मछली जल की रानी है, जीवन इसका पानी है..। यह कविता आज भी प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को याद कराई जाती है। इरादा, बच्चों में जीवों के प्रति संवेदना भरना है। परंतु वर्तमान परिवेश कुछ ऐसा है कि यही बच्चे बड़े होकर मछलियों का भक्षण करते हैं। संझौली प्रखंड इस मामले में आदर्श कहानी गढ़ रहा है। जिले के संझौली के शिवलोक सरोवर में मछलियों को मारना सख्त मना है। मछलियों को लोग दाना डाल उसकी रक्षा का संकल्प लेते हैं।
अगर तालाब की मछलियों की स्वभाविक मौत हो जाए, तो उसे कफन देकर विधि-विधान से दफनाया जाता है। मंदिर के पास स्थित इस तालाब में मछलियों को नहीं मारने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से जारी है। नई पीढ़ी भी इस परंपरा को आज भी शिद्दत के साथ निभा रही है। शिवलोक सरोवर की मछलियों को यहां के लोग न तो मारते हैं, न ही खाते हैं। किसी कारणवश अगर मछलियां मर जाती हैं, तो ग्रामीण उसे हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार कफन में लपेट मंत्रोचारण के साथ दफना देते हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि जो भी व्यक्ति चोरी-छिपे इस तालाब की मछली को मार कर खा लेता है, उसके बुरे दिन शुरू हो जाते हैं और वह परेशानियों में उलझता चला जाता है।
दरअसल बुजुर्गों की मानें तो शिवलोक सरोवर के निर्माण को ले कई रोचक बातें यहां प्रचलित हैं। बताया जाता है कि 1700 ई. में बिलोखर (इलाहाबाद) के राजा हीरालाल क्षत्रपति द्वारा अपनी बिटिया की विदाई के बाद दहेज के रूप में तालाब की खोदाई कराई गई थी। सरोवर की देखरेख में लगे संझौली के बाबूलाल पटेल बताते हैं कि तालाब की खोदाई के बाद उस समय गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित देश की सभी प्रमुख नदियों का जल लाकर इसमें डाला गया था। खोदाई के दौरान गर्भवती महिलाएं भी अपना हाथ बटाई थी, जिन्हें दोगुना मजदूरी मिली थी। अतिरिक्त मजदूरी गर्भ में पल रहे बच्चे के लालन-पालन के लिए दी गई थी। इसके कुछ दिनों बाद हिमालय से शिवलिंग लाकर शिवमंदिर की स्थापना की गई। उसी दौरान पवित्र नदियों से मछलियों को लाकर सरोवर में डाला गया था। उप प्रमुख डॉ. मधु उपाध्याय, बीडीसी मनोज सिंह समेत अन्य लोगों का कहना है कि उसी समय से सरोवर की मछलियां नहीँ मारी जाती हैँ।
वही शिवलोक सरोवर व मछलियों से जुड़ी इस परंपरा का दो मुख्यमंत्रियों द्वारा तारीफ भी किया जा चुका है। 22 दिसम्बर 2011 को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां आए थे, तो शिवलोक सरोवर की रमणियता देख बोल पड़े थे, अरे वाह! बड़ा ही सुंदर व रमणिक स्थल है। इस तरह का खूबसूरत स्थल तो बहुत कम मिलता है। इसका जीर्णोद्धार जरूरी है। तत्कालीन डीएम को जीर्णोद्धार के लिए निर्देश भी दिया था। वहीं 11 अक्टूबर 1994 को यहां आए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी तालाब की भव्यता पर प्रसन्नता जाहिर कर चुके हैं। 1812 में आए फ्रांसीसी बुकानन ने भी सरोवर की सुंदरता व मछलियों से जुड़ी मान्यताओं को शाहाबाद गजेटियर में रेखांकित किया है।
ब्रजेश पाठक & प्रमोद टैगोर की रिपोर्ट