सुनिलऽ हमार बलमु

फाइल फोटो: आरा से सासाराम के लिए रवाना होती हुई नैरो गेज ट्रेन

उदवंतनगर कसाप नियरानी
अहथिर डेरा गड़हनी ठानी
पानी लेके ओहिजा से
भऽइनी रफ्तार बलमु

चलते-चलते में सेमरांव
चहुंपनीं चरपोखरी का गांव
धाक्का मारि मारि धनौटी
दिहनीं उतार बलमु

पीरो नियरे में ही सुनीं
मन में इहे बतिया गुननीं
आगा चलीं देखीं रावा
अब हसनबजार बलमु

फाइल फोटो: बिक्रमगंज स्टेशन पर खड़ी नैरो गेज ट्रेन

संइयां जनि होखीं रंज
चलीं चलीं विक्रमगंज
एहिजा से आगे मिली
घोसिंया के बजार बलमु

भऽइले सांझ संझौली आके
तकनीं चारो ओर चिहाके
लागे बड़ी डर
हो गऽइल सगरे अन्हार बलमु

ना भऽइले कवनों धोखा
आ गऽइले गढ़नोखा
ओकरे बाद त हो गऽइनीं
लारपुआर बलमु

बत्ती देखनीं हम तमाम
लिहनीं रामजी के नाम
सुसतालऽ अब इहे ह
शहर सासाराम बलमु

बता दें कि बिहार के पुराने शाहाबाद जिले का भौगोलिक आकार काफी बड़ा था. अब शाहाबाद जिले के विभाजन होकर चार जिले बन चुके हैं. भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर. बीसवीं सदी के आरंभ में जिले में पक्की सड़कों का जाल बहुत कम था. इसलिए इस बड़े जिले में परिवहन के लिए रेलमार्ग की जरूरत महसूस की गई. उस वक्त मार्टिन एंड बर्न की ओर से आरा-सासाराम लाइट रेलवे कंपनी का गठन 19 अक्तूबर 1909 को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के तौर पर हुआ और इस मार्ग पर रेल लाइन का निर्माण शुरू हुआ. इस रेल मार्ग के लिए युद्धस्तर पर निर्माण कार्य चला. लगभग 100 किलोमीटर की इस परियोजना पर पांच साल में काम पूरा कर लिया गया.

फाइल फोटो: मार्टिन लाइट रेलवे का शेयर सर्टिफिकेट

साल 1914 में आरा सासाराम लाइट रेलवे पर भाप इंजन से चलने वाली रेलगाड़ियां दौड़ने लगीं. इस रेल मार्ग में 100 किलोमीटर के बीच 15 रेलवे स्टेशन थे. यह एक नैरो गेज रेल परियोजना थी जिसकी पटरियों की चौड़ाई 2 फीट 6 ईंच यानी 76 सेंटीमीटर होती है. यह जिला धान उत्पादन के लिहाज से बिहार का प्रमुख जिला था लिहाजा ये लाइट रेलवे जिले के गांवों के लिए व्यापारिक महत्व भी रखती थी. 1947 में देश आजाद होने के बाद भी इस लाइट रेलवे का सफर बदस्तूर जारी रहा. आजादी के बाद ज्यादातर निजी कंपनियों द्वारा चलाई जाने वाली रेल परियोजनाओं का राष्ट्रीयकरण हो गया. पर इस रेलमार्ग पर रेलगाड़ियों का संचालन मार्टिन एंड बर्न कंपनी के हाथ में ही रहा. 

फाइल फोटो: रेलमार्ग के समांतर सड़क

1975 के आसपास लगातार यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी. रेलमार्ग के समांतर चल रहे सड़क पर चलने वाली बसों की स्पीड रेल से ज्यादा थी. लिहाजा यात्रियों के लिए रेल का सफर ज्यादा समय लेने वाला होने लगा. यात्रियों की कमी के कारण मार्टिन कंपनी को आरा-सासाराम लाइट रेलवे से घाटा होने लगा. आर्थिक वजह से आरा-सासाराम लाइट रेलवे मार्ग पर 15 फरवरी 1978 को आखिरी पैसेंजर ट्रेन ने सफर किया. इसके बाद आरा सासाराम लाइन पर नैरो गेज ट्रेनों का सफर इतिहास बन गया.

फोटो साभार: राज स्ट्रीम यूके

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