सैकड़ो साल बाद रोहतासगढ़ किला परिसर में स्थित गणेश मंदिर में शुरू हुई पूजा-अर्चना

रोहतास जिले के कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतासगढ़ किला परिसर में स्थित प्राचीन गणेश मंदिर में बुधवार से गणेश चतुर्थी को विधिवत पूजा-अर्चना आरंभ हुई. पंडित सिकन्दर तिवारी के द्वारा मंत्रोचारण के साथ जैसे हीं पूजा आरंभ हुई तो पूरा परिसर जय गणेश के नारे से गूंज उठा. शाहाबाद महोत्सव आयोजन समिति के संयोजक अखिलेश कुमार के सलाह पर रोहतासगढ़ पंचायत के पूर्व मुखिया कृष्णा सिंह यादव के देखरेख में करीब चार सौ वर्षों बाद इस प्राचीन मंदिर में पुनः पूजा अर्चना आरंभ हुआ है.

विदित हो कि मुगल आक्रमणकारियों ने इस मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा के साथ ही मंदिर के बाहरी हिस्से को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था. उसके बाद यहां पूजा-अर्चना बंद कर दी गई थी. पिछले दिसम्बर माह में रोहतासगढ़ किला परिसर आयोजित शाहाबाद महोत्सव और रोहतासगढ़ महोत्सव के बाद लोगों का इसपर ध्यान गया और गणेश मंदिर में सदियों बाद पूजा-अर्चना आरंभ करने के लिए गणेश चतुर्थी का समय चुना गया.

शाहाबाद महोत्सव आयोजन समिति के संयोजक अखिलेश कुमार ने कहा कि अब गणेश मंदिर में प्रतिदिन सालोभर सुबह शाम विधि-विधान से पूजा अनवरत जारी रखने का योजना बना है. पूर्व मुखिया कृष्णा सिंह यादव ने कहा कि यहां सदियों बाद गणेश मंदिर में पूजा आरंभ होने से ग्रामीणों में काफी उत्साह है और रोहतासगढ़ किला घुमने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी यह मंदिर हमेशा खुला रहेगा. पूजा आरंभ करने में बभनतलाब व आस पास के ग्रामीण सुरेन्द्र यादव, नन्दकिशोर सिंह, लक्ष्मण सिंह, शिवपुजन उरावं, धनन्जय कुमार, शंकर उरावं, आनिल भूइयां आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बता दें कि मान सिंह के महल के पश्चिम में लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर गणेश मंदिर स्थित है. मंदिर का गर्भगृह दो पोर्च-मार्गों का सामना करता है. इसकी भव्य अधिरचना राजस्थान के मंदिरों से मेल खाती है. अब तक इस मंदिर की देखभाल करने वाला कोई नहीं था, लेकिन फिर भी इस मंदिर की वास्तुकला इतनी आकर्षक है कि किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देती है. मंदिर के केंद्र में एक अष्टकोणीय मंडप है, जो नागर शैली में बने एक सुंदर नक्काशीदार ऊंचे चबूतरे द्वारा समर्थित है. जीर्ण-शीर्ण अवस्था में होने के बावजूद इस मंदिर के अंदर यह खूबसूरत आभा है जो आपको परिसर से बाहर नहीं निकलने देगी. जब सूर्य की किरणें मंदिर के ऊंचे-ऊंचे खंभों पर पड़ती हैं, तो यह और भी खूबसूरत हो जाती है.

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