ऐसे दौर में जब धर्म के नाम पर लोग एक-दूसरे से मन में नफरत पाले बैठे हैं। ये कहानी प्रासंगिक हो जाती है। कहानी सासाराम से है। सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी महाराज ने नानकशाही मिशन के प्रचार-प्रसार के लिए उन स्थानों का चयन किया जहाँ जगतगुरु गुरुनानक देव जी अपने पहली उदासी (यात्रा) के क्रम में ठहरे थे। सासाराम में गुरुनानक देव जी के स्थान को चिंन्हित कर संत चाचा फग्गुमल साहिब जी को फग्वाडा (पंजाब) से सासाराम में सेवा लगाई गई।
चाचा फग्गुमल जी ने गुरु जी के हुक्म को मान सासाराम आ गए। यहाँ इनकी मुलाकात एक मुस्लिम पीर हजरत शाहजलाल से हुई। हजरत शाहजलाल पीर फिरदौसिया सिलसिले के सूफी हुए हैं। निरंकार के उपासक दोनों महापुरुषों की पहली मुलाकात ने ही एक दूसरे कोजिगरी यार बना दिया। ये दोनों महापुरुष एक दूसरे के पड़ोसी थे। गुरु तेग बहादुर की आगमन की सूचना ज्यों ही चाचा फग्गुमल साहिब जी को मिला उन्होंने इस खुशी के पैगाम को सबसे पहले अपने दोस्त हजरत शाहजलाल पीर साहिब को दिया। गुरु जी के दर्शन के लिए पीर साहिब के अंदर भी हलचल मची हुई थी।
नवम गुरु तेग बहादर जी महाराज जब परिवार, संगत के साथ 1666ई में सासाराम चाचा फग्गुमल साहिब जी के पास आगमन हुआ एवम सतगुरु के प्रवास के दौरान चाचा फग्गुमल साहिब जी ने अपने जिगरी दोस्त हजरत शाहजलाल पीर साहिब जी को सतगुरु से मिलाया। पीर साहिब गुरु जी से मिल देख कर रोम-रोम से शुकराना किया गुरु तेग बहादर जी महाराज के सासाराम से जाने के कुछ ही दिनों के बाद चाचा फग्गुमल साहिब जी सचखंडवासी (स्वर्गवास) हो गए। शवयात्रा में काफी भीड़ थी। पीर साहिब चाचा फग्गुमल साहिब के स्वर्गवास के समय सासाराम में नहीं थे। शव यात्रा के समय ही सासाराम आये। बड़ी भारी भीड़ को जाते देख कौतुहल वश पुछ बैठे भाई इतनी बड़ी शव यात्रा किसकी है?
लोगों ने बताया कि चाचा फग्गुमल जी की शव यात्रा है। पीर साहिब मंजिल के पास जा करके चाचा फग्गुमल साहिब जी के शरीर का दर्शन करते हुए कहा यार ये दोस्ती कैसी आप चल दिए और हमे कहा तक नहीं खैर चलो हम भी आ रहे है। शव यात्रा से वापस लौट स्नान वजु कर नमाज अदा की और हमेशा के लिए लेट गए। एक तरफ जहाँ गुरु के बाग के पास चाचा फग्गुमल साहिब जी की संस्कार हो रही थी, वही दूसरे तरफ हजरत शाहजलाल पीर साहिब जी की सुपुर्दे-खाक की रस्म अदा की जा रही थी।
इन दोनों महापुरुषों की दोस्ती सासाराम के तारीख की में अमर होकर कौमी एकता के संदेशों को प्रसारित प्रचारित कर रही है। आज भी गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल साहिब जी और हजरत शाहजलाल पीर साहिब की दरगाह आमने सामने मौजूद है। जो प्रेम, भाइचारे और धर्मनिरपेक्षता की बानगी पेश करता है।
Author- सरदार सिमरनजीत सिंह