रोहतास का यह लाल डिजाइन रिसर्च से लोगों को कर रहा जागरूक, एनआईडी में आया था पांचवा रैंक, डिजाइन को ले रोहतास से लंदन तक का किया सफर

बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. राजनीति, प्रशासनिक, बॉलीवुड सहित सभी क्षेत्रों में बिहार के लोगों ने देश में अपनी प्रतिभा से बिहार को नाज करने का मौका दिया है. कुछ ऐसा ही बिहार के रोहतास जिले के लाल एनआईडी में कमाल कर रहा है. जो डिजाइन रिसर्च को ले रोहतास से लंदन तक का सफर किया और अभी डिजाइन के साथ-साथ मेडिसिन पर भी रिसर्च कर रहा है.

जी हां हम बात कर रहे रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन निवासी सूरज कुमार की. बता दें कि 2006 में उन्होंने ऑल इंडिया 23वां रैंक दिल्ली फैशन डिजाइन में दाखिला लिया. 2010 से 2016 तक डिजाइन शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट कोर्स पर रिसर्च करने के साथ बहुत संस्थाओं के डिजाईन कंसलटेंट बने. सूरज अभी तक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लिए ब्रांडिंग, प्रमोशन और इवेंट्स डिजाइन कर चुके हैं. 2014 में डिजाइन रिसर्च सोसाइटी लंदन के सदस्य भी बने. 2015 में ऑल इंडिया 5वां रैंक लाकर एनआईडी में फिल्म मेकिंग कोर्स में दाखिला लिया.

पटना किलकारी में सूरज

वहीं 2017-2018 तक में कई डेमेंटिया/अल्जाइमर के अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन से भी जुड़े. जुलाई 2019 में डेमेंटिया/अल्जाइमर अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च कांफ्रेंस में इनको बतौर स्पीकर आमंत्रित किया गया है. यह कांफ्रेंस लंदन में इन्नोविन्क एजुकेशनल एवं मेडिसिन रिसर्च संस्थान के द्वारा आयोजित किया गया है.

बता दें कि उन्होंने मेडिसिन में रिसर्च तब शुरू की जब उनके पिता जी को अल्जाइमर हुआ. करीब दो साल तक रिसर्च करने के बाद उन्होंने माना कि अभी तक मेडिसिन के दुनिया में अल्जाइमर का इलाज नहीं मिल पाया है. इसलिए अगर इलाज नहीं तो उससे लड़ने का तरीका को डिजाइन रिसर्च करके एक समाधान निकालने का तय किया. उन्होंने बताया कि भूलना उम्र की जरुरत नहीं, बल्कि एक बीमारी हो सकती है. क्योंकि तकनिकी तौर पर दिमाग की नसें सूख जाती है.  जैविक नजरिये से शरीर की कोशिकाएं मरती हैं और उनकी जगह नयोई कोशिकाएं बनती हैं पर डेमेंटिया/अल्जाइमर रोग में कोशिकाएं मरती जरुर हैं पर नयी नहीं बनती.

एक कार्यक्रम में सूरज कुमार

उन्होंने बताया कि, अल्जाइमर का कोई एक कॉमन इलाज इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि हर मरीज का रहन-सहन, जीने का तौर तरीका, दिमाग का इस्तेमाल, वातावरण इत्यादि में अंतर होता है. इन सभी कारणों को व्यक्तिगत रूप से समझ कर व्यतिगत तरीके से देखभाल का तरीका डिजाईन किया जाए. साथ ही उन्होंने अनुरोध भी किया कि, अगर आपके आस-पास ऐसे कोई भी मरीज या बुजुर्ग हों जिनको बहुत ज्यादा भूलने की बीमारी हो तो कृपया करके आप इनसे संपर्क करें. इस से रिसर्च में और भी मदद होगा और आपको अपना बुजुर्गों के सेवा का तरीका मिलेगा.

प्रतीकात्मक फोटो

अल्जाइमर क्या है?: डेमेंटिया/अल्जाइमर रोग को एक पारिवारिक बीमारी कहा जाता है, क्योंकि किसी प्रिय व्यक्ति को धीरे-धीरे गिरावट देखने का पुराना तनाव सभी को प्रभावित करता है. परिवार वालों को अल्जाइमर रोग के बारे में भावनात्मक और व्यावहारिक समर्थन, परामर्श, संसाधन, शैक्षिक जानकारी लेते रहना चाहिये. हमारे यहाँ मान्यता है की उम्र गिरने पर यादास्त गिरेगी ही पर सच्चाई यह है हमलोग जान ही नहीं पते की दरसल हमारे बुजुर्गों को एक बीमारी है. सच्चाई कड़वी जरुर है पर सच यही है. भारत अल्जाइमर से पीड़ित करीब 1.5 करोड़  से अधिक लोगों का घर है और यह संख्या अगले बीस वर्षों में दोगुनी होने की उम्मीद है. अल्जाइमर रोग मनोभ्रंश का सबसे आम कारण ह. यूके में 520,000 से अधिक लोगों को अल्जाइमर रोग के कारण मनोभ्रंश है और यह आंकड़ा बढ़ना तय है. भारत में डेमेंटिया/अल्जाइमर को लेकर सरकार ने कुछ पहल लिए हैं पर वो सब बाहर देश के शोधकर्ताओं के शोध पर आधारित है.

Ad.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here