रोहतास जिले के शिवसागर से दक्षिण कुदरा नदी के बाएं (दक्षिणी) तट पर स्थित है सोनहर। सोनहर का उल्लेख गहड़वाल राजा विजयचंद्र के ताम्रपत्र लेख में मिलता है। यह अभिलेख सोनहर ग्राम में ही राम खेलावन को खेत जोतते समय प्राप्त हुआ था, जिसे उनके पौत्र गरीबन महतो ने राष्ट्रीय संपत्ति समझकर 11 मार्च 1959 को पटना के तत्कालीन आयुक्त डॉ. श्रीधर वासुदेव को सौंप दिया।
गहड़वाल वंश के शासन के मिलते हैं प्रमाण : गहड़वालों द्वारा जारी किया गया जिले का पहला अभिलेख सोनहर का ताम्रपत्र है। यह अभिलेख गहड़वाल राजा विजयचंद्र का एक घोषणापत्र है। जिसे विक्रम संवत 1223 के भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की नवीं तिथि सोमवार यानी पांच सितंबर 1166 को जारी किया गया था। यह ताम्रपत्र सोनहर निवासी राम खेलावन को खेत जोतते समय प्राप्त हुआ था, जिसे उनके पौत्र गरीबन महतो ने राष्ट्रीय संपत्ति समझकर 11 मार्च 1959 को तत्कालीन आयुक्त डॉ. श्रीधर वासुदेव को सौंप दिया। तब से वह पटना संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है।
जहां-तहां बिखरे हैं पुरातात्विक अवशेष : पुरातात्विक रूप से समृद्ध सोनहर पहाड़ी पर प्राचीन बसाव के अवशेष यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। इसके पूरब लगभग 10 मीटर ऊंचा व एक हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले टीला पर लाल, काला, धूसर, लाल और काला मृदभांड मिले हैं। मिट्टी के बर्तनों में हांड़ी, गगरी, कटोरा व कोठिला आदि के टुकड़े हैं। पहाड़ी के ऊपर पूर्व मध्यकालीन स्तंभ व मूर्ति खुले आसमान के निचे बिखरे हैं। गांव के पूरब व पश्चिम में स्थित मंदिर के भीतर और बाहर प्राचीन मूर्तियों का ढेर लगा है। जिनमें अधिकतर खंडित हैं।
वहीं गांव के शिवमंदिर में स्थापित बलुआ पत्थर की पूर्व मध्यकालीन नृत्यरत गणेश की मूर्ति स्थापित है। जिसकी लंबाई 36 इंच व चौड़ाई 25 इंच है। उसके समीप नंदी की भी उसी काल की एक मूर्ति स्थापित है। भगवान विष्णु की एक बलुआ पत्थर की मूर्ति मिली है, जिसके गले में वनमाला व कमर में करधनी अलंकृत है।
कहते हैं शोध अन्वेषक : केपी जायसवाल शोध संस्थान, पटना के शोध अन्वेषक डॉ. श्यामसुंदर तिवारी कहते है कि, इस गांव की पहाड़ी व ढिबरा का शोध वर्ष 2011 में किया गया, जिसमें पूर्व मध्यकाल के अवशेष के रूप में मृदभांड व मंदिर के ध्वंशावशेष प्राप्त हुए हैं। कई ऐसी खंडित मूर्तियां भी मिली हैं, जिसकी पहचान नहीं हो पाई है। पूर्व में यहां से 43.2 सेंटीमीटर लंबा व 32 सेंटीमीटर चौड़ा तामपत्र मिला है। इसके सामने 26 व पीछे 10 पंक्तियां संस्कृत भाषा में अंकित हैं। पुरातात्विक दृष्टिकोण से इस महत्वपूर्ण पहाड़ी की गोद में काफी प्राचीन रहस्य छिपे हैं, जिन्हें उत्खनन के बाद ही प्रकाश में लाया जा सकता है।
वहीं ग्रामीणों का कहना है कि, पूर्व मध्यकाल में गहड़वाल वंश के शासन अंतर्गत सासाराम सहित रोहतास का महानायक खयरवाल वंश का प्रतापधवल देव जपिलिया था। जिसका लिखवाया शिलालेख ताराचंडी में आज भी विद्यमान है। पहले यहां की खेती के दौरान बहुत सी प्राचीन सामग्री मिलती थी। उन्होंने बताया कि, प्राचीन सभ्यताओं की कई अनसुलझी पहेलियां अपने आप में समेटे पूर्व मध्यकालीन सोनहर पहाड़ी व ढिबरा आज संरक्षण के अभाव में विलुप्ति के कगार पर है।