बिहार में इस बार कम पड़ रही ठंड से आम आदमी से लेकर किसान तक परेशान हैं. 1961 के बाद यह पहला मौका है जब सूबे में इतनी कम ठंड पड़ी है. 1961-62 में जहां दिसंबर-जनवरी में दिन का औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया था. वहीं न्यूनतम आठ डिग्री से नीचे रहा था. दिसंबर 2018 में राजधानी पटना का न्यूनतम तापमान 6.3 और जनवरी 2019 में 6.4 डिग्री सेल्सियस तक ही पहुंच पाया.
2019 में अब तक न्यूनतम तापमान 6.4 और अधिकतम 19 डिग्री तक ही रिकॉर्ड किया गया है. मौसम वैज्ञानिक अलनीनो इफेक्ट, पश्चिमी विक्षोभ का कमजोर होना और पानी के लेयर का नीचे चला जाना इसका प्रमुख कारण मान रहे हैं. मौसम विज्ञान केंद्र पटना के उपनिदेशक आनंद शंकर ने कहा कि ठंड में इस तरह का ट्रेंड तापमान बढ़ोतरी की ओर इशारा कर रहा है. इसका नकारात्मक असर कृषि से लेकर आने वाले मौसम पर पड़ना तय है.
इन कारणों से इस साल कम कंपकंपाया हमारा प्रदेश:
अलनीनो: बिहार में अपने अंतिम फेज में मानसून बेहद कमजोर रहां. प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान बढ़ जाने के कारण बारिश कमजोर हो गई. सितंबर में 200 मिमी बारिश की जगह सिर्फ 27 मिमी हुई. अक्टूबर में राज्य के अधिकतर इलाकों में बारिश हुई ही नहीं. कुछ इलाकों में हल्की बारिश हुई. इससे प्रदेश में आर्द्रता में कमी आ गई.
इंड्यूस लो: अरब सागर से आने वाली हवाओं के कारण बिहार में नमी की मात्रा बढ़ती है. इस बार ऐसा नहीं होने के कारण एक भी इंड्यूस सिस्टम नहीं बन पाया. प्रदेश में इसका इफेक्ट बेहद कमजोर रहने से ज्यादातर शहरों में दिन का तापमान दो से तीन दिन ही सामान्य से नीचे पहुंचा.
पश्चिमी विक्षोभ: बिहार में पश्चिमी विक्षोभ का असर बेहद कमजोर रहा है. हिमालय की तराई से आने वाली ठंडी हवा इस बार उत्तरी इलाकों से होकर पश्चिमी बंगाल और सिक्किम की ओर चली गई. कोहरा नहीं होने के कारण दिन का तापमान नीचे नहीं गिरा. हर दिन सुबह 10 बजे के बाद तेज धूप खिली. ठंड सामान्य स्तर पर भी नहीं पहुंचा.
पानी का लेयर नीचे जाना: राजधानी सहित प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में पानी का लेयर नीचे गया है. आर्द्रता पूरी तरह नहीं मिलने और प्रदूषण की मात्रा अधिक होने से कोहरा भी नहीं बन पाया.
वहीं मौसम वैज्ञानिक की मानें तो प्री-मानसून के दौरान फिर से बिहार के पहाड़ी इलाकों में अधिक वज्रपात होने की आशंका है. ठंड की विदाई के समय पश्चिमी विक्षोभ बिहार की ओर शिफ्ट होता है तो रबी फसल की कटाई के दौरान लोकल थंडर स्टॉर्म विकसित होंगे. इस दौरान ओलावृष्टि भी हो सकती है. फरवरी व मार्च के बीच इसका असर दिख सकता है. कम ठंड पड़ने का असर गेहूं पर अधिक पड़ेगा. कम पैदावार के आसार हैं. खेसारी के पौधे पर इसका असर दिख रहे हैं.
57 साल पहले था इस साल जैसा तापमान:
वर्ष 1961-62 : दिसंबर-जनवरी: अधिकतम- 18 डिग्री, न्यूनतम- 8 डिग्री
वर्ष 2018-19 : दिसंबर-जनवरी: अधिकतम- 19 डिग्री, न्यूनतम- 6.4 डिग्री