अतीत के पन्नों में दफन हो गया रोहतास के बौलिया क्वायरी का रोपवे

रोहतास जिले के बौलिया क्वायरी का रोपवे अब अतीत के पन्नों में दफन हो गया. इसका निर्माण अंग्रेजों ने 1919 ई. में कैमूर पहाड़ी स्थित खदानों से जपला फैक्ट्री में लाइम स्टोन ढ़ोने के लिए कराया था.

बिहार का सबसे बड़ा 21 किलोमीटर लंबा इस ऐतिहासिक चुनहट्टा-बौलिया-जपला रज्जूमार्ग का अब इसका वजूद मिट गया. इस रोपवे को देखने के लिए कई राज्यों से लोग यहां आते थे. बौलिया चूना पत्थर खदान रोपवे के लिए ही प्रचलित था.

नौहट्टा में रोपवे का फाइल फोटो

पोर्टलैंड सीमेंट कारखाना देवरी (जपला) में सोन नद पार कर रोपवे द्वारा बौलिया से चूना पत्थर ले जाया जाता था. समय-समय पर निरीक्षण को ले आने वाले अंग्रेज अफसर भी खदान व फैक्ट्री में जाने के लिए इस रोपवे का ही प्रयोग करते थे. कैमूर पहाड़ी की तलहटी में बसे बौलिया व चुनहट्टा के खदानों से ही चूना पत्थर जपला में सीमेंट बनाने के लिए ले जाया जाता था.

फाइल फोटो: रोहतास के कैमूर पहाड़ी के वादियों के बीच से गुजरता रोपवे

फैक्ट्री बंद होने और कंपनी के परिसमापन में चले जाने के बाद वर्ष 1992 में बौलिया क्वायरी में भी काम ठप पड़ गया. जिससे इसमें काम करने वाले चार हजार मजदूर बेरोजगार हो गए. इसके साथ ही क्षेत्र में बदहाली ने भी कदम रख दिया. कंपनी के परिसमापन में चले जाने से रोपवे के रोपवे के चक्के भी थम गए. जुलाई 2018 में कंपनी के स्क्रैप की नीलामी की गयी थी. जिसके बाद अब इस रोपवे का वजूद मिट गया. बौलिया व चुनहट्टा कवायरी के स्क्रैप बने सभी सामान दो करोड़ चार लाख में नीलाम किया गया था. जिसे मां विंध्यवासिनी सप्लायर द्वारा क्रय किया गया था. अब स्क्रैप काटने का कार्य पूरा हो चूका है.

फाइल फोटो: बौलिया में रोपवे का स्क्रैप

बता दें कि इस रोपवे का निर्माण अंग्रेज अफसर सीपी हार्वे की देखरेख में वर्ष 1916 में शुरू हुआ था व 1919 में पूरा होकर लाइम स्टोन की ढुलाई कार्य प्रारंभ हो गया था. वहीं जपला फैक्ट्री ने अपना पहला उत्पादन 16 मार्च 1921  में किया. अंग्रेज अफसर भी खदान व फैक्ट्री में जाने के लिए इस रोपवे का ही प्रयोग करते थे. उनके लिए कुर्सी के साथ अलग ट्राली बनी थी. जब तक पत्थर खदान चलता रहा इस क्षेत्र में चारों तरफ खुशहाली देखने को मिल रही थी. लगभग सभी घरों के लोग अधिकारी, गार्ड या मजदूर के रूप में काम अवश्य करते थे.

फाइल फोटो: बौलिया में रोपवे

खदान व क्वायरी बंद होने के साथ ही इस क्षेत्र में बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी हो गई. यह रोपवे जिले की शान था. पूरे बिहार में इतना लंबा रोपवे  कहीं नहीं था. अब इसका अस्तित्व समाप्त हो गया. स्थानीय लोगों के मुताबिक सोन नदी के बीचोंबीच रोपवे देखने में काफी मनोरम लगता था. खास कर जब सोन नदी में पानी भरा हो.


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