12वां रोहतासगढ़ तीर्थ मेला सम्पन्न, अपने पूर्वजों की मिट्टी को नमन कर धन्य हुए आदिवासी

रोहतासगढ़ किला पर वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा आयोजित दो दिवसीय रोहतासगढ़ 12वां तीर्थ मेला का रविवार को समापन हो गया. किला परिसर में रोहतासगढ़ तीर्थ यात्रा महोत्सव के समापन समारोह को संबोधित करते हुए स्थानीय सांसद छेदी पासवान ने कहा कि, जल्द ही कैमूर पहाड़ी के आदिवासियों के चौमुखी विकास के लिए योजना बनाई जाएगी. जिससे उनकी विभिन्न समस्याओं से निजात हमेशा-हमेशा के लिए मिल जाएगा. किला तक रोपवे का निर्माण करा इसे पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित किया जाएगा. आदिवासी संस्कृति और समृद्ध होगी. उन्होंने कहा कि यहां 12 वर्षों से रोहतासगढ़ तीर्थ यात्रा महोत्सव आयोजित कर देश के विभिन्न भागों में रहने वाले आदिवासी भाइयों के पूर्वजों की धरती पर बुलाने का महान कार्य कमेटी द्वारा किया जा रहा है. जिससे आदिवासी संस्कृति और प्रगाढ़ और मजबूत होगी. छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री गणेश उरांव ने कहा कि उनकी संस्कृति की जड़ रोहतास गढ़ किला है. यहां की मिट्टी उनके लिए स्वर्ग समान है. पूजनीय है.


12वें रोहतासगढ़ तीर्थ मेला में कई राज्यों से आदिवासियों ने अपनी-अपनी भाषाओं व रीति-रिवाजों के अनुसार नृत्य-संगीत प्रस्तुत किया. महिला व पुरुषों ने एक साथ मिलकर मानर की थाप पर नृत्य प्रस्तुत किया. कहा कि आदिवासी नृत्य उनकी समृद्ध संस्कृति का हिस्सा है. वहीं ऐतिहासिक करम वृक्ष की पूजा की. यहां पहुंचे लोगों ने पूर्वजों की मिट्टी को माथे से लगा अपने आप को धन्य महसूस किए. उन्होंने बताया कि रोहतास तीर्थ मेला का उद्देश्य है कि दूरदराज व अलग बसे हुए हमारे भाई बंधुओं व आदिवासी समुदाय के लोग यहां पहुंच अपनी मिट्टी व परंपरा से जुड़े रहें. दो दिन तक चलने वाले इस मेले में लोग आपस में इतना ज्यादा घुल-मिल गए कि जाते समय आंखों बरबस नम हो उठी, और आंसू छलक पड़ी.

वही रोहतासगढ़ किला मेड़रा घाट के नीचे रोहतास जन सेवा समिति के द्वारा पनशाला की व्यवस्था की गई थी. जिसका उद्घाटन सांसद छेदी पासवान ने फीता काटकर किया. जहाँ किला पर आने-जाने वाले लोगो के लिए पानी और मीठा की व्यवस्था की गयी थी. मौके पर
मौके पर रोहतास जन सेवा समिति के सदस्य सज्जाद खान, अजय देव, मुकेश पाठक, कमलेश यादव, विशाल देव, विनय कुमार ,घनश्याम मिश्रा, मो० अलाउदीन, सोनू, सुधीर, सरोज, शाहनाज, अवकाश आदि सभी सदस्य किला पर आने-जाने वाले लोगो की सहायता में तत्पर थे.

आपको बता दे कि दुर्भाग्य की बात है कि दुनियाभर के आदिवासी लोगों के आस्था का केंद्र रोहतासगढ़ किला आज भी उपेक्षा का शिकार है, जहां आवागमन की कोई सुविधा आज तक मुहैया नहीं कराई गई है. पैदल चलने के बाद ही इस परिसर तक पहुंचा जा सकता है. जरूरत है ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व कि इस जगह को विकसित करने तथा पर्यटन के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की. रोहतासगढ़ किला परिसर के ऐतिहासिक तथा प्राचीनतम महत्व का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि, किला परिसर में कहीं भी राम और कृष्ण का मंदिर नहीं है. अर्थात राम और कृष्ण के काल यानी त्रेता और द्वापर से भी पहले सतयुग का निर्मित यह किला परिसर है. किवदंतियों के अनुसार इसे राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने निर्माण कराया था जो आज भी अद्भुत और आकर्षक है.

 

रिपोर्ट- मुकेश पाठक
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