वर्ष 2009 में डेहरी के पहलेजा में वनस्पति एवं खाद्य तेल निर्माता कंपनी जेवीएल एग्रो लिमिटेड ने जेवीएल ऑयल्स एंड फूड्स कारखाना खोला था, जो पिछले वर्ष यानि 2019 दिवालियापन घोषित हुआ और अंततः इस साल अगस्त माह में कारखाना पूरी तरह बंद हो गई. इससे कारखाने में काम कर रहे सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए.
जेवीएल एग्रो इंडस्ट्रीज ने रोहतास जिले के डेहरी के पहलेजा गांव में जून 2009 में अपनी पहली इकाई डालडा एवं रिफाईन कारखाना का शुरूआत की थी. उद्घाटन राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने किया था. तब जेबीएल प्रबंधन ने डेहरी डालमियानगर क्षेत्र को औद्योगिक हब बनाने का प्रयास शुरु किया था.
इसी कड़ी में जेबीएल ने बंद रोहतास उद्योग डालमिया के अकोढ़ीगोला जोरावरपुर छावनी के 500 एकड़ भूमि को 2012 में 1825 करोड़ रुपए में ऋय कर लिया. उक्त भूमि पर वर्ष 2014 में 22 करोड़ रुपए की लागत से उत्तर भारत के सबसे बड़े राइस मिल का निर्माण जेवीएल द्वारा किया गया. जिसका उद्घाटन 2 दिसंबर 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने किया था.
जेबीएल ग्रुप को तब और बड़ी सफलता मिली, जब वर्ष 2015 में केंद्रीय खाद्य संस्करण मंत्री हरसिमरत कौर, केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजना ज्योति तथा क्षेत्रीय सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने मेगा फूड पार्क का शिलान्यास किया था. उक्त भूमि पर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने केन्द्रीय विद्यालय खोले जाने की घोषणा की थी. जेवीएल ग्रुप में भूमि देने की भी घोषणा की थी. यह बिहार का दूसरा बड़ा मेगा फूड प्रोजेक्ट मना जा रहा था.
अकोढ़ीगोला के जोरावरपुर में जेवीएल ग्रुप द्वारा 100 करोड़ रुपए की लागत से सीमेंट फैक्ट्री के साथ-साथ स्टील फैक्ट्री, टेक्सटाइल्स, ऑयल कंपनी, मेगा फूड पार्क समेत दर्जनों छोटी-बड़ी कंपनियां लगाए जाने की घोषणा वर्ष 2012 में की गई थी. आर्थिक मंदी और घाटा दिखाकर दिवाला घोषित होने की प्रक्रिया में पहुंची, जेवीएल ग्रुप कि अन्य इकाइयों पर भी ग्रहण लग गया है.
स्थानीय जानकार अखिलेश कुमार बताते है कि 2009 में उद्घाटन के दौरान स्थानीय निर्दलीय विधायक प्रदीप कुमार जोशी तथा सुशील कुमार मोदी बीच इसका श्रेय लेने के लिए होड़ मची हुई थी कि इस उद्योगपति को हम लाए हैं. कारखाना के उद्घाटन समारोह में न केवल लम्बी-लम्बी भाषण के दौरान उद्योग का जाल बिछाने की वादा किया गया, बल्कि बांक फार्म के जमीन पर भी बड़ा खेल हुआ. जेवीएल एग्रो इंडस्ट्रीज के जेवीएल ऑयलस् एन्ड फूड्स कम्पनी में विस्थापित होने के 10 वर्ष व्यतीत होते-होते ताला लटक गया और जिस उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के कार्यकाल में उद्घाटन हुआ उन्हीं के कार्यकाल में करीब 95 करोड़ राशि का एक तरह से गबन के कारण उक्त कारखाना समापन मे चला गया. 170 कर्मियों का रोजगार समाप्त हो गया और अब उसके नीलामी की प्रक्रिया आरंभ होने की प्रबल संभावना है. जेभीएल प्रबंधन बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के वाराणासी, जौनपुर सहित देश के कई भागों में कारखाना लगाने के लिए बैंक से अरबों रुपये कर्ज लेकर फिर उसे बंदी के कगार पर पहुंचा दिया. कामगारों का कई माह का वेतन आदि का भुगतान भी नहीं किया है.
जेवीएल वाराणसी कार्यालय के एचआर का कहना है कि कंपनी घाटे में चल रही थी. बैंकों का कर्ज था, इसलिए दिवालिया होने के बाद कंपनी का संचालन आईआरबी अपने माध्यम से कर रही थी. पहलेजा स्थित आयल कंपनी के अधिकारी राजेन्द्र ने बताया कि 25 जुलाई से आईआरपी दिल्ली द्वारा उन्हें प्रतिनियुक्त किया गया था. अब कंपनी का लेनदेन उत्पादन समेत आईआरपी दिल्ली के अधीन है. सभी वित्तीय ऑनलाइन और नगदी कार्य पर पूरी तरह रोक है. कंपनी का संचालन आईआरपी द्वारा शुरू किया गया है. अब जेवीएल का कोई स्वामित्व नहीं है. लॉकडाउन के कारण घाटे में चल रही कंपनी को बंद कर दिया गया.