अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस: नारायण मेडिकल में 30 नर्सिंग स्टाफ हथेली पर जान लेकर मरीजों को बोल रहे आयुष्मान

फाइल फोटो

कोरोना काल लेकर आया है. सूबे में छ: लोगों की जान लेने वाला यह संक्रमण हर किसी को डरा रहा है. संक्रमण की सोचकर लोग कांप जा रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग वायरस का डटकर मुकाबला कर रहे हैं. मरीजों का उपचार करने में जितनी भूमिका चिकित्सक की होती है. उतनी उनकी उपचार के समय देखभाल में स्टाफ नर्स का भी रोल रहता है. मरीजों का उपचार करना ही सबसे बड़ा मानव धर्म होता है. नर्सिंग स्टॉफ ऐसे हें जो जान हथेली पर रखकर मरीजों को आयुष्मान होने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं. जिले के नारायण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में 30 ऐसे नर्सिंग स्टाफ हैं जो मरीजों की सेवा के लिए अपने परिवार को ही दूर कर दिए हैं. ऐसे कोरोना योद्धा को अंतरराष्ट्रीय दिवस पर पूरा एनएमसीएच शेल्यूट कर रहा है.

सूबे के रहने वाले कार्यकारी नर्सिंग इंचार्ज शशांक शेखर एवं देवघर झारखंड के रहने वाली मैट्रन हेमरन जमुहार के नारायण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में कोरोना संक्रमित लोगों की इलाज में लगे नर्सिंग स्टाफ को कोआर्डिनेट कर रहे हैं. इस समय उन्हें कोविड-19 वार्ड में अपने नर्सिंग स्टाफ के साथ तैनात किया गया है, जहां कोरोना संक्रमित मरीजों की इलाज होती है. यहां कोरोना संदिग्ध मरीजों के सैम्पल भी निकले जाते हैं. ऐसे में यहां तैनात मेडिकल स्टाफ के लिए बड़ी चुनौती होती है. हेमरन अपने नर्सिंग टीम के साथ रोज ऐसी चुनौतियों का सामना करती हैं. मेडिकल स्टाफ हर मरीज की जान बचाने के लिए हर तरह सेवा करते हैं. नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि कोरोना वार्ड में वो हमेशा पीपीई किट में रहते हैं. कोई समस्या नहीं होती है. खुशी यह है कि वह मरीजों की सेवा कर उनकी जान बचा रहे हैं. मैट्रन का कहना है कि सैकड़ों किलोमीटर दूर से आकर वह नौकरी कर रही हैं और हर दिन चुनौतियों से सामना भी कर रही हैं. एक चूक जान पर बन सकती है. हमेशा जान हथेली पर रहती है. परिवार को इसीलिए सैकड़ों किलो मीटर दूर देवघर भेज दी हूं. नोडल शशांक शेखर बताते है कि टीम वर्क और आत्मविश्वास के कारण कोरोना मरीजों के इलाज में बहुत मदद मिली है.

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बता दें कि दो सप्ताह पहले नारायण मेडिकल कॉलेज में मरीजों के इलाज में लगे दो स्टाफ संक्रमित हो गए थे. जिनमें से एक नर्सिंग स्टाफ भी थे. ये पहले से ही क्वारेंटाइन थे और कोरोना को मात दे अब ठीक हो चुके है. इन स्टाफ के पीड़ित होने के बावजूद मरीजों के इलाज में जुटे डॉक्टरों व स्टाफ के हौसले में कभी भी कमी नहीं आई है. वे 24 घंटे ड्यूटी पर डटे हैं.

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