छठ महापर्व देश को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जोड़ता है. छठ लोकआस्था, प्रकृति, सामाजिक समरसता, साधना, आरधना और सूर्योपासना का महापर्व है. छठ महापर्व अनेकता में एकता का भी संदेश देता है. सूर्योपासना का महापर्व छठ इस बार 31 अक्टूबर से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है. आज खरना, दो नवंबर को संध्या अर्घ्य एव तीन नवंबर को सुबह का अर्घ्य है.
छठ महापर्व पहले मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था, लेकिन अब देश के विभिन्न कोनों में मनाया जाने लगा है. इसमें इस्तेमाल होने वाले सामान न सिर्फ बिहार या झारखंड, बल्कि देश के विभिन्न कोनों से मंगाए जाते हैं. देश के उत्तरी हिस्से कश्मीर के सेब से लेकर दक्षिण के तमिलनाडु के नारियल का उपयोग इस महापर्व में होता है.
पूर्वोत्तर के असम और पूर्व के पश्चिम बंगाल के कबरंगा से लेकर पश्चिम के राजस्थान की लहठी और चूड़ी का उपयोग होता है. नागपुर की नारंगी सहित झारखंड के गोड्डा का शकरकंद, मुजफ्फरपुर की सुथनी और रांची से बड़ा नींबू मंगाया जाता है. हाजीपुर का केला प्रसाद में चढ़ता है. दउरा या डलिया झारखंड से आती है. छोटे बैर इलाहाबाद, मिर्जापुर आदि जगहों से आता है.
इस पर्व में बर्तनों का काफी महत्व है. इसमें पीतल, लोहा और स्टील के कई तरह के बर्तनों का उपयोग होता है. कई लोग पीतल के सूप, पीतल की थाली, गिलास, सहित अन्य बर्तन भी रखते हैं. ये बर्तन उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद, वाराणसी, मिर्जापुर आदि जगहों पर बनाए जाते हैं. वहीं व्रती सूती साड़ियां पसंद करती हैं जो पश्चिम बंगाल और गुजरात से मंगाई जाती हैं. महिलाएं बनारसी साड़ियां भी पहनती हैं. व्रती राजस्थानी लहठी या चूड़ियां भी पहनती हैं, जो राजस्थान के होते हैं.
सुथनी बेचने वाले विकास कुमार ने बताया कि सिर्फ छठ में ही इसका बाजार सजता है. मुजफ्फरपुर की सुथनी को देश के विभिन्न कोने में जहां छठ होता है, वहां भेजी जाती है. वहीं मिर्जापुर के बेर भी विभिन्न जगहों पर भेजे जाते हैं. बर्तन बबलू ने बताया कि धरतेरस के पहले से ही छठ की खरीदारी शुरू हो जाती है. इसके लिए हमलोग दो महीने पहले से ऑर्डर देते हैं. कपड़ा व्यवसायी संजय ने बताया कि छठ व्रतियों के लिए खासतौर से साड़ियों की मांग होती हैं. इसके लिए गुजरात और बंगाल से उसी अनुसार पहले से ऑर्डर के अनुसार मंगाए जाते हैं.
भागलपुर में कई मुसलमान परिवार हैं जो छठ में बद्धी (माला) बनाते हैं. ये बद्धी आसपास नहीं, बल्कि कई प्रदेशों में जाते हैं. यहां के मुस्लिम परिवारों को इस पर्व का इंतजार रहता है. ये धार्मिक एकता को भी दर्शाता है.
यह पर्व बिहार-यूपी के अलावा विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। जहां-जहां बिहार के लोग रहने गए अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और धरोहर के रूप में छठ को भी ले गए और आज यह पर्व को इतना ज्यादा पसंद किया जाने लगा है कि विदेशों में भी अब इसके गीत गूंजने लगे हैं। संतोष सिंह ने बताया कि वह सेना में रहे हैं. कई राज्यों में रहे हैं, लेकिन कई प्रदेशों में छठ होता है और वहां छठ करने वाले तो मिलते ही हैं. विभिन्न प्रदेशों के सामान भी मिल जाते हैं. देश के विभिन्न प्रदेशों को जोड़ने वाला यह पर्व सबसे अलग है.