जैसे इंसान की छाती के बाएं तरफ दिल धड़कता है ना, वैसे ही हिंदुस्तान की छाती के बाएं तरफ बिहार धड़कता हैं. हाँ, दिल की तरह बिहार भी धड़कता है, करोड़ो बिहारियों की ऊर्जा से, उनके नहीं टूटने वाले जज़्बे से और उनके जूनून से. बिहारी होना उतना आसान नहीं है. कुछ तो हमारी खुद की खामियां है उसके ऊपर से दुनिया भर के पूर्वाग्रह और वैसी चुनौतियाँ जो सिर्फ हमारे पहचान की वजह से है. अपनी भाषा में कहें तो दोनों तरफ से एकदम चाम्प दिया जाता है बिहारी को. लेकिन जब रस्सी घिसते-घिसते पत्थर पर निशान कर देती है तो हम भी कम कहाँ हैं. घिसते-घिसाते हम भी अपनी छाप छोड़ ही देते हैं. दुनिया हमें दुत्कारेगी, दबाएगी, नीचा दिखाएगी… लेकिन ऐ भाई… दुनिया तो हम ही बदलेंगे ना? तो आइये ना, बदलते हैं दुनिया को इंसान दर इंसान और जैसे गान्ही बाबा कहते थे दुनिया बदलने के लिए सबसे पहले खुद में उस बदलाव को लाना पड़ता है. त आइये..बिहारी होने का उत्सव मनाया जाये और सबको बताया जाये कि भैया हम आपसे कम नहीं हैं…साथ चलिए, साथ ले के चलिए और ज़ोर से कहिये “जै बिहार”!
भारत की तपोभूमि में बसा
मैं योग्यता का भंडार हूँ,
राष्ट्र, धर्म, शिक्षा का इतिहास संजोए,
देखो मैं ‘बिहार’ हूँ..
महाजनपद का नजरिया मैंने ही दिखलाया था,
मगध का विस्तार कर
पाटलिपुत्र बसाया था..
भारत का सम्राट चंद्रगुप्त
मुझसे ही तो आया था,
खण्ड-खण्ड जोड़ चक्रवर्ती ने
एक भारतवर्ष बनाया था..
जब अज्ञान का अंधियारा
पूरे विश्व पर छाया था,
तब बिहार की मिट्टी पर
नालंदा मैंने बसाया था..
मेरी ही मिट्टी ने देखो
दुनिया को महावीर दिया,
जैन धर्म के ज्ञान ने अज्ञान का संहार किया..
सालों जिन प्रश्नों ने बुद्ध को उलझाया था,
बोध-गया कि धरा ने ही सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बनाया था..
सिखों का दसवाँ अध्याय
मैंने ही तो पूर्ण किया,
पटना की पावन मिट्टी में
गुरु गोविंद ने जन्म लिया..
सहस्त्रबाहु और परशुराम के युद्ध का भी मैं प्रमाण हूँ,
रोहतास की वादियों में बसता
मैं सासाराम हूँ..
पूर्वजों की पिंडदान को लोग इस मिट्टी को आते है,
गया के तट पर तृप्त वो हो जाते है..
अंग्रेजों से आजादी का जज्बा भी मेरी मिट्टी ने खूब दिखाया था,
गाँधी अपने सत्याग्रह हेतु
चंपारण ही तो आया था..
आजाद भारत का पहला नागरिक राजेन्द्र प्रसाद कहलाया था,
पौरूष का यह धनी व्यक्तित्व भी
बिहार से ही तो आया था..
जे.पी. नारायण की नेतृत्व झमता ने
दिल्ली को आँख दिखाया था,
सैलाब सी उठती जन-समूह ने
इंदिरा का तख्त हिलाया था..
चलो तुम्हे अब मैं अपनी
आत्मा से मिलाता हूँ..
आस्था का महापर्व ये
भावनाओं का सैलाब है,
कहते “छठ” इसे
ये प्रार्थना, कलमा, इंकलाब है..
दुनिया पूजती उगते सूर्य को
हम डूबते को भी जल चढ़ाते है,
धर्म और मानवता का अद्भुत संगम
सिर्फ हम बिहारी ही तो दिखलाते है..
इतना प्रचंड इतिहास लिए
मैं 21वीं सदीं तक आया हूँ..
हां, माना पिछली कुछ दशकों ने बिहार को बहोत रुलाया है
जातिवाद, भ्रष्टाचार रूपी सर्प ने मुझे अपना ग्रास बनाया है..
फूहड़ भोजपुरी उद्योग ने युवाओं को खूब भटकाया है
राजनीति ने भी अपना जहर खूब फैलाया है..
इन्ही जहरीले सर्पो से मैं
तुम्हें बचाने आया हूँ..
भटके हुए युवाओं को
मैं राह दिखाने आया हूँ..
उठो! जागों!
और प्रहार करो..
इन सर्पो का तुम संहार करो
फिर जीत करो या हार करो,
पर अपनी मिट्टी पर तुम अधिकार करों..
जाते-जाते मैं तुमकों
एक बात बताते जाता हूँ..
जो भुला अपने इतिहास को,
पहचान न खुद को पाया है..
और जिसने चुमा अपनी मिट्टी को,
वो ही “बिहारी” कहलाया है.