अब ब्रांड बनता जा रहा है चेनारी का गुड़ही लड्डू

चेनारी का लड्डू

गुड़ही मिठाई, खासकर लड्डू का ट्रेंड एक बार फिर तेज हो गया है. सच तो ये है कि शक्कर का अधिक इस्तेमाल करने से डायबिटीज सरीखी बीमारियां बढ़ रही हैं, जबकि कम मात्रा में गुड़ का सेवन करने से अधिक नुकसान नहीं होता. पहले गुड़ के नाम पर कुछ खास मिठाइयों का ही जिक्र होता था. एक मिठाई थी-लकठो, लेकिन अब वो ठेले तक सिमटकर रह गई है दूसरी-चंपारण के इलाके की ‘गुड़ की गोटी’ मशहूर थी. हालांकि इतने साल बाद भी उसकी ख्याति चंपारण की सरहदों को पार नहीं कर पाई. न जाने इसका क्या कारण है. शायद, आधुनिक स्वरूप ना होना. तीसरा- गुड़ के बताशे का जलवा भी फीका हो रहा है, क्योंकि बताशा ही चलन से बाहर है, ऐसे में गुड़ का बताशा कौन खाए. हां, इस बीच गुड़ से बनी बाकी मिठाइयों की धूम जरूर मची है. मसलन- गुड़ का रसगुल्ला, खुरमा और लड्डू. इन सबमें लड्डू की मांग सबसे ज्यादा है.

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गुड़ही लड्डू के तीन यार एक समय था, जब बिहार में गुड़ही लड्डू के तीन केंद्र ही प्रमुख थे. एक- रोहतास जिले का चेनारी, दूसरा- औरंगाबाद जिले का अंबा और तीसरा- ब्रह्मेश्वरधाम मंदिर. वैसे, इन जगहों पर भी गुड़ के लड्डू की ज्यादा दुकानें नहीं थीं. हालिया वर्षों में यहां कई नई दुकानें खुली हैं, जिनसे बाहर भी सप्लाई होने लगी है और छोटे दुकानदार गुड़ का लड्डू बेचकर मिठाईवाले कहलाने लगे हैं. अनूठे जायके और पैसे का फायदा गुड़ही लड्डू का जलवा क्यों बढ़ रहा है, क्या सिर्फ इसलिए कि शक्कर ज्यादा नुकसानदेह है? इस सवाल का जवाब है- हां, ये कारण तो है ही, लेकिन और भी वजहें हैं. जैसे- अलहदा स्वाद. दूसरा- बेहद सस्ता होना. सबसे अच्छी क्वालिटी का गुड़ वाला लड्डू भी 180 रुपए किलो तक मिल जाता है. क्वालिटी का मतलब हुआ- चेनारीवाला, बेसन बूंदीवाला. महीन बूंदी, गुड़ का पाग और ऊपर से तिल का बुरादा. चेनारी स्टाइल गुड़ लड्डू अब सासाराम, कुदरा समेत बहुत-सी जगहों पर मिलने लगा है. धीरे-धीरे ये ब्रांड जैसा बन रहा है. ठीक वैसे ही, जैसे एक समय में सिर्फ गया में मिलने वाला तिलकुट आज पूरे पुरबिया इलाके के हर छोटे-बड़े हाट-बाजार में उपलब्ध है, बनाया भी जा रहा है, लेकिन उसे बेचा गया के नाम पर ही जाता है.

चेनारी का लड्डू

‘क्या भविष्य में गुड़ही लड्डू भी तिलकुट जैसी मिठाई बन जाएगा, जिसे सिर्फ कारीगर तैयार करेंगे और ये सिर्फ बाजार में मिलेगा?’ यह पूछने पर गुड़ का लड्डू बनाने वाले कारीगर मनीष मुस्कराते हुए जवाब देते हैं, ‘देखिएगा, कुछ साल बाद बिहार के घर-घर में बनने लगेगा. एक तो गुड़ को लेकर लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है, दूसरे-घर में बनेगा तो अधिक से अधिक 50 रुपये में एक किलो तक तैयार हो जाएगा. तीसरी सबसे बड़ी बात ये कि इसे बनाना बहुत आसान है. मनीष की मानें तो बिहार में दो तरीके के गुड़ही लड्डू मशहूर हुए हैं. एक- चौरेठ यानी चावल वाला. दूसरा- बेसन वाला.

चौरेठ वाला बनाने का तरीका ये है कि कच्चे चावल भिगो दीजिए. बाद में उसे पीस दीजिए. फिर उसकी बूंदी छानिए. गुड़ का पाग तैयार कीजिए और फिर उसे मिलाकर लड्डू बनाइए. चौरेठ वाले लड्डू को बांधने से पहले सौंफ-तिल भी डाल देते हैं उसमें. एक और है- बेसन बूंदी वाला. तरीका आसान है- बेसन की महीन बूंदी छानिए. गुड़ की चाशनी तैयार कीजिए. उसमें थोड़ा नारियल बुरादा, कटा हुआ किशमिश, तिल मिला दीजिए, फिर उसे लड्डू की तरह बांध दीजिए. देसी घी से बनने लगा तो कुछ दिनों बाद गुड़हीं लड्डू भी 400 रुपए किलो तक बिकेगा.

आलेख: निराला विदेसिया

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