अगस्त क्रांति में सासाराम में चार वीरों ने दी थी शहादत

1942 की अगस्त क्रान्ति यानि ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ अंग्रेजी साम्राज्यवाद से मुक्ति-संघर्ष की गाथा है। इसमें हर वर्ग, छात्र, जमींदार, मजदूर और किसान, स्त्री और पुरुष, हिंदू और मुसलमान सभी लोगों ने अपनी एकता एवं बहादुरी का परिचय दिया। ‘अगस्त क्रांति’ या 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को हम भारतीय स्वाधीनता का द्वितीय मुक्ति संग्राम कह सकते हैं जिसके फलस्वरूप 5 वर्ष बाद 1947 में हमें आजादी मिली। पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में ‘यह किसी पार्टी या व्यक्ति का आंदोलन न होकर आम जनता का आंदोलन था जिसका नेतृत्व आम जनता द्वारा ले लिया गया था।’

द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड को बुरी तरह उलझा देख भारतीय नेताओं ने इसे आजादी का आंदोलन छेड़ने का सही समय पाया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया तो महात्मा गांधी ने भी 8 अगस्त की रात बंबई से ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का ऐलान किया। उन्होंने लोगों से ‘करो या मरो’ की मांग की। हालांकि इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

फाइल फोटो

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा के 24 घंटे के भीतर ही कांग्रेस के सभी बड़े नेता अंग्रेजों की गिरफ्त में थे। कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर दिया गया था. ऐसे में जिला और तहसील स्तर के कार्यकर्ताओं के पास भूमिगत होने के अलावा कोई उपाय नहीं था। ब्रिटिश राज ने अपनी मंशा साफ़ कर दी थी। विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश राज भारत के भीतर किसी भी किस्म की अराजकता बर्दाशत नहीं करना चाहता था। कांग्रेस से जुड़े सभी छोटे-बड़े नेता जेल में डाले जाने लगे।

पटना विधानसभा के सामने स्थित शहीद स्मारक

आंदोलन की घोषणा से ठीक चार दिन पहले अहिंसा के सिद्धांत पर अडिग रहने वाले गांधी एक सार्वजानिक सभा में कह रहे थे- “मैं आपसे अहिंसा की मांग नहीं करता। यह आपको तय करना है कि आप इस आंदोलन को किस तरह आगे ले जाते हैं।” कांग्रेस नेतृत्व के जेल में होने की वजह से आंदोलन की बागडोर छात्रों के हाथ में आ गई थी। आंदोलन के शुरुआती दौर में शहरी क्षेत्र ही इसका केंद्र बने रहे। तमाम स्कूलों और विश्वविद्यालयों के छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ कर आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए सड़कों पर उतर गए।

वहीं शाहाबाद में भी ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की आग भभकने लगी। सासाराम में चार वीर सपूतों अपनी शहादत दी थी। शहादत स्थल पर निर्मित गांधी स्मारक वीर सपूतों की याद दिलाता रहता है, जिस पर शहीद कउपा गांव के जैराम सिंह, सासाराम के महंगू राम व जगन्नाथ राम और बचरी गांव के जगदीश प्रसाद के नाम अंकित हैं। इन्हें हर राष्ट्रीय दिवस पर लोग श्रद्धांजलि देते हैं। इतिहास के पन्नों में दर्ज इन वीरों की शहादत की घटना की कहानी कुछ इस तरह है। क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए अंग्रेजी शासन ने टौमी पुलिस की व्यवस्था की थी।

अगस्त क्रांति में शहीद हुए चार वीर क्रांतिकारियों की याद में सासाराम के धर्मशाला के पास बना स्मारक

14 अगस्त 1942 को दिन के करीब 11:30 बजे टाउन हाईस्कूल के पास से छात्रों का एक जुलूस निकला। छात्रावास के पास गोली चली। यह गोली जुलूस का नेतृत्व कर रहे जगदीश प्रसाद को लगी। जुलूस रुका नहीं। बढ़ते हुए रेलवे स्टेशन के सामने आ डटा। उस समय पुलिस की दो जीपें मालगोदाम की ओर से आ रही थीं। क्रांतिकारियों ने उनका रास्ता रोक लिया। संघर्ष स्वभाविक था। क्रांतिकारियों के पास रोड़े(पत्थर) थे और अंग्रेजी टौमी पुलिस के पास गोली। दोनों ओर से संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में तीन लोग शहीद हो गए। जबकि सासाराम के कोठाटोली मोहल्ले के बृजकुमार लाल, मोहल्ला के मंडई के जवाहर भगत, टकसाल संघत के गौ सिंह, चंवरतकिया के लक्ष्मण यादव, खिड़की घाट के देऊ राम, लश्करीगंज के गुलाब राय, महावीर स्थान के शिवपूजन सिंह, लखुनसराय के रामकीरित महतो तथा करगहर गांव के मुसाफिर राम गोली लगने से घायल हुए थे।

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