रोहतास जिले में आरा-सासाराम लाइट रेलवे के अलावा एक और छोटी लाइन रेलवे हुआ करती थी डेहरी रोहतास लाइट रेलवे। इस रेल मार्ग का संचालन डेहरी रोहतास ट्रामवे कंपनी करती थी। ये रोहतास इंडस्ट्रीज की ही सहायक कंपनी थी। कंपनी ने अपनी औद्योगिक जरूरतों के लिए ये रेल मार्ग शुरू किया था, लेकिन बाद में इस मार्ग पर पैसेंजर ट्रेनों का भी संचालन किया जाने लगा। 1907 में आरंभ हुए इस रेल मार्ग को कोलकाता की द ओक्टावियस स्टील कंपनी ने शुरू किया था। कंपनी को मूल रूप से ठेका 40 किलोमीटर लंबी एक फीडर लाइन बनाने के लिए मिला था। यह रेल मार्ग रोहतास गढ़ से दिल्ली कोलकाता रेलमार्ग तक पहुंचने के लिए डेहरी-ऑन-सोन तक बनाया जाना था।
बाद में ये ट्रामवे कंपनी लाइट रेलवे कंपनी में बदल गई। इस कंपनी का अधिग्रहण रोहतास इंडस्ट्रीज ने कर लिया। इस कंपनी ने असम के बंद पड़ी दवारा थेरिया लाइट रेलवे की परिसंपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया। रोहतास इंडस्ट्रीज डालमियानगर और आसपास के शहरों में कई तरह के औद्योगिक इकाइयां चलाती थी। इसमें सीमेंट, वनस्पति, एस्बेस्टस, पेपर और बोर्ड, वैल्केनाइज्ड फाइबर आदि प्रमुख थे। अपनी तमाम औद्योगिक जरूरतों को कच्चे माल की सप्लाई और तैयार माल को भेजने के लिए कंपनी को रेल मार्ग की जरूरत थी।
डेहरी रोहतास रेलवे 1911 में हुई शुरूआत: डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे ( डीआरएलआर) पर यात्री गाड़ियों के संचालन की शुरूआत 1911 में हुई। 1913-14 में इस रेल मार्ग पर 50 हजार से ज्यादा सवारियां और 90 हजार टन से ज्यादा माल की ढुलाई की जा रही थी। इस लाइट रेलवे पर खास तौर पर मार्बल और पत्थरों की ढुलाई की जा रही थी। 1927 में डेहरी रोहतास लाइट रेलवे के 40 किलोमीटर मार्ग का विस्तार ढाई किलोमीटर बढ़ाकर रोहतास से रोहतासगढ़ फोर्ट तक किया गया। वहीं रोहतास इंडस्ट्रीज के कारण इस लाइन का विस्तार 25 किलोमीटर और आगे तक हुआ। इस लाइन को तिउरा पीपराडीह तक बढाया गया। इस तरह रेलमार्ग की कुल लंबाई 67.5 किलोमीटर हो गई।
भाप इंजन का दौर: डेहरी-रोहतास रेलवे का संचालन अलग-अलग तरह के लोको (इंजन) से होता था। इसकी शुरूआत हंसले द्वारा निर्मित 0-6-2 माडल के टैंक लोको से हुई जो असम से द्वारा थेरिया रेलवे मार्ग के 1909 में बंद होने के बाद यहां लाया गया था। दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद इस मार्ग पर ट्रैफिक बढ़ गया तब इस पर नया जेडबी क्लास का 2-6-2 लोको लाया गया। इन इंजनों का निर्माण हडसन क्लार्क और कुरास माफेई कंपनी ने किया था।
देश की आजादी के बाद 1950 से 1960 के दशक में जब डेहरी-रोहतास रेलमार्ग के बेहतर दिन चल रहे थे तब दो पैसेंजर ट्रेनें रोज डेहरी-आन-सोन और तिउरा पीपराडीह के बीच चलाई जाती थीं। ये सफर 67 किलोमीटर का था। इसके अलावा इस मार्ग पर मार्बल और पत्थरों की ढुलाई होती थीं। जिन्हें डेहरी में ब्राडगेज लाइन तक पहुंचाया जाता था। इस रेलवे ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे रेल कंपनियों से सेकेंड हैंड यानी पुराने इंजनों को भी खरीदा। 1959 में सेंट्रल रेलवे से हडसवेल क्लार्क का लोको तो के क्लास 2-6-2 लोको को कालका शिमला रेल से खरीदा गया। केर स्टूअर्ट 2-6-4 इंजन को शाहदरा सहारनपुर रेल मार्ग से खऱीदकर मंगाया गया।
डेहरी-रोहतास रेल बंद होने के कारण: 1970 के बाद डेहरी-रोहतास मार्ग पर सड़क बन जाने के बाद छोटी लाइन की इस रेल में यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी। वहीं 1980 के दशक आते आते रोहतास इंडस्ट्रीज और इसके मार्ग पर अमझोर और बंजारी में चलने वाले उद्योग भी एक एक कर बंद होने लगे। इन उद्योगों की बंदी और पैसेंजर ट्रेन में यात्रियों कमी के कारण रेल मार्ग घाटे में चलने लगा। देश में ज्यादातर रेल मार्ग ब्राडगेज (167 सेंटीमीटर) की पटरियों में पर हैं इसलिए छोटी लाइन का संचालन घाटे का सौदा है। इन सब कारणों से डेहरी रोहतास रेल मार्ग को बंद करने का फैसला लिया गया। अंततोगत्वा 16 जुलाई 1984 को डेहरी रोहतास रेल मार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया गया। पूरी दुनिया ब्राडगेज पर चल रही थी तब 1970 के दशक में डेहरी रोहतास रेलमार्ग फर्राटे भर रहा था इसलिए 1970 के दशक तक ये रेल मार्ग यूरोप में भी चर्चा का विषय था। पर इस रेलमार्ग का बंद होना भारतीय मीडिया में कोई बड़ी खबर नहीं बनी।
ब्रिटेन के लोगों बीच कौतूहल हुआ। इसी सिलसिले में लंदन के एक पत्रकार ब्रायन मैनकेटलो ने 1994 मे डेहरी का दौरा किया और इस रेल मार्ग के अतीत में झांकने की कोशिश की। रोहतास इंडस्ट्रीज के तीन अलग-अलग साइट पर डेहरी-रोहतास रेलवे की पटरियों पर दौड़ने वाले सात लोको (इंजन) चुपचाप आराम फरमा रहे थे। रिपोर्ट के मुताबिक वे अच्छी हालात में थे। उन्हें देखकर लगता था कि अगर कोशिश की जाए तो वे एक बार फिर पटरी पर दौड़ने के लिए तैयार हो जाएंगे। दो पुराने ईस्ट इंडियन रेलवे के 0-6-4 टैंक लोको बिल्कुल अच्छे हाल में सुस्ता रहे थे। वहीं चार लोको इस हाल में थे कि उन्हें मरम्मत की जरूरत लग रही थी। वहीं केर स्टूअर्ट इंजन भी 1980 के दशक में अपनी सेवाएं बंद करने के बाद खड़ा था। इन इंजनों को देखकर ऐसा लगता था कि वे सफर पर चलने के लिए अभी भी तैयार हैं।
डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे के स्टेशन ( 67 किलोमीटर, 16 स्टेशन)
Excellent sharing … I never new such history although I born n brought up in Dalmianagar and stayed there till 1979…salute to this team for sharing such news of my birthplace ….
बेहद उम्दा जानकारी
Excellent sharing … I never new such history although I born n brought up in Dalmianagar and stayed there till 1979…salute to this team for sharing such news of my birthplace ….
very nice & nicely prepared, the rare moments of chhoti line railway run by rohtas industries
बहुत खूब सुन्दर पहल…