29 नवंबर को जगदीशपुर में होगा शाहाबाद महोत्सव

शाहाबाद महोत्सव-2020 के आयोजन के लिए रविवार को एक महत्वपूर्ण बैठक सासाराम स्थित रैप कार्यालय में एसपी वर्मा की अध्यक्षता में हुई. बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि 29 नवंबर को वीर कुंवर सिंह के ऐतिहासिक धरती पर शाहाबाद महोत्सव 2020 का आयोजन किया जाएगा.

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बता दें कि शाहाबाद के धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत को याद करते हुए यहां के प्रमुख स्थलो के लिए पर्यटन सर्किट बनाने हेतु इस महोत्सव का आयोजन किया जाना है. साथ ही यहां के प्रमुख खाद्य सामग्री व महापुरुषों की प्रदर्शनी लगाकर नई पीढ़ी को अवगत कराया जाएगा. बैठक में गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के सचिव गोविन्द नारायण सिंह, स्यंदन सुमन, अशोक कुमार, लव, बंटी सिंह, शैलेश कुमार, छोटेलाल सिंह, मनीष कुमार मौर्य, मनीराज, विनीत प्रकाश, मयंक उपाध्याय, आदि उपस्थित थे.

शाहाबाद महोत्सव 2020 के आयोजन के लिए हुई बैठक में उपस्थित लोग

इस संबंध में शाहाबाद महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष अखिलेश कुमार ने बताया कि पावन गंगा और सोन नद के गोद में विन्ध्य पर्वत श्रृंखला को मस्तक बनाए शाहाबाद की भूमि आदि काल से विकसित सभ्यता तथा संस्कृति का केंद्र रहा है, जहाँ आज भी विद्यमान शैल आश्रय व शैल चित्र इस बात का साक्षात गवाह हैं. आदि काल में करूष प्रदेश के नाम से विख्यात शाहाबाद की धरती राजा हरिश्चंद्र से लेकर आधुनिक काल के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, प्रशासनिक व राजनीतिक इतिहास समेटे हुए है. पाषाण काल यानि आज से करीब 7000 साल पूर्व की कैमूर पहाड़ी पर विद्यमान चित्रकारी इस बात का प्रमाण है कि शाहाबाद क्षेत्र में मानव सभ्यता का विकास अनादि काल में हीं हो गया था. भोजपुर जिले के मसाढ़ गांव में प्राप्त शिलालेख व अन्य अवशेष यहाँ के प्राचीन इतिहास का आज भी गवाह बना हुआ है. यहां की भूमि केवल अन्न जल के लिए हीं नहीं, बल्कि ॠषिमुनी, तपस्वी, प्रशासक, साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार, राजनेता, आदि के लिए भी काफी उर्वरा रहा है. महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि व भगवान श्री राम की शिक्षा तथा युद्ध कौशल का प्रशिक्षण केन्द्र भी शाहाबाद हीं रहा है. मध्य काल में सासाराम निवासी शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराकर बंग्लादेश से अफगानिस्तान तक अपनी शासन व्यवस्था स्थापित कर एशिया महादेश के विकास में अहम् भूमिका निभाई थी. 1857 में जगदीशपुर के बाबु बीर कुंवर सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की पहली लडाई का शंखनाद कर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग उठाई थी तब शाहाबाद के डेहरी निवासी अब्दुल क्यूम अंसारी देश के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के खिलाफ बगावत करते हुए द्वीराष्ट्र का विरोध किया. यहां असंख्य ऐसे विभूति पैदा हुए जिन्होंने अपने कर्म के बदौलत विभिन्न क्षेत्रों में नाम रौशन किया. आजादी से पूर्व शाहाबाद काफी विकसित था. सोन नद के तट पर एशिया महादेश के सबसे बड़े उद्योग समूह में एक डालमियानगर स्थित रोहतास उद्योग समूह में एक दर्जन से अधिक उत्पाद इकाई चल रहा था. शाहाबाद की जीवन रेखा कही जाने वाली सोन नहर प्रणाली दुनिया की पहली सबसे सुदृढ़ नहर प्रणाली थी. डुमरांव का लालटेन कारखाने की उत्पाद देश कई भागों में रौशनी बिखेरती थी.

उन्होंने बताया कि शाहाबाद जिला का पहला विभाजन 10 नवम्बर 1972 को हुआ और रोहतास तथा भोजपुर जिले की स्थापना के साथ ही शाहाबाद का नाम विलोपित हो गया. कालांतर में फिर इसी में विभाजित होकर बक्सर तथा कैमूर जिला का निर्माण हुआ. प्रशासनिक दृष्टि से भले ही यह विभाजन हुआ, लेकिन पुरे शाहाबाद का रहन-सहन, खानपान, रीति रिवाज सबकुछ समान है. यहां की भूमि काफी उर्वरा है. मनोरम प्राकृतिक बनावट तथा ऐतिहासिक, धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत को समेटे इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. साथ ही यहाँ के खाद्य सामग्री जैसे चेनारी के गुड का लड्डू, बक्सर का पापड़ी, कोआथ का बेलग्रामी, बरांव का सिंघाडा, उदवन्तनगर का छेना का बेलग्रामी, भभुआ का चावल आदि का अनूठा स्वाद देश दुनिया के लोगों के आकर्षित करता है. शाहाबाद का लोक संगीत भारत हीं नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में आज भी प्रचलित है. बस जरूरत है इसे बढावा देने की. और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए, अपनी सभ्यता और संस्कृति को विश्व पटल पर लाने के लिए शाहाबाद महोत्सव का आयोजन करने का निर्णय लिया गया. शाहाबाद महोत्सव का शुभारम्भ 2019 में बिक्रमगंज में आरंभ हुआ, जिसमें साहित्यिक, धार्मिक, समाजिक आदि क्षेत्र से जुड़े लोगों के अलावा सभी राजनीतिक दलों के लोगों ने शिरकत कर इसके उदेश्य को मुकाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया, जो अनवरत चलता रहेगा.

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