नौ अप्रैल से शुरू होगा आस्था का महापर्व चैती छठ

लोकआस्था, सामाजिक समरसता, साधना, आरधना और सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ इस बार नौ अप्रैल मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा. इसको लेकर व्रतियों के घरों में अभी से भक्ति का माहौल बनने लगा है. बेहद खास और अहम पर्व छठ कई मायने में खास होता है. गर्मी और सूर्य की तपिश के बावजूद व्रती दो दिनों तक उपवास रहकर भक्ति में लीन रहते हैं.

चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व नौ अप्रैल को नहाय-खाय से शुरू होगा. 10 को व्रती दिन भर निराहार रहने के बाद शाम को खरना का अनुष्ठान पूरा करेंगे.  इसके बाद  36 घंटे का निराहार आरंभ हो जायेगा. 11 को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जायेगा. 12 अप्रैल यानि शुक्रवार की सुबह व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देंगे. इसके साथ ही लोकआस्था का महापर्व चैती छठ का समापन हो जायेगा. 

बता दें कि पंडित मार्कंडेय शारदे के मुताबिक छठ व्रत का अनुष्ठान बच्चों की रक्षा से जुड़ा है. जिस प्रकार से बच्चे के जन्म के बाद उसकी छठी मनायी जाती है. ठीक उसी प्रकार सूर्य की शक्ति के समक्ष बच्चों की रक्षा की जाती है. इस व्रत के वैज्ञानिक महत्व भी है. वर्ष में दो बार छठ व्रत मनाया जाता है. दोनों ही व्रत ऋतुओं के आगमन से जुड़ा है. कार्तिक मास में शरद ऋतु की शुरुआत होती है, तो चैत्र मास में वसंत ऋतु. एक में ठंड़ की शुरुआत होती है, तो दूसरे में गर्मी की. बदलते मौसम में दोनों व्रत किया जाता है. इन दोनों ही ऋतुओं में रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है. इसे शांत करने के लिए सूर्य की आराधना की जाती है, जाे प्रकृति प्रदत पूजा है. पूजा में मौजूद सभी समाग्रियां प्रकृति से जुड़ी होती है. ताकि, रोगों से लड़ने की शक्ति मिल सकें.

अर्घ्य का भी है वैज्ञानिक महत्व:
डॉक्टर के अनुसार सूर्य देव की उपासना छठ पर्व से जुड़ा है. इसका पौराणिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व है. माना जाता है कि अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है.

उपवास के भी हैं फायदे:
महापर्व छठ में व्रती 36 घंटे तक उपवास रखते हैं. मेडिकल साइंस में भी उपवास के महत्व की चर्चा है. वैज्ञानिक भी मानते हैं कि छठ के समय उपवास से शरीर को काफी फायदा होता है. धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ के कई फायदे बताए गए हैं. विज्ञान का भी मानना ​​है कि छठ एक पर्व नहीं है. ये शरीर और आत्मा की शुद्धि का माध्यम है. शायद यही कारण है कि इसे लोक आस्था का पर्व नहीं महापर्व का जाता है.

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