कहते है कि मन मे विश्वास, दृढ़ इक्षाशक्ति हो तो मनुष्य के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है. आज हम बात करेंगे रोहतास जिले से बिहार प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए रंजीत कुमार साहू की. जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपनी लक्ष्य से समझौता किए बिना सफलता अर्जित की एवं यह भी जानने की कोशिश करेंगे युवाओं के बीच ऐसा क्या कर पाते है कि जहाँ भी जाते है वहीं चर्चा की केंद्र बिंदु हो जाती है.
रोहतास जिले के सासाराम के खिलगंज मुहल्ले के मूलनिवासी रंजीत कुमार की पढ़ाई के प्रति बचपन से ही गहरा लगाव था. उन्होंने 1999 में संत शिवानंद अकादमी सासाराम से 69.28% अंकों के साथ मैट्रिक की परीक्षा पास की, 2001 में एसपी जैन कॉलेज से 74.33% अंकों के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा में सफलता अर्जित की वहीं 2004 में एसपी जैन कॉलेज से 66% अंकों के साथ ग्रेजुएशन में सफलता हासिल की. निम्न मिडिल क्लास घर मे जन्में रंजीत के लिए किसी तरह कोई सरकारी नौकरी में चल जाना एवं घर परिवार की संभालने की जिम्मेदारी कंधे पर आने लगी थी जो कि हर मिडिल क्लास का लड़का चाहता है कि पहले किसी तरह कहीं एडजस्ट कर जाए.
बातचीत के क्रम में रंजीत ने बताया कि वह सासाराम से ही जेनरल कम्पटीशन की पढ़ाई की शुरुआत कर दिए. उस वक्त सासाराम रेलवे स्टेशन पर ग्रुप डिस्कशन का अच्छा माहौल था, वो प्रतिदिन वहां ग्रुप डिस्कशन में जाया करते थे. उन्होंने यहाँ तक बताया कि आज सासाराम रेलवे स्टेशन पर हजारों की संख्या में छात्र उपस्थित होकर अपनी पढ़ाई कर रहे है. ऐसा माहौल बहुत कम ही देखने को मिलता है जहां इतने लोग इकट्ठे होकर खुद पढ़ने के साथ-साथ दुसरो को भी गाइड कर सके. उन्होंने कहा कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले दिन में यह रेलवे स्टेशन नौकरी की फैक्ट्री के रूप में जाना जाएगा. उस स्टेशन से पढ़े सैकड़ो बच्चे रेलवे में एवं विभिन्न जगहों पर कार्यरत है.
साल 2006 की बात है. उन आंखों में ऐसी खुशी मिली कि रंजीत का चयन एक नहीं बल्कि तीन -तीन जगह हो गया. एक सिग्नल मेंटेनर मुंबई, टिकट कलक्टर मुंबई, तो वहीं गुड्स गॉर्ड भोपाल में. रंजीत के लिए यह सपना किसी संजीवनी से कम नहीं था. उनके दो वर्षों का मेहनत झलकने लगा था. अभी यहाँ जॉइनिंग ही नहीं हुई थी कि 2007 में टिकट परीक्षक इलाहाबाद (प्रयागराज) में चयन हो गया. रंजीत ने वर्ष 2007 से 2014 तक इलाहाबाद में कार्य किया. इस बीच वे अपनी पढ़ाई जारी रखे. मन मे कुछ और बनने का जुनून सवार होने लगा था. इसी बीच 2011 में आसूचना ब्यूरो में एक्सयूटीव के पद पर हुआ लेकिन वह जॉइन नहीं किए और अपनी तैयारी में लगे रहे. वर्ष 2014 में रंजीत ने फिर एक बार सफलता बिहार कर्मचारी चयन आयोग में अर्जित की और वह मार्च 2014 में बिहार सचिवालय सेवा में पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में अपनी सहायक के पद पर अपनी सेवा देने लगे. उन्होंने अपने 5 सालों के कार्यो में सचिवालय सेवा के अधिकार के लिए एकजुट होकर खूब लड़ाई लड़ी. उन्होंने बताया कि मेरे अंदर यह बचपन से ही स्वभाव रहा है कि मैं जितना अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहा हूँ उतना ही अधिकार के भी प्रति. बताते चले कि रंजीत ने यहाँ खुब सुर्खिया बटोरी.
रंजीत उस लम्हे को याद करते है किस तरह थोड़ा टेक्निकली प्रॉब्लम की वजह से पहले प्रयास में सफलता अर्जित करने में चूक गए थे लेकिन इससे उनका मनोबल टूटने की वजह और बढ़ गया था जबकि दिन प्रतिदिन घर में व्यस्तता, ऑफिस के काम, परिवार में पत्नी की खराब तबियत के प्रति चिंता एवं भागदौड़ के बावजूद भी अपनी संघर्ष को जारी रखना एवं फैमिली भी काफी सपोर्ट मिलना भी मन मे एक विश्वास हो गया था. अंततः 60-62वीं की परीक्षा में एसडीएम रैंक में चयन होकर पूरे जिलेवासियों को गर्वान्वित कर गए. आगे बताते है कि मैंने गरीबी को काफी नजदीक से देखा है. एक निम्न मिडिल क्लास की फैमिली की क्या जरूरत होती है इसे काफी अंदर से महसूस किया हैं. मुझे गर्व है कि हमारा जिला शिक्षा के क्षेत्र में पूरे प्रदेश में सर्वोच्च स्थान रखता है, यहां के लोग शिक्षा के काफी महत्व देते है. सासाराम रेलवे स्टेशन की चर्चा तो पूरे देश मे लगभग होने लगी है, मैंने इसे बाहर में भी महसूस किया है और मुझे इस बात का बहुत ज्यादा गर्व है कि मैं भी यहीं बैठकर दोस्तों के साथ पढ़ा हूँ.
उन्होंने कहा कि, मैं रोहतास डिस्ट्रिक के माध्यम से युवाओं को संदेश देते हुए बताया कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे सारे क्षेत्र में सफलताएं अर्जित की जा सकती है. अपने लक्ष्य के प्रति, ईश्वर में आस्था रखकर ईमानदारी पूर्वक मेहनत करें, अवश्य सफल होंगे. बहुत से छात्र के बारे में जानकारी मिलती है कि वह खूब मेहनती है लेकिन सफल नहीं हो पाता है. यह कहीं न कहीं चूक है. अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाकर पढ़े. अगर उच्च एवं उत्तम किस्म की शिक्षा पूरी ईमानदारी के साथ जो भी किया है, उनकी पूजा हर जगह होती है और वह जहाँ भी काम करते है अपने संगठन, विभाग में उनकी विशिष्ट पहचान होती हैं.