फोटुआ देखेे हैं? ई बाबाधाम का परसादी है.. थोड़ा-सा खाकर देखिएगा, करेजा जुड़ा जाएगा.. जब हम बुतरू हुआ करते थे, उस टाइम सावन में सबसे बेशी इंतजार इसी का रहता था.. गांव के चौक से बाबाधाम के लिए बस खुलता था.. काँवरिया सब भोरे से गेरुआ वस्त्र पहिने आ कांवर लेके आ जाते थे.. जैसे ही बस हौरन देता, बोल बम के नारा से आसमान हिल जाता.. हमलोगों का भी खूब मन होता था कि बाबाधाम जाएं लेकिन पप्पा मना कर देते.. बहुत भीड़ होता है ऊँहा, हेरा जाओगे.. इतना भीड़ में कौन खोजेगा तुमको.. बड़ा हो जाना तब जाना.. जइसे ही बस खुलता हम रोते, चिचियाते, पैर पटकते वहां से लौट जाते.. फिर हम बस के लौटने के इंतज़ार में रहते..
पप्पा कांवर लेके बाबाधाम गए हैं.. वहां से बहुते परसादी आएगा, खेलौना आएगा.. इसी इंतज़ार में एक हफ्ता निकल जाता.. पप्पा बाबाधाम से बहुत कुच्छ लेकर आते.. फूलल पैर, चढ़ल आँख, पलास्टिक का डमरू, रबर वाला सांप, चल छैयां-छैयां वाला मूबाइल.. लेकिन हमको इंतजार रहता था बाबा के परसादी का.. चिउड़ा, गोलकी लड्डू आ शुद्ध खोवा के पेड़ा वाला परसादी का.. कब झोरा खुलेगा आ पेड़ा के खुशबू से घर महमहा जाएगा..
दुनिया का सारा मिठाई एक तरफ आ ई परसादी एक तरफ.. इधर मम्मी गरम पानी से पप्पा के फूलल पैर का सिंकाई कर रही है, उधर हम बिलाड़ नियन पाँव दबाके घर में घुस रहे हैं.. मचिया पर चढ़ के खूँटी पर टांगल झोरा में हाथ घुसाए, मुट्ठी में चिउड़ा, गोलकी लड्डू आ पेड़ा मिलाकर मुंह में भकोसे आ सीधा सिटीलाइन धर लिए… पीछे से मम्मी चिल्लाती, अरे बानर, सब तुम ही ठूंस जाएगा त टोला में क्या बंटायेगा! अभी दस घर बांकिए है.. टोला-मोहल्ला के जेतना घर से काँवरिया बाबाधाम जाता, सब घर से परसादी आता था.. आज आ हिंदुस्तान पेपर के टुकड़ा में लपेटल.. एक मुट्ठी चिउड़ा, 10-20 दाना गोलकी लड्डू आ खोआ के बनल पेड़ा.. आ खाली परसादीए नहीं, माला-बद्धी आ रुद्राछ का हाथ में पहिनने वाला भी.. ई हमारे लिए अगिला सावन तक नज़र रक्षा कवच का काम करता.
– अमन आकाश (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में एम.फिल के छात्र हैं)