रोहतासगढ़ किला का इतिहास लिखे बोर्ड का मिट रहा वजूद, नहीं कराया जा रहा आलेखन

धूमिल हुआ रोहतासगढ़ किला के पास लगा इतिहास लिखा बोर्ड

रोहतास जिले के कैमूर पहाड़ी पर अवस्थित ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किला परिसर में लगा किले के इतिहास से संदर्भित लिखे बोर्ड का वजूद संरक्षण के अभाव में अब मिटने के कगार पर पहुंच गया है. दोनों बोर्ड पर जगह-जगह काले धब्बे उभरने लगे हैं. भारतीय पुरात्व विभाग के अधीन लगभग 20 किलोमीटर की परिधि में अवस्थित यह भव्य किला आज उपेक्षा का शिकार बन गया है. जिससे यहां आने वाले सैलानियों को किले के इतिहास की जानकारी लेने में परेशानी होती है.

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बोर्ड के अभाव में कुछ कम जानकार लोग सैलानियों को दिग्भ्रमित करते हुए इसे शेरशाह द्वारा निर्मित किला बताते हैं. साथ ही विद्यालयों के बच्चे जब शैक्षणिक परिभ्रमण पर यहां आते हैं, तो उन्हें किसी प्रकार का अभिलेख प्राप्त नहीं हो पाता है. जिससे बच्चे भी मूल जानकारी से वंचित रह जाते है. बताते चलें कि किला परिसर के अलावा मेढा घाट, राजघाट, सिंह द्वार समेत कई जगहों पर इस प्रकार के बोर्ड लगाए गए हैं. किंतु संरक्षण के अभाव में सभी का अस्तित्व मिटता जा रहा है.

धूमिल हुआ रोहतासगढ़ किला के पास लगा इतिहास लिखा बोर्ड

हालांकि इसे लेकर सांसद छेदी पासवान ने भी कई बार केंद्रीय पर्यटन मंत्रलय को पत्र लिखा है.इसके बावजूद अभी तक बोर्ड को पेंट कर दोबारा किला के बारे में जानकारियां नहीं लिखा जा सका है. जिससे यहां आने वाले सैलानियों को किले के इतिहास की जानकारी लेने में परेशानी होती है. नए बोर्ड के लिए पुरातत्व विभाग के पटना कार्यालय को भी सूचना दी गई है, लेकिन अभी तक इस पर कोई कारवाई नहीं की जा सकी है.

जनश्रुतियों के अनुसार रोहतासगढ़ किला त्रेता युग का किला माना जाता है. कहा जाता है कि इस किले का निर्माण हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था. इसके इतिहास के संदर्भ में किला के मुख्यद्वार के पास दो बोर्ड लगे हुए हैं. उस पर लिखा हुआ है कि यह किला सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व द्वारा निर्मित है. विभिन्न कालखंडों में यह किला आदिवासी राजा (खरवार, उरांव, चेरो )के अधीन रहा है. आदिवासी इस किले को अपना शौर्य प्रतीक भी मानते है. बाद में यह किला शेरशाह के अधीन हुआ. शेरशाह के पश्चात इस किले से ही अकबर के शासनकाल में बिहार और बंगाल के सूबेदार मानसिंह ने यहां से शासन सत्ता चलाई है. इसके अलावा और कई ऐतिहासिक तथ्य इस बोर्ड पर लिखे हुए हैं. बोर्ड काफी पुराना हो जाने से इसकी लिखावट अब मिटने के कगार पर पहुंच गया है. दोनों बोर्ड पर जगह-जगह काले धब्बे उभरने लगे हैं. पुरातत्व विभाग द्वारा इसे संरक्षण की दिशा में अभी तक कोई उचित कार्रवाई नहीं की जा सकी है. यह भव्य किला आज उपेक्षा का शिकार बन गया है.

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