अति प्राचीन है भलुनी धाम, नवरात्र में भक्तों की लगती है भारी भीड़

जिला मुख्यालय सासाराम से उत्तर करीब 50 किमी दूर व बक्सर से दक्षिण करीब 50 किमी दूर दिनारा प्रखंड में भलुनी धाम आस्था का केन्द्र है। इसे सिद्ध शक्ति पीठ माना जाता है। इस धाम में यक्षिणी स्वरुप में मां दुर्गा विराजमान है। मां के दरबार में साल में दो बार मेला लगता है। नवरात्र में हजारों की तादाद में भारी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन व पूजन के लिए जुटते हैं।

धाम में नवरात्र के दिनों में सुबह तीन बजे से ही मां के दर्शन व पूजन के लिए भक्तों की लंबी कतार लग जाती है। यक्षिणी भवानी को श्रद्धालुजन गंवई जुबान में भलुनी भवानी कहकर संबोधित करते हैं। श्रीमद् देवी भागवत और मार्कन्डेय पुराण इसकी चर्चा मिलती है। शास्त्रों के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि भगवान इन्द्र ने एक लाख वर्ष तक इस धाम में तपस्या की थी। तब माता ने उनको दर्शन दिया था। ध्यानमग्न इंद्र को सोने के सिंहासनारुढ़ भगवती के दर्शन हुए, जो सजीव रुप को त्यागकर प्रतिमा के आकार में आ गई। कहा जाता है कि कभी यह इलाका घना जंगल था। भालू बहुत संख्या में रहते थे, इसलिए इस धाम का नामकरण भलुनी धाम हो गया।

धाम में मां यक्षिणी पिंड के रूप में विराजमान हैं। माता की प्रतिमा स्थापित नहीं है। फ्रांसीसी यात्री बुकानन ने अपनी पुस्तक ए टूर रिपोर्ट ऑफ नार्दन इंडिया में भी भलुनी धाम का जिक्र किया है। इससे भी इस धाम की प्राचीनता व महत्ता का पता चलता है। किवदंती है कि भगवान परशुराम ने भी इस धाम में यज्ञ किया था। उनका हवन कुंड ही आज पोखरा बन गया है। धाम में सूर्य मंदिर, कृष्ण मंदिर, साईं बाबा का मंदिर, गणिनाथ मंदिर व रविदास मंदिर भी है।

चैत नवरात्र के एक दिन बाद भलुनी धाम में विशाल मेला लगता था। जो अब प्रायः समाप्ति के कगार पर है। क्षेत्र के लोगों का मानना है कि भलुनी मेला में जरुरत के सभी समानों की खरीदारी लोग करते थे, जिसमें देश के कोने-कोने से आकर व्यवसायी एक माह तक अपना दुकान लगाते थे, जिससे सरकार को बेहतर राजस्व प्राप्त होता था। पशुओं के मेला भी लगता था। मनोरंजन के लिए सर्कस, भिखारी ठाकुर के थियेटर के अलावे कई साधन उपलब्ध रहते थे। लेकिन 1990 के बाद मेला के स्वरुप में गिरावट आना शुरु हुआ जो आज समाप्ति की ओर है। अब केवल मेला के नाम पर एक दर्जन छोटे दुकान लगते हैं।

बता दें कि भलुनी धाम में आज से नहीं सैकड़ों वर्ष से बंदरों का बहुत बड़ा जत्था रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह बंदर कभी भी धाम के आसपास स्थित घनघोर बागीचे से बाहर नहीं जाते। न ही ग्रामीणों और किसानों को कोई नुकसान ही पहुंचाते हैं। भलुनी धाम पहुंचने वाले श्रद्धालू प्रसाद के साथ-साथ भारी मात्रा में अनाज और फल-फूल भी लेकर जाते हैं।

एक समय भलुनी धाम के जंगल लगभग 30 एकड़ में फैला था, लेकिन अवैध तरीके से पेड़ों के निरंतर कटाई से जंगल का सम् राज्य सिकुड़ता चला गया। यहां के जंगलों में जड़ी बूटियों का विशाल संग्रह था । लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण सब कुछ समाप्त होने के कगार पर है।

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