रोहतास के अर्जुन को गौरैयों ने दिलायी ‘स्पैरोमैन’ की उपाधि

मानव मित्र कही जाने वाली गौरैया अब लुप्त हो रही हैं. हालांकि गांवों में अब भी बेहतर माहौल होने की वजह से इनकी संख्या अच्छी खासी है, लेकिन शहर में स्थिति चिंताजनक है. शहर में बढ़ता ध्वनि प्रदूषण गौरैया की घटती आबादी के प्रमुख कारणों में से एक है. पर्यावरण के जानकारों के मुताबिक घरों के बनावट में तब्दीली, बदलती जीवन-शैली, खेती के तरीकों में परिवर्तन, प्रदूषण, मोबाइल टाॅवर और दूसरे वजहों से ऐसा हो रहा है. गौरैया पर बचाने के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. इन्हीं गौरैयों के प्रति अगाध प्रेम ने रोहतास जिले के करगहर थाना क्षेत्र के मेड़रीपुर गांव के अर्जुन सिंह को स्पैरोमैन बना दिया है.

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बिहार वन्य प्राणी पर्षद के सदस्य अर्जुन सिंह को आज गौरैया दिवस पर राज्यस्तरीय कार्यक्रम में शामिल होने के लिए वन विभाग ने पटना बुलाया है. वे सेमिनार में देशभर से आये पक्षी प्रेमियों को गौरैये के संरक्षण के गुर सिखायेंगे. उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 की बात है. मेरे घर के आंगन में अचानक एक दिन एक घायल गौरैया गिरकर तड़पने लगी. जिसे उठाया और पिंजड़ा मंगाकर सुरक्षित रखा. सेवा से कुछ दिनों में वह स्वस्थ हो गई. इसके बाद उसे पिंजड़े से मुक्त कर दिया गया. प्यार से उसे ‘राजा’ नाम दे दिया. घर के आंगन में ‘राजा’ की चहक देख कई और गौरैया मेरे आंगन में आने लगीं. मुझे वे अपना संरक्षक मान बैठीं, तो मेरा कर्तव्य बना कि उनकी सेवा करूं. फिर मैंने उनके लिए दाना का इंतजाम करने लगा. साथ ही मिट्टी के घर की दीवारों में दरबा बनाना शुरू कर दिया, गौरेया अपना बसेरा डालने लगीं.

अर्जुन सिंह के घर की दीवारों पर बने घोंसलें

अर्जुन ने बताया कि दीवारों के बीच-बीच से ईंट हटाकर और उसके आस-पास जरुरी चीजें उपलब्ध कराकर ये घोंसले तैयार किए हैं. इसके साथ ही उन्होंने घर की छत, उसकी चारदीवारी और दूसरी कई जगहों पर गौरेया के प्यास बुझाने का इंतजाम भी कर रखा है. वे बताते है कि वर्तमान समय में प्रति वर्ष करीब 25 क्विंटल अनाज उनके इंतजाम कर रखता हूं. आज हमारे घर आंगन में इतनी गौरैया हैं कि उनकी गिनती मुश्किल है. उन्होंने बताया कि गौरैयों को तीन बार दाना-पानी देता हूं.

वे अब गौरैयों के संरक्षण के लिए गांव के बच्चों को भी समझाते हैं कि गौरेया और उसके बच्चों को कोई परेशान न करें. कोई घायल गौरैया या उसका बच्चा मिले तो उसे मेरे पास लेकर आए. अर्जुन के मुताबिक गौरेयों को आबाद करने में बच्चों ने भी खास भूमिका निभाई है. गौरेया से दूर रहने पर अर्जुन अब बैचैनी महसूस करते हैं. गौरैया से उनका इस कदर जुड़ाव हो चुका है कि वे एक तो अब लंबे वक्त के लिए कहीं जाते ही नहीं और अगर कुछेक दिन के लिए गए भी तो घर में कोई-न-कोई गौरैयों का ख्याल रखता है.

बता दें कि वर्ष 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गौरैयों को राजकीय पक्षी घोषित किया और अर्जुन संरक्षण के लिए काम करने पर मुझे स्पैरोमैन की उपाधि से विभूषित किया .एक समय जब बिहार सरकार का पर्यावरण एवं वन विभाग सरकारी आवासों में गोरैया के लिए घोंसला लगाने की योजना पर काम कर रहा था तब उसने इस काम में अर्जुन सिंह की मदद भी ली थी.

अर्जुन गौरैया की घटती संख्या की बड़ी वजह वह नए बनावट के घरों को मानते हैं. अर्जुन के मुताबिक पुराने तरह के घरों में ऐसे छोटे-बड़े छेद होते थे जिनमें गौरैया रह लेती थी. लेकिन अब शहर क्या गांवों में भी ऐसे घर कम बनते हैं.उनके मुताबिक कटाई के मशीनी तरीके से भी गोरैया के लिए भोजन की कमी हो रही है. अर्जुन बताते हैं, ‘पहले हाथ से कटाई होने पर पक्षियों के लिए खेतों में बहुत कुछ गिरा रह जाता था लेकिन अब हारवेस्टर की कटाई से उनका भोजन छिन गया है. कीटनाशकों के प्रयोग ने भी गौरेया से कीट-पतंग छीना है. उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण के तहत आम, पीपल, बरगद जैसे पेड़ लगाए जाने चाहिए जिन पर गौरैया या दूसरे पक्षी घोंसला बना सकें.

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