धान का कटोरा कहे जाने वाले रोहतास जिले में कभी 200 विभिन्न प्रजातियों के चावल उपजाएं जाते थे, लेकिन अब लगभग 6 दर्जन प्रकार की धान की प्रजातियां पैदा की जाती है. भौगोलिक वैविध्य के साथ चावल के रूप, तासीर और गुण में भी अंतर यहां देखने को मिलता है. नहरी इलाकों में सुगंधित सोनाचूर की खुशबू यदि सोवियत रूस, जर्मनी और हॉलैंड तक जा पहुंची तो पहाड़ी पानी से उपजा महीन कतरनी अपनी सुकोमल मिठास और छोटे आकार के चलते गृहस्थों के इतराने का कारण बना. रोहतास की संपन्नता के पीछे धान की खेती एक बड़ा और विशेष कारण है.
रोहतास के सोनाचूर चावल को जिसने भी खाया है वह खासियत जानता है. इसे ना केवल स्वाद और सुगंध का राजा कहा जाता है बल्कि अपनी खास कीमत के कारण इस किस्म को किसानों का एटीएम भी कहा जाता है.
रोपनी के समय से ही आने लगती है खुशबू:
बिक्रमगंज थाने में नोनहर आदर्श गांव के रहने वाले विश्वंभर भट्ट बताते हैं कि सोनाचुर सुगंधित चावल है. महीन चावल है. आपको बताएं कि जब इसकी रोपनी होती थी तो बिचड़ा के समय से ही सुगंध आना शुरू हो जाता था. खेत के इर्द-गिर्द दस फीट का क्षेत्र सुगंधित होना शुरू हो जाता था.
रोहतास के बिक्रमगंज क्षेत्र के साथ ही नटवार, दिनारा, नोखा, काराकाट आदि क्षेत्र में अच्छी खेती होती है. वे कहते हैं कि अन्य धानों के मुकाबले कम उपज होती है, एक बीघा में यदि कतरनी 16 बोरा होगा तो सोनाचूर 12 बोरा होगा. लेकिन महंगा होने के कारण यह मेंटेंन कर जाता है. पूरे बिहार में सोनाचूर चावल की मांग तो होती ही है, इसका निर्यात भी किया जाता है.
-रविशंकर उपाध्याय, पटना