जानिए कोआथ के बेलगरामी के बारे में

कोआथ का बेलगरामी

एक मिठाई जो नवाबों की हवेली से निकल कर गरीबों की बेटियों के कलेवे की पोटली तक ही नही पहुंची बल्कि एक परंपरा मे बदल गयी. जी, मै बात कर रहा हूं बिहार के ‘बिलगरामी‘ मिठाई की जिसे सामान्य बोल चाल की भाषा मे ‘बेलगरामी’ कहते हैं. वैसे तो बिहार मे खान-पान की एक समृद्ध परंपरा रही है. गौ पालन और घर-घर मे दूध, घी की बहुलता के कारण तरह-तरह की मिठाइयां (मेथी के लड्डू, तीसी और रागी के लड्डू, ढकनेसर, गुझिया) घरों मे बनतीं और खाई ही नही जाती बल्कि रिश्तेदारों के यहां भी भेजी जातीं. रोहतास जिले के कोआथ मे एक जमींदारी ‘बिलगरामी’ मुसलमानों की हुआ करती थी. इन बिलगरामी मुसलमानों की रईसी के चर्चे एक ज़माने मे आम हुआ करते थे. यहां के कुछ दुर्लभ चीनी मिट्टी के बर्तन राष्ट्रीय संग्रहालय(नेशनल म्यूजियम) मे संग्रहित हैं. इनके बावर्चीखाने की चर्चा इलाके मे थी. इनके बावर्चीखाने के हलवाइयों ने मैदे, घी और चीनी के मेल से अपने मालिकों के नाम पर एक मिठाई तैयार की ‘बिलगरामी’. इस मिठाई के बारे में मशहूर था कि ये इतनी खास्ता हुआ करती थीं कि, इस मिठाई से भरे तश्त पर एक चांदी का सिक्का गिरा दीजिए तो मिठाइयों को तोड़ते हुए सिक्का तले तक पहुंच जाएगा.

कोआथ का बेलगरामी

अब ज़माना बदल गया. ना वैसी गिज़ा रही ना वैसे पचाने वाले और ना वैसे पकाने वाले. घी की जगह रिफाइन्ड तेल का मोयन, और तलने के लिए रिफाइन्ड तेल और इससे जो बिलगरामी आज भी कोआथ मे बन जाती है, वो आपके सामने है. यह मिठाई पूरे बिहार मे बनाई जाती है. नब्बे से सौ रुपया प्रति किलो हर जगह मिल जाती है. बिहारी बेटियों की बिदाई मे खाजा और बिलगरामी साथ भेजने की परंपरा बन चुकी है. आज भी सारी विपरीत परिस्थितियों के बावज़ूद कोआथ के कारीगर जो बिलगरामी तैयार करते हैं. उस बेजोड़ कला का नमूना आप भी गौर फरमाएं.

 

लेखक- निराला बिदेसिया 

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