सासाराम में पॉक्सो की विशेष अदालत ने नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी को पीड़िता से शादी करने के बाद बुधवार को बरी कर दिया है. कोर्ट ने राज्य सरकार को सर्वाइवर को ‘नई दुल्हन’ के तौर पर 1.25 लाख रुपये मुआवज़ा देने का निर्देश दिया है. विशेष अदालत के न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने शादी के लिए पहले ही आरोपी को आदेश दिया था.
मामले में विशेष लोक अभियोजक शाहिना कमर ने कहा कि हालांकि पॉस्को अदालत के न्यायाधीश आशुतोष कुमार द्वारा पारित निर्णय कानून में उचित नहीं था, लेकिन न्याय और मानवता के हित में इसका स्वागत किया जा सकता है. शाहिना कमर के अनुसार मामला 28 नवंबर 2019 का है. लड़की की मां मंजू देवी ने अदालत में मामला दायर करते हुए आरोप लगाया था कि आजाद खान ने उसकी 16 वर्षीय बेटी को शादी करने के इरादे से अपहरण कर लिया था और उसे राजस्थान ले गया था. अदालत ने सासाराम टाउन थाना को मामला दर्ज करने का आदेश दिया.
अदालत के आदेश पर आजाद खान, उसकी मां हसीना बेगम और दोस्त टुनु साई के खिलाफ अपहरण और बलात्कार के साथ ही पोक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था. हालांकि बाद में दायर चार्जशीट में सिर्फ आजाद खान का नाम था. बाद में मामले ने स्थानीय स्तर पर सांप्रदायिक रंग ले लिया था. खान और लड़की को पुलिस ने पिछले साल 24 सितंबर को सासाराम लेकर आई थी. तब तक लड़की गर्भवती हो चुकी थी. लड़की ने पुलिस को बताया कि वह आजाद खान से प्यार करती है और उसके साथ खुशहाल जिंदगी बिता रही है. उसने अपने ससुराल जाने की इच्छा भी व्यक्त की लेकिन पुलिस ने आजाद को जेल भेज दिया और लड़की को उसके माता-पिता को सौंप दिया था.
घटना में लड़की के माता-पिता ने कुछ महीनों के बाद लड़की को घर से निकाल दिया. उसने जेल में आज़ाद से संपर्क किया और उसके घर पर रहने चली गई. वहां लड़की ने बेटी को जन्म दिया. अदालत को पूरे ब्योरे से अवगत कराया गया. बालिग हो चुकी लड़की और आरोपी आजाद को अदालत ने बुलाया. विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी को पंजीकृत करने के लिए सलाह दी. इस पर वे सहमत हो गए. इसके बाद अदालत ने आजाद को जमानत दे दी गई.
विशेष लोक अभियोजक शाहिना कमर ने बताया कि आजाद को 16 मार्च को जमानत दी गई थी और उसने 4 अप्रैल को लड़की से शादी कर ली. इसके बाद बुधवार को कोर्ट ने आजाद को बरी कर दिया. उन्होंने कहा कि पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 15 बी के तहत बच्चे के सर्वोत्तम हितों की रक्षा करना और उसके निजता और गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करना भी है. इसलिए, जब तक आरोपी की आपराधिक मानसिकता नहीं है, यदि किशोर वर्तमान परिवेश में बातचीत करते हैं और अपने रिश्ते को सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त चरित्र देते हैं, तो अधिनियम का एक कठोर विश्लेषण इसके उद्देश्य को हतोत्साहित करेगा. कोर्ट ने जिला बाल संरक्षण इकाई को दो साल के लिए बच्ची की अर्धवार्षिक स्थिति रिपोर्ट अदालत में पेश करने का भी आदेश दिया है.
Source- Hindustan Times