लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है. चैती छठ को लेकर व्रतियों ने सुबह से ही तैयारी कर ली थी. सुबह स्नान ध्यान करने के बाद व्रतियों ने कद्दू-भात विधि के अनुसार बनाया. जिसको ग्रहण कर अब कल खरना की तैयारी की जा रही है. खरना का समय बुधवार को शाम 6:30 बजे के बाद है.
खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होगा. शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दिए जाने के साथ हीं चार दिवसीय छठ महापर्व सम्पन्न हो जाएगा. इस पर्व का खास बात तो यह है कि इस तपिश भारी गर्मी में भी महिलाएं छठ के दौरान लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. दो साल के कोरोना काल के बाद इस साल चैती छठ में श्रद्धालुओं में उत्साह भरा माहौल है. कई जगहों पर तालाब में चैती छठ की पूजा के लिए सफाई की जा रही है. हालांकि चैती छठ पूजा में व्रतियों की संख्या कार्तिक मास के छठ पर्व की तुलना में कम रहती है.
बता दें कि छठ महापर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है. वर्ष में दो बार छठ व्रत मनाया जाता है. दोनों ही व्रत ऋतुओं के आगमन से जुड़ा है. कार्तिक मास में शरद ऋतु की शुरुआत होती है, तो चैत्र मास में वसंत ऋतु. एक में ठंड़ की शुरुआत होती है, तो दूसरे में गर्मी की. बदलते मौसम में दोनों व्रत किया जाता है. इन दोनों ही ऋतुओं में रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है.
इसे शांत करने के लिए सूर्य की आराधना की जाती है, जाे प्रकृति प्रदत पूजा है. पूजा में मौजूद सभी समाग्रियां प्रकृति से जुड़ी होती है. ताकि, रोगों से लड़ने की शक्ति मिल सकें. छठ महापर्व की धार्मिक मान्यता को लेकर आचार्य पंडित रामअवधेश चतुर्वेदी ने बताया कि छठी मईया सूर्य देव की मानस बहन हैं. महिलाएं इस व्रत को अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं. ऐसा माना जाता है कि छठी मईया संतान की रक्षा करती हैं.