देश के 100 आदर्श स्मारकों में शेरशाह का मकबरा भी शामिल, विकास की बढ़ी उम्मीद

शेरशाह सूरी के मकबरा को देश के 100 आदर्श स्मारकों में शामिल किया गया है। केंद्र सरकार की आदर्श स्मारक योजना में 25 ऐतिहासिक स्मारक ही शामिल थे। अब शेरशाह का मकबरा सहित 75 और स्मारकों को इसमें शामिल किया गया है। सूची में शामिल होने से शेरशाह मकबरा के पर्यटन सुविधाएं विकसित करने के लिए अलग से बजट मिलेगा। चयन के बाद इसे विश्वस्तरीय रूपरेखा देने की योजना पर तेजी से काम शुरू हो गया है। साथ ही पर्यटक सुविधाएं बढ़ाने पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के देशभर में 3686 स्मारक हैं। वो इनमें से 100 संरक्षित स्थानों को आदर्श स्मारक बनाने जा रहा है। इसमें सर्वाधिक पांच स्मारक दिल्ली के हैं। इस योजना में संरक्षण, स्वच्छता आदि के साथ पर्यटकों के अनुकूल सुविधाएं विकसित की जाएंगी। बता दें कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने अब तक पूरे भारत में सौ स्मारकों को आदर्श स्मारक के रूप में चयनित किया है।

आदर्श स्मारक योजना 2015 में शुरू की गई थी। उस दौरान पहले फेज में पूरे देश में आदर्श स्मारक के रूप में 25 ऐतिहासिक स्थलों को शामिल किया गया था। सबसे पहले बिहार से वैशाली को चयनित किया गया। दूसरे फेज में पूरे देश से 75 ऐतिहासिक स्मारकों को आदर्श स्मारक के रूप में चयनित किया गया। जिसमें बिहार से सासाराम का शेरशाह का मकबरा और नालंदा का खंडहर शामिल है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, पटना के अधिकारी नीरज कुमार ने बताया कि, “आदर्श स्मारक के रूप में चयनित शेरशाह सूरी के मकबरा में पर्यटकों के लिए विश्वस्तरीय सुविधा प्रदान करने पर काम शुरू हुआ है। आदर्श स्मारक योजना के तहत शेरशाह मकबरा को साउंड शो, बेहतर शौचालय, इंटरप्रिटेशन सेंटर, कैफेटेरिया, पीने का पानी, सोविनियर शॉप, ऑडियो विजुअल सेंटर, दिव्यांगों की मदद के लिए रैंप व वाई-फाई की सुविधा से लैस किया जाएगा। साथ ही देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए बैठने की अच्छी व्यवस्था भी की जाएगी। साफ-सफाई को लेकर जगह-जगह पर डस्टबिन लगाए जाएंगे। उन्होंने बताया कि, शेरशाह का मकबरा का 32 एकड़ संरक्षित क्षेत्र है, जबकि निषिद्ध क्षेत्र मिलाकर 52 एकड़ है। संरक्षित क्षेत्र से बाहर की साफ-सफाई का जिम्मा नगर परिषद को होगी।”

टिकट काउंटर

मालूम हो कि बाइस एकड़ में फैले आयताकार तालाब के बीच स्थित शेरशाह का मकबरा का दुनिया में अपनी पहचान है। तालाब के पानी की स्वच्छ रखने के लिए इसके पश्चिम की ओर पानी के आगमन और निकास के लिए नहरे बनी है। मुख्य मकबरा तक जाने के लिए तालाब के उत्तर में स्थित दरबान के चौकोर मकबरे से होकर गुजरना पड़ता है। इस मकबरे के बीच में दरबान की कब्र देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता है की शेरशाह की अपने करिंदों से कितना प्रेम रहा होगा। दरबार के मकबरे और शेरशाह के रौज़े की तालाब के बीच तीन सौ फीट लंबी एक पुलनुमा सड़क जोड़ती है। पहले यहाँ दोनों मकबरों की जोड़ने के लिए उनके आधार की ऊचाई में पुल बना था, जो बाद में टूट गया था।

अठारह सौ बयासी ई. में अंग्रेज सरकार द्वारा किये गए प्रथम जीर्णोंद्धार के समय यह सड़क बनी थी। तालाब के बीच में तीस फीट ऊँचे चबूतरे पर अष्टपहलदार रौज़े का निर्माण हुआ है। मकबरा एक सौ पैंतीस फीट व्यास और डेढ़ फीट ऊँचे अष्टकोणीय आधार पर स्थित है। इसके ऊपर पहले हम दस फीट चौड़े और सोलह फीट ऊँचे बरामदे में पहुँचते है। इसके भीतर सोलह फीट मोटी दीवालों से घिरा इकहत्तर फीट व्यास का मकबरे का मुख्य कक्ष अलंकृत मिम्बर बना है। मुख्य कक्ष के भीतर सूरी परिवार की पच्चीस कब्रे है। शेरशाह सूरी का मज़ार मकबरे के ठीक बीच में है। बाइस मई पंद्रह सौ पैंतालीस को कालिंजर युद्ध में मृत्यु को प्राप्त होने को कुछ दिन तक महान बादशाह को यहाँ सुपुर्देख़ाक किया गया था।

इस मकबरे के मिम्बर पर भी कलाम पाक की आयतें खुदीं है। इसमें यह भी लिखा है कि बादशाह शेरशाह की मृत्यु के तीन माह बाद यह रौज़ा बादशाह इस्लामशाह के हाथों पूर्ण हुआ। बाहर चबूतरे से एक सौ बीस फीट ऊँचा और अस्सी फीट चौड़ा गुबंद सीना ताने खड़ा है। इसकी भव्यता देखते ही बनती है। चबूतरे के चारो कोनों पर चार बड़ी अष्टकोणीय बुर्जियाँ तथा दूसरी और तीसरी मंजिल के आठों कोनो पर क्रमशः छोटी होती षट्कोण छतरियाँ पठान वस्तुकला के चरम उत्कर्ष को दर्शाती है।

बता दें कि, इसकी सुंदरता का बखान करते हुए अंग्रेज पुरविद् कनिंघम ने कहा था कि “शेरशाह का यह रौजा वास्तुकला की दृष्टि से ताजमहल की तुलना में अधिक सुन्दर है।”

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