रोहतास प्रारंभ से ही वीरों की भूमि रही है. यहां की सम्यता और संस्कृति अत्यंत समृद्धशाली रही है. तभी तो प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन से पूर्व ही यहां के वीर सपूतों ने अंगरेज के खिलाफ बिगुल बजा दिया था. अंगरेजों को भगाने के लिए जगह-जगह अभियान चलाया जा रहा था. इसी बगावत को शांत करने के लिए अंगरेज सैनिक अफसर कर्नल डीएच डिकेन्स ने 1853 ई. में सोन नहर स्थापित करने की अनुशंसा की थी. आज वही नहर जिले के लिए जीवन रेखा साबित हो रही है. कर्नल डिकेंस द्वारा 1853 में दिए गए प्रस्ताव में थोड़ा संशोधन कर पुन: 1855 प्रस्ताव भेजा गया. 1861 में सर्वेक्षण कार्य पूरा कर रिपोर्ट ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपी गई.
प्रमुख इतिहासकार पीसी राय चौधरी ने शाहाबाद गजेटियर में लिखा है कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने कर्नल डिकेन्स के अनुरोध को स्वीकार कर डिहरी स्थित एनिकट में सोन नदी से नहर निकालने की मंजूरी दे दी. 1868 में नहर बनाने का कार्य शुरू हुआ और 1877 में सोन नहर में पानी छोड़ दिया गया. हालांकि नहर बनने के बाद भी रोहतास में क्रांति की चिंगारी नहीं थमी. 7 जून 1858 को स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी योद्धा निशान सिंह को तोप से उड़ाने के बाद यहां ज्वाला और भड़क गयी.
अंगरेजों द्वारा यहां के लोगों से सहानुभूति प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए गए. सोन नहर का विस्तार कार्य जोर-शोर से शुरू हुआ. इसी क्रम में सूर्यपुरा के राज राजेश्वरी सिंह की उपहार स्वरुप राजा की उपाधि तथा सासाराम के शाह कबीरुद्दीन अहमद को सहसराम नसीरुल हुक्काम का खिताब दिया गया. सोन नहर बनने के बाद तत्कालीन शाहाबाद जिला का 75 प्रतिशत भाग गया जिला का 11 प्रतिशत व पटना जिला का 14 प्रतिशत भाग सिंचित हो गया. 1878 ई. में डिहरी व औरंगाबाद के बारुन के बीच एनिकट में 12469 फीट लम्बा, 120 फीट चौड़ा तथा सोन के साधारण जल स्तर से आठ फीट ऊंचा बांध बांधा गया. जिस पर साढ़े दस लाख रुपये खर्च आए.
सोन नहर प्रणाली के तहत आरा लाईन 84.80 किलोमीटर, गारा चौबे 61 किलोमीटर, बक्सर लाइन 69.86 किलोमीटर, डुमरांव लाइन 64.6 किलोमीटर, सोन उच्च स्तरीय नहर 68 किलोमीटर के अलावे, करगहर, भोजपुर, व कोइलवर वितरणी का निर्माण हुआ. इस नहर से प्रारंभ में आठ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था की गई थी. डिहरी से आरा एवं बक्सर के बीच नहर में परिवहन की व्यवस्था भी थी. जो कालान्तर में समाप्त हो गई. भले ही अंगरेज अफसर का गदर दबाने का सपना सफल नहीं हो पाया. लेकिन इस नहर को रोहतास की लाइफ लाइन के नाम से लोग आज भी याद करते है.
रोहतास की सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास पर शोध कर चुके डा. श्याम सुन्दर तिवारी की मानें तो जब यहां के लोग नहर से पानी मिलने के बाद समृद्ध हुए तो स्वतंत्रता आंदोलन को और बल मिला. गांधी जी के असहयोग आंदोलन के बाद मुठिया प्रथा (प्रत्येक घरों से एक मुट्ठी आनाज दान करने) से स्वतंत्रता आंदोलन को व्यापक बनाने में बल मिला.
-आदर्श तिवारी