रोहतास की संगीता ने स्वरोजगार से दिखाई आर्थिक स्वावलंबन की राह, मिल चुके है कई पुरस्कार

फाइल फोटो: सासाराम के नाबार्ड हाट मेले में संगीता का स्टॉल

कोशिशें अगर ईमानदार हो तो सफलता मिल ही जाती है. इसके लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती, बस हौसले मजबूत होने चाहिए. ऐसी ही कहानी है जिले के नोखा थाना के बिशनपुरा गांव की बहू संगीता गुप्ता की. वह कभी पाठशाला नहीं गईं, लेकिन सकारात्मक सोच और अपनी काबिलियत व हुनर की बदौलत संगीता 20 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रही हैं. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए उन्हें हमेशा प्रेरित करती रहती हैं.

बता दें कि वर्ष 1992 में संगीता की शादी बिशनपुरा में हुई थी. समय व संसाधनों के अभाव में इन्होंने अपनी हुनर का प्रयोग घर से की. इनके इस कार्य में पति संजय प्रसाद गुप्ता ने भरपूर सहयोग किया. वे कई सब्जियों व फलों के आचार व लड्डू बनाकर गांव में बेचना शुरू की. जल्दी ही इनके द्वारा बनाए गए आचार व लड्डू लोगों के पसंदीदा बन गए. इनके कार्यों से प्रभावित होकर गांव की महिलाओं ने मिलकर काम करना शुरू किया. संगीता ने गांव में ही जीविका समूह बनाकर 20 महिलाओं के साथ कार्य करना शुरू किया. वर्ष 2012 तक संगीता मशरूम से जुड़े खाद्य पदार्थों का निर्माण कर रही थी.

महिला दिवस पर बिक्रमगंज के कृषि केंद्र में सम्मानित होते हुयी

संगीता कहती हैं कि 2012 में मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण मिलने की खबर अखबार में पढ़कर कृषि विज्ञान केंद्र पहुंची. यही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना. यहां से संगीता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पहले उन्होंने यहां मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया. उसके बाद फलों व सब्जियों के मूल्य संव‌र्द्धन का प्रशिक्षण प्राप्त किया. प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पहले छोटे स्तर पर मशरूम उत्पादन शुरू किया. उसके बाद फलों व सब्जियों के आचार बनाने का फैसला किया. जल्द ही हमलोगों ने इस कार्य की शुरूआत कर दी. इसकी वजह से हमें काफी फायदा होने लगा. अब जीविका समूह से जुड़ी महिलाएं पूरे साल कार्य करती हैं. जिससे समूह को प्रति महीने 40-50 हजार रुपए की आमदनी होती है.

फाइल फोटो: कांगो में लगे फूड एंड एग्रीकल्चर फेस्ट में संगीता का स्टॉल

संगीता की प्रेरणा से जीविका समूह की अन्य महिलाएं अच्छे पैसे कमाती हैं. संगीता ने बीएचयू से 2015 में महिलाओं के लिए आयोजित स्वरोजगार प्रशिक्षण में जुड़ प्रशिक्षण ली थी. उसके बाद बिक्रमगंज में अपनी खुद की दुकान खोली. दुकानों में बिकने वाले लड्डू व आचार बनाने के लिए उन्होंने 12 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रखी है. दुकानों से जुड़कर महिलाओं को चार से पांच हजार की मासिक आमदनी होती है. संगीता की समूह से जुड़ी महिलाएं आम, नींबू, लहसुन, हरा मिर्च, लाल मिर्च, आंवला, ओल, करेला, मशरूम, सहिजन के साथ मिक्स आचार भी बनाती हैं. पपीते के लड्डू, आंवले के लड्डू, आंवले का मुरब्बा, छेना का बालूशाही, गुड़ के लड्डू समूहों में बनाया जाता है.

फाइल फोटो: सासाराम के नाबार्ड हाट मेले में संगीता का स्टॉल

संगीता को महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने की वजह से कई पुरस्कारों से नवाजा गया है. पिछले साल दिल्ली में कृषि विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इन्हें बेहतर कार्य के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था. बिहार सरकार के अलावा कई अन्य राज्य सरकार के साथ ही कई विभिन्न संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है. महिला दिवस पर आज उन्हें बिक्रमगंज के विज्ञान केंद्र द्वारा सम्मानित किया गया है.

फाइल फोटो: एग्रो फार्म पॉवर अवार्ड-2019 में संगीता सम्मानित होते हुयी

वहीं सासाराम के टाउन हाई स्कूल खेल मैदान में लगे नाबार्ड हाट मेले में इनका भी स्टॉल लगा था. जहां अच्छे खासे संख्या में लोग आए. अपने समूह द्वारा बनाये उत्पाद को राज्य के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में स्टॉल लगाकर बेचने के साथ खरीदारी करने आ रही महिलाओं को संगीता हमेशा ही प्रेरित करती नजर आती हैं. इनका कहना है कि महिलाएं स्वरोजगार के प्रति जागरूक होती हैं तो इसका सबसे ज्यादा फायदा हमारे समाज व देश को होगा.

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