पटना हाईकोर्ट ने केंद्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से बन रहे नेशनल हाइवे की समीक्षा करते हुए कहा कि यहां 14 ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिसमें 80 फीसदी सड़कों में काम नहीं हो पाया है. जबकि 5 से लेकर 10 साल से प्रोजेक्ट में काम चल रहा है. मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा औरंगाबाद और वाराणसी के बीच बन रहे नेशनल हाइवे संख्या-2 2013 से 192 किलोमीटर की सड़कें बन रही है. जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं संज्ञान लेकर नेशनल हाइवे की निर्माणाधीन सड़क के बारे में सम्बन्धित अधिकारियों से जानकारी ली.
हाईकोर्ट ने राज्य के चार डीएम को सख्त लहजे में निर्देश दिया है कि उनके जिलों से गुजरने वाली एनएच निर्माण के लिए अर्जित जमीन के मुआवजे का भुगतान संबंधित रैयतों को करते हुए, अर्जित हुई जमीन पर स्थित हर ढांचे को हटाकर, फौरन एनएचएआई को सौंपे. कोर्ट ने इन सारी कवायदों का डेडलाइन 31 दिसम्बर 2020 को निर्धारित करते हुए गया, औरंगाबाद, रोहतास और कैमूर के जिलाधिकारियों को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया.
उक्त चारों जिले के डीएम की तरफ से कोर्ट में हलफनामा दायर कर यह आश्वासन दिया गया कि भू अर्जन मुआवजे की शेष रकम को 31 दिसम्बर तक भुगतान कर दिया जाएगा. कोर्ट ने उन सभी हलफनामे को स्वीकार करते हुए चारों डीएम को निर्देश दिया कि मुआवजे की भुगतान करने के साथ-साथ 31 दिसम्बर तक अर्जित हुई जमीन हटाने का भी निर्देश दिया.
पहले की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि इन हाइवे निर्माण के लिए भू अर्जन में हुई निष्क्रियता के कारण सूबे में एनएच के निर्माण का काम 5-10 वर्षों से लंबित पड़ा है. सरकार यदि बिहार का विकास चाहती तो सबसे पहले भूमि अर्जन के मामले को सुलझाए.