बिहार सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत संस्थाओं और ग्राम कचहरी की निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों को लेकर एक नया आदेश जारी किया है. अब मुखिया पति के सरकारी बैठकों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. सिर्फ मुखिया ही नहीं ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद और ग्राम कचहरी यानी चारों स्तरों की संस्थाओं के किसी बैठकों में अब निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों को बैठक में भाग लेने के लिए अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को मनोनीत करने पर रोक लगा दी गई है.
पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने इसको लेकर पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश जारी कर दिया है. निर्देश के मुताबिक कोई भी महिला जनप्रतिनिधि अब बैठक तथा अन्य तरह के काम के लिए किसी अन्य व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि अधिकृत नहीं करेंगी. इस निर्देश के बाद राज्य के 8072 ग्राम पंचायतों, 534 पंचायत समितियों और 38 जिला परिषदों के कुल 2.47 लाख से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधियों में आधी से अधिक चुनी गई महिला जनप्रतनिधियों को गहरा झटका लगा है. गौरतलब है कि रोहतास जिले में भी 229 पंचायतों में से 120 पंचायतों में महिला मुखिया है.
पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि समय-समय पर जानकारी मिलती रहती है कि त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं की बैठक में महिलाएं खुद भाग न लेकर अपने पति, संबंधी या प्रतिनिधि के माध्यम से उपस्थिति दर्ज कराती है. इस कारण बैठक में कई बार हंगामा होता है या बैठक स्थगित करनी पड़ती है. विभाग अब ऐसी लापरवाही कतई स्वीकार नहीं करेगा. इतना ही नहीं मंत्री का कहना है कि इस तरह छूट कभी नहीं दी जा सकती है. पंचायती राज मंत्री ने कहा कि हर हाल में महिला जनप्रतिनिधि की सभी तरह की बैठकों में उपस्थिति दर्ज कराना सुनिश्चित किया जाएगा और इसके लिए सभी पदाधिकारियों को कड़ाई से पालन करने का निर्देश जारी कर दिया गया है.
बिहार पंचायत चुनाव में 50 फीसदी आरक्षण ने महिलाओं के सिर पर मुखिया, सरपंच और समिति का ताज तो सजा. लेकिन, पंचायत से जुड़े फैसलों और काम में उनकी असल भागीदारी अब भी नहीं हो पाई है. वजह यह है कि महिला जनप्रतिनिधियों की जगह अब भी गांव की सरकार को उनके रिश्तेदार उनके प्रतिनिधि के नाम पर काम कर रहे हैं. कुछेक महिला जनप्रतिनिधियों को छोड़कर अधिकांश महिला जनप्रतिनिधियों की असल हकीकत यही है.
बता दें कि बीते 7 जनवरी को करगहर प्रखंड के मुखिया संघ के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर हुई बैठक में ही महिला मुखिया के बदले उनके पति, पुत्र व ससुर बैठक में शामिल हुए थे. लोगों ने तंज कसते हुए कहा था कि महिला जनप्रतिनिधियों का अधिकार सिर्फ नॉमिनेशन एवं जीत का प्रमाण-पत्र लेने एवं शपथ ग्रहण तक हीं सीमित है. इसके बाद 5 सालों तक उनके पति, पुत्र, ससुर या अन्य परिजन हीं मुखियागिरी करेंगे. महिला मुखिया को सिर्फ हस्ताक्षर के समय हीं उनके मुखिया होने का एहसास होता है. 50 फीसद आरक्षण के बाद भी महिलाओं की सत्ता की चाबी पुरुषों के हाथों में है.