बिहार के प्राचीन शिवलिंगों में शुमार रोहतास जिला के चेनारी प्रखंड में गुप्ता धाम यानि बाबा गुप्तेश्वर धाम की मंदिर गुफा में स्थित भगवान शिव की महिमा की बखान प्राचीनकाल से ही होती आ रही है. कैमूर पहाडियों की प्राकृतिक सौन्दर्य से शोभित वादियों में स्थित इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूरी हो जाती है.
इस क्षेत्र में भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर को लेकर कई किंवदंतियाँ है, किन्तु इनका कोई पौराणिक आधार नहीं है. विंध्य श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा आज भी रहस्यमय बना हुआ है.
बाबाधाम की तरह गुप्तेश्वरनाथ यानी ‘गुप्ताधाम’ श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है. यहां बक्सर से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है. गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है. पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा का द्वार पर जाने के बाद सीढियों से नीचे उतरना पड़ता है. द्वार के पास 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है. सीधे पूरब दिशा में चलने पर पूर्ण अंधेरा हो जाता है. गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें सालभर पानी रहता है. इसलिए इसे ‘पातालगंगा’ कहते है. इसके आगे यह गुफा काफी सँकरी हो जाती है. गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं. इसके कुछ आगे जाने के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं. गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है. इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत देखने को मिलते हैं. इस स्थान पर सावन महीने के अलावा सरस्वती पूजा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है. सावन में एक महीना तक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं. बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है. लोग बताते हैं कि विख्यात उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री ने अपने चर्चित उपन्यास ‘चंद्रकांता’ में विंध्य पर्वत श्रृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवत: उन्हीं गुफाओं में गुप्ताधाम की यह रहस्यमयी गुफा भी है. वहां धर्मशाला और कुछ कमरे अवश्य बने हैं, परंतु अधिकांश जर्जर हो चुके हैं.
रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 55 किलोमीटर दूरी पर स्थित गुप्ताधाम गुफा बाबा गुप्तेश्वर धाम में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं जो अतिविकट और दुर्गम हैं. दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाड़ियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं.
प्राचीन कथाओ के अनुसार, “एक बार भस्मासुर ने भगवान् भोलेनाथ की तपश्या कर रहा था, भोले नाथ को प्रशन करने के लिए कठिन तपस्या कर रहा था, भस्मासुर के तपस्या को देखकर भगवान् शिव प्रशन हो गए. भगवान् शिव बड़े दयालू है वो अपने भक्त की हर इच्छा को पूरा करते है, इसीलिए भोलेनाथ ने भस्मासुर से कहा की हम तुम्हारी तपश्या से खुश है तुम हमसे कोई भी वरदान मांग सकते हो यह सुनकर भस्मासुर ने कहा की प्रभु हमें ऐसा वरदान दीजिये की जिस किसी के सिर पर हाथ रखे वो तुरंत भष्म हो जाये भोले नाथ ने कहा तथास्तु! भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा. जहां से भाग कर भगवान शिव यहीं की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे. भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गयी और उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया. उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोलेदानी बाहर निकले.”
आपको बता दे कि, यहाँ प्रशासन की ओर से चिकित्सा शिविर भी लगता था, लेकिन वन विभाग इस क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित किए जाने के बाद प्रशासनिक स्तर पर दी जा रही सुविधा बंद कर दी गई है. अब समाजसेवियों के सहारे ही इतना बड़ा मेला चलता है. वही गुफा के अंदर आज भी ऑक्सीजन पाइप लगी है लेकिन ऑक्सीजन की व्यवस्था नही. मेला के दिनों में यहाँ के लोग जैसे तैसे डेहरी से ऑक्सीजन सिलेंडर मांग श्रद्धालुओ के लिए ऑक्सीजन कि सुविधा उपलब्ध कराते है. लोग कहते है कि रास्ते, बिजली, मोबाइल नेटवर्क पीने के लिए पानी व रहने के लिए धर्मशाला आदि की सुविधाएं उपलब्ध करा दे, तो राज्य ही नहीं देश के पयर्टन मानचित्र में बाबा गुप्तेश्वर धाम एक अलग स्थान प्राप्त करेगा.
रिपोर्ट- विकास चंदन