36 सालों से अपनी खोई रौनक वापस पाने की बाट जोह रहा डालमियानगर

डालमियानगर के रोहतास इंडस्ट्रीज का परिसर

करीब 51 साल तक बिहार के उद्योग जगत का चिराग रहा डालमियानगर के रोहतास इंडस्ट्रीज  समूह पिछले 36 सालों से अपनी खोई हुई रौनक वापस पाने की बाट जोह रहा है. चीनी, कागज, वनस्पति तेल, सीमेंट, रसायन और एस्बेसटस उद्योग के लिए विख्यात रोहतास इंडस्ट्रीज समूह ने 51 साल तक इस क्षेत्र में रौनक बनाए रखी थी. लेकिन जब वर्ष 1984 में देश में डालमियानगर समूह के नाम से मशहूर रोहतास उद्योग पुंज समूह का चिराग जब बुझा तो बिहार के उद्योग जगत में अंधेरा छा गया. 2007 में रेलवे ने कोर्ट में 140 करोड़ की बोली लगा कर 219 एकड़ में फैले मुख्य कारखाने को खरीद लिया. वर्ष 2008 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसमें रेल कप्लस निर्माण कारखाना खोलने के लिये अधारशिला रखी पर यह आज तक पूरा नहीं हुआ. 2009, 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया गया था.

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जानते हैं, इस फैक्ट्री के मजदूर यूनियन की राजनीति से निकले दो लीडर बिंदेश्वरी दुबे और केदार पांडेय बिहार के मुख्यमंत्री बन गये. मगर 17 इकाइयों के जरिये पूरे शाहाबाद के इलाके को संपन्न बनाने वाली डालमियानगर के रोहतास इंडस्ट्रीज को पुनर्जीवित करने का सच्चा प्रयास किसी राजनेता ने आज तक नहीं किया. सच पूछें तो इस औद्योगिक परिसर को वीरान बनाने का कोई गुनहगार है तो अपने राज्य की राजनीति ही है. जब भी चुनाव आता है, तो राजनेता तरह-तरह के वायदे लेकर डालमियानगर पहुंच जाते हैं. यहां ऐसा कर देंगे, वैसा कर देंगे. इस बार तस्‍वीर बदल देंगे. मगर पिछले 36 सालों से लगातार ठगे जा रहे डालमियानगर के लोग और पूर्व कर्मियों के परिवार वाले अब मान चुके हैं कि इस वीराने में कभी बहार नहीं आयेगी.

फाइल फोटो

अब आपको देख कर विश्वास नहीं होगा कि कभी रामकृष्ण डालमिया नामक उद्योगपति ने इस पूरे इलाके की संपन्नता का केंद्र बनाया होगा. यह औद्योगिक परिसर जमशेदपुर के बाद तत्कालीन बिहार का दूसरा सबसे बड़ा परिसर था, जिसने एशिया में अपनी पहचान बनाई थी. विश्वास यह भी नहीं होगा कि इसी फैक्ट्री समूह ने कभी ज्ञानपीठ जैसी संस्था और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबार समूह को जन्म दिया था.

डालमियानगर स्थित रोहतास इंडस्ट्रीज समूह का इकाई

रोहतास इंडस्ट्रीज का कार्यकाल: 1933 में रामकृष्ण डालमिया ने रोहतास इंडस्ट्रीज की स्थापना की और धीरे-धीरे देश के मानचित्र पर एक औद्योगिक केंद्र के रूप में यह स्थापित हो गया. मई 1933 में चीनी का उत्पादन शुरू हो गया था. यहां सीमेंट प्लांट का शिलान्यास 1937 के फरवरी महीने में तत्कालीन गर्वनर मौरिस हैलट ने किया था, जबकि उद्घाटन 1938 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने किया था. उस समय सीमेंट प्लांट के लिए मशीन डेनमार्क से मंगाई गई थी. पेपर फैक्ट्री का उद्घाटन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 4 अप्रैल 1939 को किया था. सोन के किनारे का यह इलाका उद्योग के लिए काफी बेहतर माना जा रहा था. बाद में यहां वनस्पति तेल, साबुन, बिस्कुट, एस्बेस्टस, केमिकल, फाइबर एवं स्टील उपकरण प्लांट भी लगे. सभी को रोहतास इंडस्ट्रियल लिमिटेड की छतरी के अंदर लाया गया. यहां 17 इकाइयां एक साथ काम करने लगीं. यहां पहली उद्योगबंदी 1968 में हुई, जब सुगर मिल को बंद कर दिया गया, हालांकि उस बंदी का अधिक असर नहीं पड़ा. परमानेंट कर्मचारियों को दूसरी इकाइयों में रख लिया गया. तब भी 1500 कर्मी बेरोजगार हुए थे. मगर 9 जुलाई 1984 में एक झटके में रोहतास इंडस्ट्रीज की सभी 17 इकाइयों को बंद कर दिया गया. डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे को भी 1984 में बंद कर दिया गया था. वह भी रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड डालमियानगर का ही अनुषंगी उपक्रम था. वर्ष 1984 में फैक्टरी के बंद होने के बाद करीब 30 करोड़ की लागत से वर्ष 1989 में फैक्टरी का पुनर्वास कार्य चला, लेकिन वर्ष 1995 में पुनः फैक्टरी बंद हो गयी. 1984 में जब रोहतास इंडस्ट्रीज में तालाबंदी कर दी गयी थी, तब रोहतास इंडस्ट्रीज की सभी इकाइयों में लगभग 20 हजार से अधिक स्थायी, अस्थायी कर्मचारी और आपूर्तिकर्ताओं के परिवार बेरोजगार तथा कर्जदार हो गए थे. रोहतास उद्योग समूह की बंदी का प्रभाव परोक्ष-अपरोक्ष रूप से आश्रित समूचे डालमियानगर, डेहरी-ऑन-सोन के बाजार-कारोबार के साथ रोहतास, औरंगाबाद, पलामू और अन्य जिलों के 30 हजार से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी पर पड़ा था.

फाइल फोटो: रोहतास इंडस्ट्रीज समूह का इकाई

मजदूरों की बकाया राशि के भुगतान के लिये न्यायालय ने कारखाने को बेचने का निर्णय लिया. वर्ष 2007 में रेलवे ने कोर्ट में 140 करोड़ की बोली लगा कर इसे खरीद लिया. वहीं रोहतास उद्योग समूह के अकोढ़ीगोला के बांक फार्म की करीब 500 एकड़ भूमि को 18 करोड़ रुपये में और 80 एकड़ का सूअरा हवाई अड्डा 17 करोड़ रुपये बाजार भाव पर बेचे गए.

रेल मंत्रालय द्वारा क्रय किए हुआ रोहतास इंडस्ट्रीज पर लगा भारतीय रेलवे की सम्पति का बोर्ड

रेलवे ने इसके परिसर में रेल वैगन रिपेयर कारखाना, 32.5 टन कैपेसिटी का फ्रेट कॉरिडोर व कपलर का निर्माण सहित अन्य उद्योग लगाने की घोषणा की थी. जिसके लिए उसने राइट्स ग्रुप को कई जिम्मेदारियां भी सौंपी है. कबाड़ बिक चुके हैं और उम्मीद थी कि वर्ष 2018 के अंत तक रेल कारखाना निर्माण का कार्य शुरू हो जायेगा. लेकिन अभी तक बस ये चुनावी घोषणा बन कर रहा चूका है.

रोहतास इंडस्ट्रीज का परिसर

आज जब बिहार की सरकार राज्य में उद्योग को बढ़ाने के लिए तरह-तरह के तिकड़म कर रही है. ऐसे में यहां वीरान पड़ा यह औद्योगिक परिसर क्या सरकार को नजर नहीं आता. यहां की संभावना क्या उन्हें प्रेरित नहीं करती कि इसे फिर से विकसित किया जाये.

रोहतास इंडस्ट्रीज का लोकोमोटिव

ऐसी जानकारी मिलती है कि उस वक्त रोहतास इंडस्ट्रीज पर बिहार राज्य इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का बिजली बिल का 5.18 करोड़ बकाया हो गया था. इसी वजह से इसे 1984 में बंद किया गया. अगर यह वजह सच है तो इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है, क्योंकि कहा जाता है कि कभी इस जगह से उत्पन्न बिजली की सप्लाई दूर-दूर तक होती थी. बहरहाल इस बंदी की वजह से तमाम श्रमिक एक झटके में सड़क पर आ गये, यह इलाका तबाह हो गया.

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