मां ताराचंडी शक्तिपीठ: महर्षि विश्वामित्र ने रखा था इस पीठ का नाम तारा, नवरात्रि में अखंड दीप जलाने की है परम्परा

ऐतिहासिक शहर सासाराम से महज छह किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पर्वत की कैमूर श्रृंखला की गोद में मां ताराचंडी का मंदिर है. इस मंदिर के आस-पास पहाड़, झरने एवं अन्य जल स्रोत हैं. यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर का इतिहास अति प्राचीन है. मान्यताओं के अनुसार सती के तीन नेत्रों में से भगवान विष्णु के चक्र से खंडित होकर दायां नेत्र यहीं पर गिरा था. तब यह तारा शक्ति पीठ के नाम से चर्चित हुआ. कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इसे तारा नाम दिया था. दरअसल, यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी. मां तारा इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं. यही स्थान बाद में ताराचंडी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाने लगा.

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मां तारा की प्रतिमा एक गुफा के अंदर विशाल काले पत्थर से लगी हुई है. मां ताराचंडी मंदिर में अवस्थित मां तारा व सूर्य की प्रतिमा तथा बाहर रखी अग्नि, गणेश व अर्घ्य सहित शिवलिंग की खंडित प्रतिमाएं इस स्थान की प्राचीनता के द्योतक हैं. माँ तारा तथा सूर्य प्रतिमाओं की लंबाई 60 सेंटीमीटर है. मां तारा की प्रतिमा प्रत्यालीढ़ मुद्रा में, बायां पैर आगे शव पर आरूढ़ है. कद में अपेक्षाकृत नाटी हैं, लंबोदर हैं व उनका वर्ण नील है. देवी के चार हाथ हैं. दाहिने हाथ में खड्ग व कैंची है. जबकि बाएं में मुंड व कमल है. कटि में व्याघ्रचर्म लिपटा है.

वहीं देवी प्रतिमा के बगल में बारहवीं सदी के खरवार वंशी राजा महानायक प्रतापधवल देव का एक शिलालेख भी है. शिलालेख विक्रम संवत 1225, ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि यानी बुधवार, 16 अप्रैल 1169 का है. जिससे यह प्रतीत होता है कि यह शक्तिपीठ उस जमाने में भी ख्याति प्राप्त कर चुका था. पुराणों, तंत्र शास्त्रों व प्रतिमा विज्ञान में मां तारा व चंडी का जैसा रूप वर्णित है, उसी अनुसार सासाराम में दस महाविद्याओं में दूसरी मां तारा अवस्थित हैं. मां तारा की मूर्ति कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा में अवस्थित है, जो पत्थर पर उत्कीर्ण है. गुफा के बाहर आधुनिक काल में मंदिर का स्वरूप दिया गया है. गुफा की ऊंचाई लगभग चार फीट है.

चैत और शरद नवरात्र के समय ताराचंडी में विशाल मेला लगता है. इस मेले की प्रशासनिक स्तर पर तैयारी की जाती है. रोहतास जिला और आसपास के क्षेत्रों में माता के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है. मां के दरबार में आने वाले श्रद्धालु नारियल फोड़ते हैं और माता को चुनरी चढ़ाते हैं. वही माँ ताराचंडी धाम में पहले शारदीय नवरात्र में अब अखंड दीप जलाने की परम्परा बन गयी है. पहले दो-चार अखंड दीप जलते थे. लेकिन अब कुछ सालों से इसकी संख्या हजारों में पहुँच गई है. शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में ताराचंडी धाम पर अखंड दीप जलाने के लिए दूसरे प्रदेशों से भी लोग पहुँते है. पहले मंदिर के अंदर अखंड दीप जलता था. लेकिन अब दीपों की संख्या इतनी हो गई है कि ताराचंडी कमेटी ने अलग से एक दीप घर का निर्माण कर दिया है. धाम में अखंड दीप की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है. इसे आस्था में अटूट कहें या मन्नते पूरी होने की उम्मीद. इस बार शारदीय नवरात्र में कोरोना के चलते श्रद्धालुओं के पूजा-अर्चना के लिए मंदिर प्रशासन के तरफ से एतिहात बरता जा रहा है.

कहा जाता है गौतम बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां रूके थे. वहीं सिखों ने नौंवे गुरु तेगबहादुर जी भी यहां आकर रुके थे. कभी ताराचंडी का मंदिर जंगलों के बीच हुआ करता था. पर अब जीटी रोड का नया बाइपास रोड मां के मंदिर के बिल्कुल बगल से गुजरता है. यहां पहाड़ों को काटकर सड़क बनाई गई है. ताराचंडी मंदिर का परिसर अब काफी खूबसूरत बन चुका है. श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बेहतर इंतजाम किए गए हैं. मंदिर परिसर में कई दुकानें भी हैं. अब मंदिर के पास तो विवाह स्थल भी बन गए हैं. आसपास के गांवों के लोग मंदिर के पास विवाह के आयोजन के लिए भी आते हैं.

मंदिर के पास ही परशुराम कुंड है. यहां नवनिर्माण तेजी से हो रहा है, जिससे इस स्थान की शोभा और बढ़ चुकी है. इस कुंड के बारे में बताया जाता है कि खाना खाने के बाद इस कुंड का पानी पीते ही तुरंत खाना पच जाता है. यह कुंड अन्य कुंडों से भिन्न है, क्योंकि इस कुंड में बैठने के लिए जगह-जगह पत्थरों के बैठक बने हैं, जिन पर आप बैठकर आसानी से स्नान कर सकते हैं और आपका पैर भी नहीं फिसलेगा. रक्षाबंधन के समय लगभग एक महीने तक यहां लोगों की भारी भी़ड लगती है. कुंड का पूरा वातावरण मनोरम है.

ताराचंडी मंदिर की दूरी सासाराम रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर है. रेलवे स्टेशन से मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं. बौलिया रोड होकर शहर के बीच से जा सकते हैं. एसपी जैन कॉलेज वाली सड़क से या फिर शेरशाह के मकबरे के बगल से करपूरवा गांव होते हुए पहुंच सकते हैं. आपके पास अपना वाहन नहीं है तो सासाराम से डेहरी जाने वाली बस लें और उसमें मां ताराचंडी के बस स्टाप पर उतर जाएं या सासाराम के शेरशाह रौजा रोड से शेयरिंग ऑटो भी ले सकते हैं.

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