रोहतास के इस गांव में बेटियों को पंख लगा रहा ‘लाडो सम्मान’

दुनिया की इस कठिन मंच पर, एक प्रदर्शन मैं भी दिखलाऊंगी. कठपुतली नहीं किसी खेल की, स्वतंत्र मंच पर पंचम लहराऊंगी. यह उक्तियां बेटियों के हौसलों व जज्बों को ले बदलते परिवेश में उनके सामाजिक सम्मान का सार्थक परिणाम है. माता-पिता और अभिभावकों की सही सोच से आज बेटियों के प्रति लोगों की नजरिया भी बदली है. अब तो बेटियों व उनके नारी शक्ति के महत्व को समझते हुए उनके सपनों को संबल देने के लिए कई लोग आगे भी आए हैं. ऐसे ही दो नाम है रोहतास के बिक्रमगंज प्रखंड के धावां ग्राम के प्रभाषचंद्र सिंह उर्फ मंटू सिंह तथा अभिजीत सिंह उर्फ पिंटू सिंह का. दोनों सगे भाई हैं. सगे भाइयों की जोड़ी ने ‘लाडो सम्मान’ की शुरुआत कर क्षेत्र की बेटियों की उड़ानों को पंख दी है. इससे ग्रामीण क्षेत्र के खेतों की पगडंडियों पर दौड़ लगाने वाली गांव की लाडो में उड़ान भरने को ले न सिर्फ संबल मिला है बल्कि उन्हें एक अलग पहचान भी मिली है.

लगातार नौ वर्षोंं से दी जा रही ‘लाडो सम्मान’ ने गांव की बेटियों के सम्मान को बढ़ाने केे साथ उन्हें हौसलों व जज़्बों से लवरेज कर मुकाम तक पहुंचाने को ले प्रेरित भी किया है. आज तो लाडो सम्मान ने क्षेत्र की बेटियों के हौसलों की उड़ान को पंख देने में वरदान साबित होने लगा है. दोनों भाई मंटू सिंह व पिंटू सिंह की इस प्रयास की सराहना पूरे जिले में हो रही है. अब तक पांच सौ से अधिक बेटियां ‘लाडो उत्सव’ की हिस्सा बन व लाडो सम्मान पाकर महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बेहतर कड़ी जोड़ रही हैं. फिलहाल लाडो उत्सव क्षेत्र की बेटियों के लिए वैसी कड़ी बन चुकी है, जिसमें बेटी बचाओ व बेटी पढ़ाओ अभियान की सार्थकता को भी गति प्रदान की है.

लाडो सम्मान की शुरुआत 2012 में हुई थी. पहले वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाली दो दर्जन बेटियों को सम्मान दी गई थी. वह गांव की वैसी बेटियां थी, जो बेहतर कार्य तो कर रही थी. पर सामाजिक सम्मान के अभाव में उनके कार्यों की कोई पहचान नहीं थी. लाडो सम्मान ने उनके हौसलों को मजबूती दी व उन्हें एक पहचान भी मिली. लाडो उत्सव के संयोजक मंटू व पिंटू सिंह बताते हैं कि फिर कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अबतक लाडो सम्मान का क्रम जारी है. शिक्षा, संगीत, सिलाई-कढ़ाई, पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण जैसे सरोकारों पर कार्य करने वाली पांच सौ से अधिक बेटियों व महिलाओं को लाडो सम्मान से नवाजा जा चुका है. बेहतर कार्य करने वाली गरीब बेटियों को आर्थिक कमी आड़े न आए, उन्हें मदद भी दी जाती है. दहेज मुक्त शादी करने वाले लड़के-लड़कियां, उनके माता-पिता, बेटियों को निशुल्क शिक्षा देने वाले लोग व संगीत के क्षेत्र में बेटियों को प्रोत्साहित करने वाले लोगों को भी लाडो उत्सव में सम्मान प्रदान की जाती है.

लाडो सम्मान पाने वाली बेटियों का मानना है कि उन्हें ऐसे सम्मान से खुद को साबित करने का हौंसला व जज्बा मिला. कोचस प्रखंड की कुचिला निवासी दिव्यांग प्रियंका छह-सात वर्षो से गौरैया संरक्षण पर कार्य कर रही है. बताती है कि उसके कार्यों को किसी ने सम्मान की नजरिया से नहीं देखा. पर लाडो उत्सव के संयोजक मंटू व पिंटू भैया की पहल पर उन्हें जो बड़े मंच पर सम्मान मिला, उससे न सिर्फ अलग पहचान मिली बल्कि काम करने का जज्बा भी बढ़ा. संगीत के क्षेत्र में प्रसिद्ध गायिका भोजपुर निवासी अंजलि भारद्वाज, काव्या कृष्णमूर्ति , खुशबू सिंह, दीपिका ओझा, अंजली सिंह, नंदिनी, आस्था प्रियदर्शी, अभिनय के क्षेत्र में डेहरी निवासी रंभा, नेहा सिंह, स्वीटी सिंह व गन्ने की रस से बिजली उत्पादन करने वाली शिवानी सिंह, मैट्रिक परीक्षा में बिक्रमगंज अनुमंडल टॉपर चांदनी कहती है कि लाडो सम्मान क्षेत्र के बेटियों के लिए सुखद संकेत है. ऐसे सम्मान से बेटियों को खुद को साबित करने का हौंसला मिल रहा है.

बेटी महोत्सव के संयोजक मंटू सिंह और पिंटू सिंह बताते हैं कि महिला के रूप में मां-बेटी, बहन व बहू ने ही पुरुष को काबिल और सशक्त बनाया है. बेटियां आज अपनी काबिलियत के झंडे गाड़ रही है. ऐसे में नारी शक्ति सच्चे सम्मान की हकदार है. सच्चे मायनों में महिला सशक्तीकरण की सार्थकता तभी सार्थक होगी, जब उन्हें सम्मान मिले। लाडो उत्सव के जरिए नारी शक्ति को लाडो सम्मान देने का उद्देश्य है कि बेटियों की पहचान भी बेटों से कम नहीं है.

रिपोर्ट: प्रमोद टैगोर,
वरिष्ठ पत्रकार
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