शायद हीं कोई बिहारी होगा जो चने और खेसारी के साग का दीवाना न हो, खासकर महिलाओं की साग के प्रति दीवानगी देखते बनती है दिसंबर और जनवरी में साग भात उनके सबसे पसंदीदा भोजनों में से एक होता है, अगर उसमे घी मिल जाये तो सोने पे सुहागा.
दिसंबर और जनवरी में बिहार के गांवों में खेसारी और चना साग की खुशबु हवा में घुली मिलती है. चना और खेसारी के हरे-भरे खेत जिस तरह हरियाली का अहसास कराते हैं ठीक उसी तरह थाली में इसकी मौजूदगी खाने के जायका को कई गुणा बढ़ा देती है.
बनाने की विधि: चने और खेसारी की झारी से उनके कोमल पत्तों को तोड़ा जाता है फिर उसे पानी से धोकर बहुत बारीक़ काटा जाता है. साग को काटने के बाद उसे कढ़ाही में साधारण पंचफोरन से छौंका लगा कर साग के गलने तक पकाया जाता है. साग को पकाने में मसाले का प्रयोग न के बराबर होता है साथ हीं अगर चना और खेसारी के साग में बथुवा, मेथी एवं पालक का साग मिला दिया जाये तो साग का जयका बढ़ता ही है उसके अलावा साग में थोड़ी चिकनाहट भी आ जाती है.
ठंढी के मौसम में बाजार में चना, खेसारी, बथुआ, एवं मेथी का साग प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है. सर्दियों की रात में खाने में चना, खेसारी, बथुआ, एवं मेथी के साग के साथ मक्का या बाजरे की रोटी तथा चावल के साथ इसका स्वाद सिर्फ खाकर ही लिया जा सकता है.
बता दें कि चने का साग खाने में पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है. चने के साग में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, फाइबर, कैल्शियम, आयरन व विटामिन पाये जाते हैं. यह कब्ज, डायबिटिज, पीलिया आदि रोगों में बहुत फायदेमंद होता है. चने का साग हमारे शरीर में प्रोटीन की आपूर्ति करता है इसलिए इसे प्रोटीन का राजा भी कहा जाता है.
बथुआ का साग कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है. इसमें बहुत से विटामिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटैशियम पाए जाते है. बथुआ नियमित खाने से गुर्दे में पथरी होने का खतरा काफी कम हो जाता है. गैस, पेट में दर्द और कब्ज की समस्या भी दूर हो जाती है.
वहीं मेथी में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन सी, नियासिन, पोटेशियम, आयरन मौजूद होता हैं. इसमें फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर आदि भी मिलते हैं जो शरीर के लिए बेहद जरूरी हैं. मेथी पेट के लिए काफी अच्छी होती है. साथ ही यह हाई बीपी, डायबिटीज, अपच आदि बीमारियों में मेथी का उपयोग लाभकारी होता है.