मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का जन्मोत्सव रामनवमी का त्योहार बुधवार को रोहतास में श्रद्धा व सादगी के साथ मनाया गया. वहीं मंगलवार की रात शहर व ग्रामीण इलाकों में घरों में कलश रख महिलाओं ने शीतला माता की पूजा की. इस दौरान महिलाएं पूरी रात जागकर पारंपरिक प्रसाद दाल भरी पूड़ी व गुड का खीर बना माता रानी की पूजा की. भोर में उन्हें विदाई की गई. महिलाओं ने मां शीतला की पूजा कर कोरोना महामारी से निजात दिलाने की कामना की, वहीं नौ दिनों तक नवरात्र व्रत कर शक्ति की अधिष्ठात्रि देवी की आराधना में लीन व्रती भी आज हवन व पूजन कर इस संकट से मुक्ति दिलाने की याचना की, ताकि लोग स्वस्थ रह सके.
कोरोना महामारी के संक्रमण को देखते हुए सरकार के निर्देश पर मंदिरों को सार्वजनिक तौर पर पूजा-पाठ के लिए बंद किए जाने के कारण ताराचंडी धाम, भलुनी धाम, कुराईच महावीर मंदिर, तुतला भवानी, झारखंडी मंदिर समेत जिले के अन्य मंदिरों में रामनवमी के उपलक्ष्य पर सन्नाटा पसरा रहा. वहीं शिवघाट से प्रत्येक वर्ष निकलने वाली रामनवमी की विशाल शोभायात्रा भी इस बार नहीं निकाली गई. कोरोना संक्रमण से बचाव को ले जारी गाइडलाइन को सख्ती से पालन कराने को लेकर प्रशासन भी पूरी तरह प्रतिबद्ध दिखा.
बता दें कि यह पूजा पूरी तरह लौकीक है. कर्मकांड से हटकर पूजा की पारंपरिक विधि को अपनाया जाता है. मां शीतला बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों द्वारा पूजी जाती हैं. महिलाओं की माने तो मां शीतला का पूजन पूरी तरह प्राचीन रीति-रिवाजों पर आधारित है. घरों की साफ-सफाई काफी दिनों से की जा रही है. शीतला अष्टमी के दिन लोग माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाते हैं. बाद में इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. शीतला अष्टमी को ऋतु परिवर्तन का संकेत भी माना जाता है. क्योंकि इस दिन के बाद से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु शुरू हो जाती है और गर्मियों में बासी भोजन नहीं खाया जाता है.