सतुआन: भोजपुरिया परम्परा, संस्कृति आ प्राकृतिक लोकपर्व

चइत के महिना के शुरुवात, फागुन के बीतला के बाद जब खेतिहर खेत सरेहि के ओरि चलेले त घाम आ लूक आपन तेजी देखावे लागेला. कटिया-दंवरी होखे लागेला. नया-नया अनाज घर मे आवेला. आलू कोडइला बेचइला के बाद बूंट, मटर, लेतरी, मसुरी, तेलहन, गंहू जइसन फसल अब अपना-अपना मालिक के घरे पहुंचे खाति तैयार होखे लागेले. आम अपना मोजर के टिकोढा के आकार देबे लागेला ओहि घरी कर्मप्रधान, पर्यावरण के ध्यान मे राखत ख्याल करत भोजपुरियन के निठाह त्योहार जवना मे माटी के खुशबु सोन्ह खुसबू बसल रहेला “सतुआन” आवेला.

सतुआन के दिन भोजपुरिया लोग गंगा नहान अऊर दान-पुन्न कईला के बाद सतुआ आ आम के टिकोरा के चटनी खाला. साथे-साथ कच्चा पियाज, हरिहर मरिचा आ आचार भी रहेला. एह त्योहार के मनावे के पीछे के वैज्ञानिक कारण भी बा. इ खाली एगो परंपरे भर नइखे. असल में जब गर्मी बढ़ जाला, आ लू चले लागेला तऽ इंसान के शरीर से पानी लगातार पसीना बन के निकलले लागेला, तऽ इंसान के थकान होखे लागे ला. रउआ जानते बानी भोजपुरिया मानस मेहनतकश होखेला. अइसन में सतुआ खइले से शरीर में पानी के कमी ना होखेला. अतने ना सतुआ शरीर के कई प्रकार के रोग में भी कारगर होखेला. पाचन शक्ति के कमजोरी में जौ के सतुआ लाभदायक होखेला. कुल मिला के अगर इ कहल जाए कि सतुआ एगो संपूर्ण, उपयोगी, सर्वप्रिय आ सस्ता भोजन हऽ जेकरा के अमीर-गरीब, राजा-रंक, बुढ़- पुरनिया, बाल-बच्चा सभे चाव से खाला.

 

 

असली सतुआ जौ के ही होखेला बाकि केराई, मकई, मटर, चना, तीसी, खेसारी, आ रहर मिलावे से एकर स्वाद आ गुणवत्ता दूनो बढ़ जाला. सतुआ के घोर के पीलय भी जाला, आ एकरा के सान के भी खाइल जाला. दू मिनट में मैगी खाए वाला पीढ़ी के इ जान के अचरज होई की सतुआ साने में मिनटों ना लागेला. ना आगी चाही ना बरतन. गमछा बिछाईं पानी डाली आ चुटकी भर नून मिलाईं राउर सतुआ तइयार.

 

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