चेनारी प्रखंड के कैमूर पहाड़ी श्रृंखला की गोद में बसे शेरगढ़ किला को इको पर्यटन स्थल बनाने के लिए वन विभाग द्वारा काम शुरू कर दिया गया है. लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर पहाड़ी श्रृंखला पर स्थित शेरगढ़ किला पर जाने के लिए वन विभाग द्वारा सीढ़ियों का निर्माण हो रहा है. पहाड़ी पर पहुंचने के लिए पहले कठिन चढ़ाई करना पड़ती थी. किला पर जाने वाले रास्ते में वन विभाग का चेक पोस्ट भी बन रहा है.
साथ ही पहाड़ी पर जाने वाले रास्ते में पर्यटक शेड भी निर्माण हुआ है. पहाड़ी पर चढ़ते वक्त पर्यटक वहां बैठ कर प्राकृतिक का खूबसूरत नजारा देख सकते हैं. पहाड़ी पर चढ़ने के बाद दो किलोमीटर जंगल क्षेत्र में पैदल चलने का रोमांच ही अलग होगा.
पहाड़ी पर चढ़ने के बाद किला तक जाने वाले रास्ते में पर्यटकों के सहूलियत के लिए साईन बोर्ड भी लगाये जाएंगे. घने जंगल के बीच होने के कारण वन्यजीवों की आवाजें भी रोमांचित करेंगी. पर्यटक बेखौफ कैमूर वन्यप्राणी आश्रयणी में प्राकृतिक सुंदरता का नजदीक से अध्ययन कर सकेंगे.
साथ ही रोहतास वन प्रमंडल विभाग शेरगढ़ किले के पुराने भवनों को संरक्षित करने के लिए किला परिसर में उग आयें कंटिली झाड़ियों की सफाई, किले के भूमिगत कमरों की सफाई करा रहा है. बता दें कि अभी छुट्टियों के दिनों में शेरगढ़ किला देखने दर्जनों लोग पहुंचते हैं.
डीएफओ प्रद्युम्न गौरव ने बताया कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शेरगढ़ किला को इको पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि किले तक जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण, किले को संरक्षित करने के लिए किला परिसर में उग आयें कंटिली झाड़ियों की सफाई, किले के भूमिगत कमरों की सफाई वन विभाग द्वारा कराया जा रहा है. पर्यटकों के सहूलियत के लिए साईन बोर्ड लगाये जायेंगे. दुर्गावती से शेरगढ़ किला तक इको टूरिज्म हब के रूप में विकसित किया जा रहा है.
बता दें कि सासाराम से 20 मील दक्षिण-पश्चिम व चेनारी से लगभग 12 किमी दक्षिण में लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर पर श्रृंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है शेरगढ़ का किला. लगभग 6 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैला शेरगढ़ किला को दुर्गावती नदी दक्षिण व पश्चिम से आलिंगन करते हुए बहती है. जिसकी सुनंदरता देखते ही बनती है. इसके नीचे ही दुर्गावती जलाशय परियोजना का विशाल बांध है.
पहाड़ी पर सीढ़ियों से चढने के बाद सिंहद्वार आएगा. जिसके दक्षिण की ओर रास्ता मुख्य भवन की ओर जाता है. सिंहद्वार से लगभग एक किमी दूर दक्षिण में दूसरी पहाड़ी है, जिसके रास्ते में ही एक तालाब बना हुआ है. यह रानी पोखरा के नाम से जाना जाता है. दूसरी पहाड़ी भी प्राचीर से घिरी है. इस भूमिगत किला के अंदर मुख्य महल है. प्राचीर के दरवाजे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं. दरवाजा अब गिरने की स्थिति में है. प्राचीर के भीतर दरवाजे के दोनों ओर दो खुले दालान हैं. कुछ दूर जाने पर भूमिगत गोलाकार कुआं है. भूमिगत कुएं से पूरब में चार मेहराब बनाते खंभों पर टिका चौकोर तह़खाना है. इस तह़खाने से पश्चिम-उत्तर में एक विशाल महल के ध्वंसावशेष बिखरे हैं.