कैमूर पहाड़ी की मनोरम वादियों में मां ताराचंडी का वास है

बिहार के ऐतिहासिक शहर सासाराम शहर से दक्षिण में कैमूर पहाड़ी की मनोरम वादियों में मां ताराचंडी का वास है। कैमूर पहाड़ी की गुफा में अवस्थित जगत जननी मां ताराचंडी देवी एक सिद्ध शक्तिपीठ है। मंदिर का इतिहास अति प्राचीन है। मान्यताओं के अनुसार सती का दायां नेत्र इस स्थान पर गिरा था। नेत्र गिरने के कारण ही इस धार्मिक स्थल का नाम मां ताराचंडी धाम विख्यात हुआ।

मां ताराचंडी मंदिर में अवस्थित मां तारा व सूर्य की प्रतिमा तथा बाहर रखी अग्नि, गणेश व अर्घ्य सहित शिवलिंग की खंडित प्रतिमाएं इस स्थान की प्राचीनता के द्योतक हैं। देवी प्रतिमा के बगल में बारहवीं सदी के खरवार वंशी राजा महानायक प्रतापधवल देव का एक शिलालेख भी है। जो 212 सेमी लंबा व 38 सेमी चौड़ा है। शिलालेख विक्रम संवत 1225, ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि यानी बुधवार, 16 अप्रैल 1169 का है। जिससे यह प्रतीत होता है कि यह शक्तिपीठ उस जमाने में भी ख्याति प्राप्त कर चुका था।

पुराणों, तंत्र शास्त्रों व प्रतिमा विज्ञान में मां तारा व चंडी का जैसा रूप वर्णित है, उसी अनुसार सासाराम में दस महाविद्याओं में दूसरी मां तारा अवस्थित हैं। मां तारा की प्रतिमा प्रत्यालीढ़ मुद्रा में, बायां पैर आगे शव पर आरूढ़ है। कद में अपेक्षाकृत नाटी हैं, लंबोदर हैं व उनका वर्ण नील है। देवी के चार हाथ हैं। दाहिने हाथ में खड्ग व कैंची है। जबकि बाएं में मुंड व कमल है। कटि में व्याघ्रचर्म लिपटा है। मां तारा की मूर्ति कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा में अवस्थित है, जो पत्थर पर उत्कीर्ण है। गुफा के बाहर आधुनिक काल में मंदिर का स्वरूप दिया गया है। गुफा की ऊंचाई लगभग चार फीट है। गुफा के अंदर व बाहर की मूर्तियां पूर्व मध्यकालीन हैं।

चैत और शरद नवरात्र के समय ताराचंडी में विशाल मेला लगता है। इस मेले की प्रशासनिक स्तर पर तैयारी की जाती है। रोहतास जिला और आसपास के क्षेत्रों में माता के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। कहा जाता है गौतम बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां रूके थे। वहीं सिखों ने नौंवे गुरु तेगबहादुर जी भी यहां आकर रुके थे। कभी ताराचंडी का मंदिर जंगलों के बीच हुआ करता था। पर अब जीटी रोड का नया बाइपास रोड मां के मंदिर के बिल्कुल बगल से गुजरता है। यहां पहाड़ों को काटकर सड़क बनाई गई है। ताराचंडी मंदिर का परिसर अब काफी खूबसूरत बन चुका है। श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बेहतर इंतजाम किए गए हैं। मंदिर परिसर में कई दुकानें भी हैं। अब मंदिर के पास तो विवाह स्थल भी बन गए हैं। आसपास के गांवों के लोग मंदिर के पास विवाह के आयोजन के लिए भी आते हैं।


मां ताराचंडी का मंदिर सुबह 4 बजे से संध्या के 9 बजे तक खुला रहता है। संध्या आरती शाम को 6.30 बजे होती है, जिसमें शामिल होने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। मंदिर की व्यवस्था बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद देखता है।

ऐसे पहुंचें ताराचंडी धाम:- मां तारा का मंदिर रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से पांच किमी दक्षिण में अवस्थित है। बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को सासाराम शहर तक ट्रेन व बस यातायात दोनों की सुविधा है। सासाराम जंक्शन ग्रैंडकार्ड रूट के मुगलसराय-गया रेलखंड के मध्य में अवस्थित है। जहां सभी प्रमुख गाड़ियों का ठहराव है। इसके अलावा यह स्थल आरा-सासाराम रेलखंड से भी जुड़ा है। यह धार्मिक स्थल राष्ट्रीय राजमार्ग दो के किनारे स्थित है।

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