डेहरी-ऑन-सोन के एनीकट में ब्रिटिश सरकार के द्वारा निर्मित प्राचीन धूप घड़ी सरकार की उपेक्षा के कारण आज बदहाली की आंसू रो रहा है. यह घड़ी निरंतर 150 वर्षों से लोगों को समय का बोध कराते आ रही है. परंतु अब इसके अस्तित्व पर संकट उत्पन्न होने लगा है. आजादी के पूर्व सन 1871 ईसवी में ब्रिटिश सरकार के द्वारा इसका निर्माण कराया गया था. सूबे का यह दूसरा ऐसा घड़ी है, जिससे सूर्य के प्रकाश के साथ समय का पता चलता है.
ब्रिटिश सरकार ने भारत में पहली बार कृषि कार्य को बढ़ावा देने एवं खेतों के पटवन के लिए सोन नदी से नहर प्रणाली की शुरुआत की थी. जिसके लिए डेहरी ऑन सोन के एनीकट में कर्मशाला स्थापना किया गया था. इस कर्मशाला में उस समय ढाई सौ से अधिक वर्कर्स कार्य करते थे और ब्रिटेन से प्रत्येक वर्ष तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए 150 छात्र यहां आते थे. यही रह कर प्रैक्टिकल का कोर्स पूरा करते थे. कर्मशाला में कार्यरत वर्क्स एवं छात्रों को समय का बोध कराने के लिए इस घड़ी का निर्माण कराया गया था. तब से लेकर आज तक यह घड़ी बिना किसी उर्जा के निरंतर समय का बोध करा रही है.
इसे देखने के लिए कई राज्यों के विश्वविद्यालयों से आते हैं छात्र प्राचीन धूप घड़ी को देखने के लिए बिहार के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालयों से छात्रों का भ्रमण दल यहां आता है और छात्र इसे देखते हैं. छात्र उत्साह के साथ आते हैं परंतु इसकी दुर्दश देख उनका उत्साह समाप्त हो जाता है.
प्राचीन धूप घड़ी स्थल पर कूड़ा का अंबार लगा रहता है. धूप घड़ी को संरक्षित करने के लिए बना चारदीवारी भी टूट रहा है. प्राचीन धूप घड़ी परिसर में जाने वाला गेट भी गायब हो गया है. इसका परिसर असमाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है. परिसर मे जुआ खेलने का कार्य करते हैं. यहां ना सुरक्षा ही व्यवस्था की गई है और ना ही अंधेरा दूर करने के लिए लाईट लगाया गया है. यहां आने वाले पर्यटकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
डेहरी शहर के सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश कुमार, बिरेन्द्र पासवान ने बताया कि उदासीनता के कारण धूप घड़ी अपना अस्तित्व खोते जा रही है. परंतु इसे बचाने के लिए एवं धरोहर को संरक्षित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है. धूप घड़ी की संरक्षण और देखरेख की जिम्मेवारी सिचाई यांत्रिक कर्मशाला की है.