1911 में शुरू हुई डेहरी-रोहतास के बीच छुकछुक गाड़ी ने 1984 में पटरियों पर किया था अपना आखिरी सफर

ब्रूस चेनेल द्वारा मार्च 1976 में डेहरी-रोहतास पैसेंजर ट्रेन की ली गयी तस्वीर

रोहतास जिले में डेहरी-रोहतास के बीच नैरो गेज वाली रेलवे लाइन संचालित हुआ करती थी. इसका नाम था डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे (DRLR). इस रेल मार्ग का संचालन डेहरी रोहतास ट्रामवे कंपनी करती थी. ये रोहतास इंडस्ट्रीज की ही सहायक कंपनी थी. कंपनी ने अपनी औद्योगिक जरूरतों के लिए ये रेल मार्ग शुरू किया था, साथ ही इस मार्ग पर पैसेंजर ट्रेनों का भी संचालन होता था. यह रेल मार्ग डेहरी-ऑन-सोन से रोहतासगढ़ के किले की तरफ जाता था. इसका मार्ग सोन नदी के समानांतर था. सड़क के किनारे-किनारे इसकी पटरियां बिछाई गई थीं. यह 2 फीट 6 ईंच चौड़ाई वाली लाइट रेलवे थी.

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1907 में आरंभ हुए इस रेल मार्ग को कोलकाता की द ओक्टावियस स्टील कंपनी ने शुरू किया था. कंपनी को मूल रूप से ठेका 40 किलोमीटर लंबी एक फीडर लाइन बनाने के लिए मिला था. यह रेल मार्ग रोहतासगढ़ से दिल्ली कोलकाता रेलमार्ग तक पहुंचने के लिए डेहरी-ऑन-सोन तक बनाया जाना था. बाद में ये ट्रामवे कंपनी लाइट रेलवे कंपनी में बदल गई. 4 जून 1909 को ओक्टावियस स्टील कंपनी और शाहाबाद जिला बोर्ड के बीच इस रेलवे लाइन को बिछाने के लिए आधिकारिक तौर पर करार हुआ.

जनवरी 1981 में बेसिल रोबर्ट्स द्वारा डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे की सवारी गाड़ी की ली गयी तस्वीर

बाद में इस कंपनी का अधिग्रहण रोहतास इंडस्ट्रीज ने कर लिया. इस कंपनी ने असम के बंद पड़ी दवारा थेरिया लाइट रेलवे की परिसंपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया. रोहतास इंडस्ट्रीज डालमियानगर और आसपास के शहरों में कई तरह के औद्योगिक इकाइयां चलाती थी. इसमें सीमेंट, वनस्पति, एस्बेस्टस, पेपर और बोर्ड, वैल्केनाइज्ड फाइबर आदि प्रमुख थे. अपनी तमाम औद्योगिक जरूरतों को कच्चे माल की सप्लाई और तैयार माल को भेजने के लिए कंपनी इस रेल मार्ग पर ट्रेनों का परिचालन शुरू की थी. बाद में इसपर सवारी गाड़ी का भी परिचालन शुरू किया गया.

डेहरी-रोहतास रेलवे 1911 में हुई शुरूआत: डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे (DRLR) पर यात्री गाड़ियों के संचालन की शुरूआत 1911 में हुई. 1913-14 में इस रेल मार्ग पर 50 हजार से ज्यादा सवारियां और 90 हजार टन से ज्यादा माल की ढुलाई की जा रही थी. इस लाइट रेलवे पर खास तौर पर रोहतास इंडस्ट्रीज की कच्चे मालों को कैमूर पहाड़ी से ढुलाई की जा रही थी. 1927 में डेहरी रोहतास लाइट रेलवे के 40 किलोमीटर मार्ग का विस्तार ढाई किलोमीटर बढ़ाकर रोहतास से रोहतास फोर्ट तक किया गया. वहीं रोहतास इंडस्ट्रीज के कारण इस लाइन का विस्तार 25 किलोमीटर और आगे तक हुआ. इस लाइन को तिउरा पीपराडीह तक बढ़ाया गया. इस तरह रेलमार्ग की कुल लंबाई 67.5 किलोमीटर हो गई.

फाइल फोटो: डेहरी रोहतास रेलवे का लोकोमोटिव (इंजन)

भाप इंजन का दौर: डेहरी रोहतास रेलवे का संचालन अलग-अलग तरह के लोकोमोटिव (इंजन) से होता था. इसकी शुरुआत हंसले द्वारा निर्मित 0-6-2 मॉडल के तीन टैंक लोकोमोटिव से हुई. ये सभी पुराने लोकोमोटिव हुआ करते थे, जो असम से द्वारा थेरिया रेलवे मार्ग के 1909 में बंद होने के बाद यहां लाए गए थे.

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ट्रैफिक बढ़ा:  दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने और देश आजादा होने के बाद इस मार्ग पर ट्रैफिक बढ़ गया. तब जरूरतें पूरी करने के लिए इस पर नया जेडबी क्लास का 2-6-2 लोकोमोटिव भी लाए गए. इन इंजनों का निर्माण हडसन क्लार्क और कुरास माफेई कंपनियों ने किया था. 3 फरवरी 1943 को डेहरी रोहतास लाइट रेलवे को एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के तौर पर पंजीकृत कराया गया. इसका पंजीकृत कार्यालय डालमियानगर में ही था. तब इसकी प्राधिकृत पूंजी 60 लाख रुपये दर्शाई गई थी.

फाइल फोटो: रोहतास इंडस्ट्रीज परिसर में डेहरी रोहतास रेलवे का लोकोमोटिव

देश की आजादी के बाद 1950 से 1970 के दशक में जब डेहरी रोहतास रेल मार्ग के बेहतर दिन चल रहे थे तब दो पैसेंजर ट्रेनें रोज डेहरी और तिउरा पीपराडीह के बीच चलाई जाती थीं. ये सफर कुल 67.5 किलोमीटर का हुआ करता था. इस मार्ग पर मुख्य रूप से मार्बल और पत्थरों की ढुलाई होती थी. जिन्हें डेहरी में ब्राडगेज लाइन तक पहुंचाया जाता था. इस रेलवे ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे रेल कंपनियों से सेकेंड हैंड यानी पुराने इंजनों को भी खरीदा. 1959 में सेंट्रल रेलवे से हडसवेल क्लार्क का लोको तो के क्लास 2-6-2 लोको को कालका शिमला रेल से खरीदा गया. वहीं केर स्टूअर्ट 2-6-4 इंजन को मार्टिन एंड कंपनी के शाहदरा सहारनपुर रेल मार्ग से खरीदकर मंगाया गया. रेल मार्ग के संचालन के लिए कंपनी ने तकरीबन 413 एकड़ जमीन लीज पर प्राप्त की थी. इस लीज पर प्राप्त जमीन के एवज में कंपनी शाहाबाद डिस्ट्रिक्ट बोर्ड को सालाना 10 हजार रुपये की राशि दिया करती थी.

कबाड़ के रूप में रोहतास इंडस्ट्रीज परिसर में पड़ा डेहरी रोहतास रेलवे का लोकोमोटिव

1970 के बाद डेहरी रोहतास मार्ग पर अच्छी सड़क बन जाने के बाद छोटी लाइन की इस रेल में यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी. वहीं 1980 के दशक आते-आते रोहतास इंडस्ट्रीज और इसके मार्ग पर अमझोर और बंजारी में चलने वाले उद्योग भी एक-एक कर बंद होने लगे. इन उद्योगों की बंदी और पैसेंजर ट्रेन में यात्रियों कमी के कारण रेल मार्ग घाटे में चलने लगा. देश में ज्यादातर रेल मार्ग ब्राडगेज (167 सेंटीमीटर) की पटरियों पर हैं, उनकी गति काफी अच्छी है. पर अब धीमी गति के कारण नैरो गेज रेलवे लाइनों का संचालन घाटे का सौदा साबित होने लगा था. इन सब कारणों से डेहरी रोहतास रेल मार्ग को बंद करने का फैसला लिया गया. 16 जुलाई 1984 को डेहरी रोहतास रेल मार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया गया. पूरी दुनिया ब्राडगेज पर चल रही थी तब 1970 के दशक में डेहरी रोहतास रेलमार्ग फर्राटे भर रहा था इसलिए 1970 के दशक तक ये रेल मार्ग यूरोप में भी चर्चा का विषय था. पर सन 1984 में इस रेलमार्ग का बंद होना भारतीय मीडिया में कोई बड़ी खबर नहीं बनी.

जब डेहरी-रोहतास लाइट रेल का रोहतास फोर्ट तक परिचालन होता था

डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे के स्टेशन ( 67 किलोमीटर, 16 स्टेशन)

1. डेहरी ओन सोन
2. डेहरी सिटी
3. बड़िहान शंकरपुरी
4. इंद्रपुरी
5. तिलौथू बाजार
6. तिलौथू
7. रामडिहरा
8. तुंबा
9. बंजारी
10. रोहतास (बकनौरा)
11. रोहतास फोर्ट
12. बौलिया रोड
13. महादेवपुरी भद्रा
14. नीमहाट
15. नौहट्टा रोड
16. तिउरा पीपराडीह (आखिरी रेलवे स्टेशन)

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