शहादत के 73 वर्षों बाद आजादी के दीवानों को उनके अपने पैतृक गांव-घर में सम्मान दिया जा रहा है. स्मृतियों को संजोने पर जहां शहीद के परिजन गौरवान्वित हैं, वहीं पैतृक गांव संझौली समेत समस्त प्रखंडवासी इस बात पर इतरा रहे हैं कि हमें गर्व है कि झाड़ी कोइरी व गुराज धोबी हमारे प्रखंड के लाल थे. अब हर वर्ष 26 जनवरी व 15 अगस्त को इनके स्मारक पर अपने आंगन में श्रद्धा के फूल चढ़ाएंगे. सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी जान की बाजी लगाने वाले संझौली के इन दो शहीदों को 73 वर्ष बाद अपने घर के आंगन में मान-सम्मान मिलेगा. 11 फरवरी यानि गुरुवार को संझौली प्रखंड कार्यालय में बने शहीदों के स्मृति चिन्ह को राज्य के उप मुख्यमंत्री तारकेश्वर प्रसाद द्वारा सम्मान देकर गौरवान्वित किया जाएगा.
बता दें कि डीएम धर्मेंद्र कुमार के आदेश पर अपने आंगन में शहीदों का स्मृति चिन्ह बना. संझौली प्रखंड के उप प्रमुख डॉ मधु उपाध्याय द्वारा जिलाधिकारी से प्रखंड प्रांगण में स्मृति चिन्ह स्थापित करने की मांग रखी थी. इनकी मांग पर डीएम धमेंद्र कुमार भौचके रह गए. कहा कि यह तो पहले ही बन जाना चाहिए था. इस तरह की काम को जल्द होना चाहिए. उप प्रमुख मधु उपाध्याय की मेहनत रंग लाई और प्रखंड मुख्यालय पर इन दोनों शहीदों की याद में स्मृति चिन्ह बन गया.
वर्ष 1996 के पूर्व संझौली, बिक्रमगंज प्रखंड का हिस्सा था. साठ के दशक में संझौली के दोनों शहीदों का स्मृति चिन्ह बिक्रमगंज प्रखंड कार्यालय में स्थापित की गई थी. 1996 के प्रखंड स्थापना के पूर्व से ही स्थानीय लोगों द्वारा दोनों शहीदों के स्मृति चिन्ह को संझौली में भी स्थापित करने की मांग की जाती रही.
1942 के अगस्त क्रांति में शाहाबाद के सेनानियों का उल्लेखनीय योगदान रहा था. शाहाबाद जनपद के उन्हीं सेनानियों में संझौली के गुजर बैठा व झड़ी महतों थे. गुजर की शहादत के महज दो दिन पहले ही सात अगस्त को वे पत्नी का गौना करा कर लाए थे. पत्नी की हाथों की मेहंदी का रंग टहक ही रहा था कि ब्रिटिश सत्ता के हुक्मरानों के दमन के खिलाफ वे उठ खड़े हुए थे. नतीजतन, उन्हें जान गंवानी पड़ी. नई नवेली दुल्हन के बारे में सोच कर थोड़ी देर के लिए पांव जरूर ठिठके थे, लेकिन अंग्रेजी फौज का प्रतिरोध करने खुलकर सामने आ गए. संझौली से पश्चिम अंग्रेजी पौधों के प्रतिरोध में झड़ी महतों ने भी अपनी जान गवा दी थी.
बीडीओ कुमुद रंजन ने कहा कि संझौली के लिए यह सुखद पल है. ऐतिहासिक लम्हों को समेटने का प्रयास काफी सराहनीय है. स्मृति चिन्ह स्थापित करने की मांग के बाद जिलाधिकारी के आदेश पर प्रखंड कार्यालय के मुख्य दरवाजे के पास स्मृति चिन्ह बनाने का कार्य पूर्ण हो गया. पंचायत समिति की बैठक में भी प्रस्ताव पारित की गई है. अपने आंगन में अगस्त क्रांति के शहीदों की शहादत पर नई पीढ़ी को भी सीख मिलेगी.