रोहतास के इस डॉक्टर के मुरीद हो गए थें राष्ट्रपति और ब्रिटिश अधिकारी

15 जुलाई 1899 को सासाराम में एक गरीब वैश्य परिवार में जन्मे दुखन राम की पहचान विधायक से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर के नेत्र विशेषज्ञ के तौर पर मिली. चार साल की आयु थी, पिता का निधन हो गया. पढ़ने लिखने में मेधावी थें तो पढ़ने के लिए खूब मेहनत की. सासाराम शहर के संभ्रांत जमींदार परिवारों के यहां ट्युशन पढ़ाने लगें. गांवों में लगने वाले साप्ताहिक हाटों में कपड़े भी बेचें. 16 साल की आयु में शादी हो गई. उस वक्त बचपन में ही शादी हो जाया करती थी. शादी के बाद भी शिक्षा के प्रति रुझान कम नहीं हुआ. 1920 में कलकत्ता गए औरकलकत्ता मेडिकल काॅलेज से मेडिसिन में ग्रेजुएशन किए. ग्रेजुएशन के बाद मेडिकल इंर्टनशीप के लिए पटना मेडिकल काॅलेज में आ गएं. हायर स्टडी के लिए स्काॅलरशीप मिल गया.

वे ऑप्थमॉलजी यानी नेत्र विज्ञान की पढ़ाई के लिए रॉयल कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स, लंदन चले गए. 1934 में भारत वापस आए. भारत आने के बाद पटना मेडिकल काॅलेज में फैकल्टी बनें. 1944 में प्रोफेसर और ऑप्थमॉलजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट बनें. उसके बाद डॉ. दुखन राम की बतौर नेत्र चिकित्सक लोकप्रियता बढ़ती गई.  उस वक्त बिहार में एक हीं इतना बड़ा अस्पताल था तो पूरे राज्य से लोग आते थे. क्या अमीर क्या गरीब, डॉ. दुखन राम सबका इलाज आत्मीयता से करते थे. मीठी भोजपुरी में ज्यादा बात किया करते थे. 1957 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ राजेंद्र प्रसाद को आंख का ऑपरेशन कराना था. सबकी जुबान पर एक हीं नाम आया, डॉ. दुखन राम सासाराम वाले. इसके बाद दुखन राम को राष्ट्रपति भवन का अवैतनिक चिकित्सा सलाहकार बना दिया गया. पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद भी उनके मुरीद थें.

1959 में दुखन बाबू को पटना मेडिकल काॅलजे का प्रिसिंपल और नेत्र विभाग का प्रमुख बनाया गया. इसके साथ हीं वह बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति भी नियुक्त हुए. आपको जानकर हैरत होगी कि दुखन बाबू रिम्स, रांची के संस्थापकों में से थे. रिम्स का झारखंड में वही स्थान है जो बिहार में पीएमसीएच का. इसके साथ ही वे नेशनल एकेडमी ऑफ़ मेडिकल साइंस और ऑल इंडिया ऑप्थमॉलजी सोसायटी के बिहार यूनिट के फाउंडर रहें. 1954 में उनको इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बिहार यूनिट का अध्यक्ष भी  बनाया गया.

डॉ. दुखन राम, PC- thankyouindianarmy.com

डॉ. दुखन राम आर्य समाज से प्रेरित थे. उनको बिहार राज्य आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष और अखिल भारतीय आर्य प्रतिनिधि सभा के उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया. आर्य समाज की अग्रणी संस्था ने दानापुर के गोला बाजार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल का नामकरण डॉ. दुखन राम के नाम पर कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को अमर बनाया.

देश-दुनिया में वक्त बिताने के बाद डॉ. दुखन राम को अपने घर की याद आई. 1962 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर अपने गृह क्षेत्र सासाराम से विधानसभा चुनाव लड़े और तिलौथू राजपरिवार के वारिस विपिन बिहारी सिन्हा को करीब पांच हजार वोटों से हराकर सासाराम विधानसभा के तीसरे विधायक बने. उनको राजनीति रास नही आई इसलिए वे दोबारा चुनाव नहीं लड़े और पटना लौट गए. वही मेडिकल क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1945 में राय साहेब की उपाधि दी. देश आजाद होने के बाद डॉ. दुखन को 1962 में हीं पद्म भूषण से नवाजा गया तो 1988 में बिहार रत्न से सम्मानित हुए. डाॅ दुखन राम देश स्तर के प्रतिष्ठित चिकित्सक थे पर उनकी कोई फीस नहीं थी. जो दे उसका भी भला, जो ना दे उसका भी भला. करीब 90 साल की आयु में 16 अप्रैल, 1990 को उन्होंने पटना में अंतिम सांस ली. अफसोस है कि इतने महान चिकित्सक को आज की पीढ़ी जानती ही नहीं. आज की पीढ़ी के अधिकांश लोगों ने तो उनका नाम भी नहीं सुना होगा.

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